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हमीर रासो : 67
छंद
सनमुख राव हमीर सदा, मिव (कौं ) सीस चढ़ायो । मिलै पारखत अय, अपछरां मंगळ गायो । पहौप माल ले उरवसी, सो मैल्हत उर प्राय सिव कौं सीस चढाय के, चलै सूर लोक कौं राव ||३०० ||
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बचनिका
तब राव, सुरजन सौं कही- पातिसाहि, महरमखां प्रावै तो दोयस्यारि सुखन कहै जाऊ । जब महरमखां अरु पातिसाहि आये । राव क सूरापरण देखि, निमस्कार करिया । जब " पातिसाह बचन कहता है ।
छंद
धनि धनि राव हमीर, धनि-स जननी जिन जाये । जो जो कहते बचन, सूर सोई निरबा है || आप काज सब को मरै, पर कारजि मरत न कोय । तुमसे १० राव हमीर नर हूवा न कोई होय || ३०१ ।।
| पिछले पृ. 66 वा श्रवशिष्ट ]
बचनिका - सूरियां बहौरी राव हमीर को सला देता है । पातिसाहि दिली कौं चलै । तुम भी गढ की श्रावादनी करौ । घ श्रागे छंद है ।
४ ग. रगत
५ ख सूरियां । ६ ध. तब राव कही- प्र. पा. ।
७ घ. हठ तो राव हमीर को, श्ररु रावन की टेक । सत राजा हरचंद को अरजन बारण अनेक || बचनिका- ८ घ. सूरियां सौं राव हमीर कहीरतन की कीजो | अब तुम गढ चीत्तौड़ कू रह्यौ । पपा । ९ ग. गोदि । १० ग. श्राप ।
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अपा ||
सा पीछी मेरी करी अँसी पीछी जावो । खवास एक राव पारि ११ ग. संगि ।
३ ख मिलि हित कर आय ।
।
१ घ. सदास्यों कू । २ ग. सो मेलत । ४ ग. अब सूर लोक कौं चले राव, श्राप सूर लोक ७ ग. और । ८ ग. तब । ९ ग. कहते हैं, घ. प. पा. 'सुरजन' सौं कही पातिस्याह महरमखांन कौं लावो तो उससे वाति करों । जब पातिसाहि 'महरमखां सुरजन' के संग राव ' हमीर' के पासि प्राय खड़े रहे । स्याबास
५ ग. जब । ६ ख. कौं । जब सीस बचन उचार्यो !
दे करि पातिसाहि कही । १० ग. तुझि सा ।
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