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68 : हमीररासो
द्वादस वरस हमीर तुझं, हम बहौत सेख न हाजर किये, बचन अपने अमर रहै हजरति कहै, जहां लग ऊगे भांन । देत जिय बचन न तजै 3, धनि हमीर चौहान ॥ ३०२ ॥
साहि बचन यम ऊचरै, साह सुरजन सुनि लीजे । येक राव का रूम प्रानि, हमरे कर दीजै ॥ अबसि बसि सुरजन कही, हुकम किया पतिसाहि । कदम येक सनमुख धरे परचौ सीस धर जाय ||३०३॥
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हंसे अलावदी साहि जब
ऐसे निमक हराम बहौरि,
समझाये ।
निरबा है ||
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सुरजन दिसि " चाह ।
कोऊ रहन न पावै ॥
कर जोरि साहि बंदगी करें, सुनि देवन सिरि देव ।
जो कुछि राव हमीर कौं, सोई देहि संग मोहि" ||३०४||
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या हमीर की राह और हजरति को पाव" ।
जब जब राज हमीर १२, जब १३ ही सीस चढ़ावे ||
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लोक १४ सौं पाय ।
करें राज रणथंभ का सूर करि करि जस जुग आपणों, फिरि १५ फिरि सुरपुर जाय १६ ।। ३०५ ।।
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१ ग. उगवै । २ ख ग. देह तजी बचन । ३ ग त्यागिये । ४ ख हमारे कौं दीजै । ५ क. अब सब सौं, ५-६ तक का पद्य भाग ( ख ) प्रति में नहीं है । ७ घ तब साहि सुरजन । ८. तन चाहै । ९ ख कोऊ नहीं [आागे पावं ] । १० ख. प्र. पा. सदा स्योजी कहै छै, महमखां सौं पातसाहि कही से हरामखोर को हरामखोरी करी सौ किसी राह चलावो । सूरा पूरा का बाजा रे डाका रे बांधी हाथी के हाथि घींसांवो । लसकर के सिपास फिरावो । ताभरि पाछे ढाढी बरदार कह्यो- आपने खांबद सौं दगो करें सो हरामखोर सुरजन की राह पहोंचेगा सदासिव पातस्याह सौं कही पद्यांश के स्थान पर परिवर्तित पाठ (घ) ११ ग. प्रा । १२ ग. प्र. पा. करं । १३ घ. सदास्यो के सीस । १४ ख. कौं । १५ घ. फिरि अमरापुरि । १६ ख. पद्यांश नहीं है ।
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