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70 : इमीररासो
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राव हमीर कहता है', पातिसाहि सेती ।
छंद दोहा
करौ दोख श्री कृष्ण सौं, बक े विष कुचन लगाय ।
बड़े न गुण चित धरं जननी गति दई ताय ।। ३१० ॥
छंद
दोसत होय न मिल्यो, मिल्यो दुसमन होय आयो । तुम हमीर ग्रौलिया, मरम तुम्हारा नहीं पायौ ॥
गद गद वानी साहि के, उपज्यो अधिक सनेह । होय मुरीद सेवा करो, संगि हमीर तुभि लेहु ॥३११||
ये हमीर श्रौतार, याहि सरभरि नहीं कोई । ऊडगन कोरि अनेक, सूर क्यों सरभरि होई ||
सिव श्रवाज इम उचरें, सुनो अलवादी साहि । जो तुम मिला हमीर सौं, समद भांप ल्यो जाहि ।।३१२।।
॥
सीस वचन यह ऊचरे साहि सनमुखि सुनि लीजै । | सेतबंद सिर नाय, बदगी सिव की कीजं ] उपजं विनसै संग दोऊ, जे समंद भांप ल्यो जाय १० 1 मिल सूर के लोक मैं, हम तुम महिमा - साहि ॥ ३१३॥
११
भया १३ सीस धड़ येक, सदा सिव- लोक पठाये। सुर तेतीसौं कोड़ि, राव के दरसरण आये ॥ जिसे सुर सुरलोक के, मिले सबै सिर नाय 1 ata fris कीनां हमीर तुम, रनतभंवर गढ़ जाय ।। ३१४ ।।
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१ ख. ग. हमीर कहै पातिसाहि सो । मैं रहूं तुम्हारी पाय, ग. भरम । कहै छँ ग. अ.पा महादेव कहै । राव को सीस कहै छ । ११ . तुम हजरति सगि
९ मूल प्रति ( क ) में नहीं हैं । १० ख. पद्यांश नहीं है ।
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१२ घ. होय सीस धड़ जुड़ी ।
२ ख. कुचि ते विषन लगाय | ३ ख. ४ ग. मुझि ले जाहु | ५ ख. प्र. पा. सदास्यो
ख. यौं । ७ ग. कौं । ८ ख. श्र.पा.
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