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करेगा ।
जब प्रलावदी साहि साहि, गौरी सुधि प्रयं । कहैं हमीर करि रोस, बहौरि मति सार संभावै ॥ काग दिसटि होय पूतरी यक, फिरत दोऊ दिस आय । असे जीव धड़ सीस बिचि, यत प्रावत उत जाय' ।। ३०६॥
बच निका
गणेस देवता राव की प्रसतुति करता है। अब राव हमारी रख्या कौंन
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हमीर रासो : 69
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कहै सीस गढ दियो, साहि च्यंता मति लावे 1 श्रबै हमीर चौहान, बहौरि नहीं सार संभाव || द्वै कर जोरि श्रलावदी, रहै साहि सिर नाय |
धनि हमीर हठ ना तज्यौ, तज्यौ रणथंभ गढ़ राव ॥ ३०७ ॥
छंद
J
इस
बरस
जैत राज ररपथंभ बरस द्वादस द्वै कीना । हमीर, राज परजा सुख दीना ॥ मिटी ग्रान चौहान की. जुरै न कोऊ जंग करि । कहै गनेस होत
हुवा अब गढ भयो मलेछ घर ११ ।। ३०८ ।।
दोहा
मिटं, जैसा जिन का दोख ।
मेट्या न किसही का हजरति कहै हमीर सौं, तजौ राव उर दोख ||३०६ ।।
१ ख प्र.पा. राव को सीस कहै छ । २ ग. फेरि । ३. ग. घ. रणतमंवर तज्यो राज ;
घ.
दोस्त हो नहीं मिले, अलादीन दुसमन होई आये । तुम हमीर श्रोतार, हम तम अराह नहीं पाये ।।
गदगद वानी साह के, उपज्यो अधिक सनेह । हो मुराद सेव करू, संगि हमीर मुझि लेहु ॥ पपा ॥ ; घ. बीच का च भाग नहीं है । ४ ख. करै छ । ५ ग. रछ्या हमारी । ६ ख पिच्यासी ।
७ ख. पद्यांश नहीं है । ८ गजुरधा न कोऊ जंगि श्ररि । होतब हमीर का । ११ ग. गणेश तो गयो ।
जमि मोर । १० ख० ग.
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९ ख. जुरै न कोऊ
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