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72 : हमीररासो ०
मिल राव रणधीर , खान वाल्हरणसी भाई । महिमासाहि रु मीर, मिले हजरति सिर' नाई ।। पीछै मिलै हमीर कौं, अलादीन पतिसाहि । हजरत राव हमीर के, गहै कदम कर लाय ।।३२१॥
धनि हमीर चौहान, आदि कुल यह चलि आई । यह साहिब की राहि. राव हम तुम सौ पाई ।। भरत खंड चहुवै दिसा, देख्या सब जुग जोय । तुम बिन राव हमीर मुझि, भिसति मिलावै कोय ? ।।३२२ ।
निद्रा खुध्या काल जुरा. झंपे नहीं कोई । पहुँचे राव हमीर, साहि सूर संग सबैही ।। पासा देवल और सब, महिमासाहि रु मीर । मिलै सबै सुरलोक में, हजरति हरम हनोर ।।३२३॥
मिलै'• राव पतिसाहि, खीर ज्यौं नीर समाई । ज्यौं पारसि को परसि", बजर कंचन होय जाई ।। अलादीन हमीर से १२, हुवा न बहौरयौं होय १७ ॥ कवि महेस यम ऊचरै, वे१४ सभी सहित सुरपुर वसे ।।३२४॥
इति राव हमीर रासो गढ मजकर संपूर्णम् ।। शुभमस्तु ।।
मिति : प्रासोज सुदि ३, सं. १८२३
१ ख प्र.पा. सेती २ यहां से प्रति सं. (ग) पुनः प्रारम्भ है। ३ ग. खंड भुव ४ ग. ६झि । ५. ख कण ६ ग. खुध्या न । ७ ख ग. सब कोई ८ ख. कसोर । ९ स्व. अरु. ग. साहि हमीर । १० -११ ख. में पद्य भाग नहीं है । १२ ख. नर । १३ ख. होय । १४ ग. ये।
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