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हमीररासो : 71
तब लग्या साहि उपदेस, सुरति साहिब परि लाई । हसम खजाने तजै, तजी दिलो पतिसाही' ।। मिटि कुबुधि तन साहि की, प्रगटि सुबुधि सरीर । हजरति प्राय हसम में, कहत हमीर हमीर' ।।३१५।। साहि हसम मै अाय, खैर खैराति करावै । बंटै खजानै माल, लेहु जेता जो चाहै । महरमखां महेरावखां. हजरति लिये बुलाय । दिली तखत बैठानियो, अलाव(र)दी को जाय ।।३१६।। कर महरमखां जोरि, साहि सौं बचन सुनाये । हठ हमीर का रह्या, खेसी सातों पतिमाहि ॥ हसम आठ लख सुतर, लख पड़ सहस गजराज । खरच खजांनै साहि के, भय छपन कोड़ि दस लाख ।।३१७।। रिति पावस बिन नीर, साहि कोऊ न सुख पावै । ज्यौं औरति बिन पुरखि, साहि को सरण रहावै ।। महरमखां यम ऊचरै, दिखरिण दिसि मति जाव । ज्यौं रनयंभ हमीर बिनि, ज्यौं दिली(बिना )पतिसाहि ।।३१८।।
दोहा हीमति गहो हजरति कहै, सब सुनिये मोर अमीर । जात है राव हमीर अब, मुझि नजीक सौं दूरी ।।३१९ ।।
जब अपने अपने देस, साहि दल उलटे पाये । दखिन देस पतिसाहि, कुच दर कूच चलाये ।। परसे साहि अलावदी, सेतबंध सिव जाय । समंद झांफ हजरति लई. हुरम सहित पतिसाहि ।।३२०।।
१ इसके प्रागे प्रति सं. (ग) का एक पत्र त्रुटित है। २ यहां पर प्रति सं. (घ) का पाठ समाप्त कर दिया गया । ३ ख. पद्यांश नहीं है । ४. केवल (ख) में ।
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