Book Title: Hamir Raso
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 79
________________ 66 : हमीर रासो ० (जब) उलटि साहि' दल फिरै, राव जब गढ़ कौं आये। करि करि नारद निरति, राव उपदेस लगाये ।। रनतभंव(र) साको भयो, सोच न करिये राव। सिव कौं सीस चढाय के, स्वर्ग२ लोक कौं जाय 3 ||२६८।। बचनिकाजब सरिवां राव हमोर सौं कहते हैं- बोल बाला सदासिव तुम्हारा २खे । अरु पातिसा हि दिली कौं चले । छंद हसम रतन गढ़ देस. राव किन बहौरि संभारो । कहै सूर' सब बचन, राव मति सीस उतारौ ॥ स्यघ विसन सापुरसि बचन, केळि फळे यक वार । त्रिया • तेल हम्मीर - हठ, चढ़ न दूजी वार* ॥२६६ ।। बचनिका तब राव रिवां ने सीख दीनी । रतन की ड्योढी चीतौड़ जावा । यका येकी राव' ही रह्यौ । गोढि'१ येक खवास रह्यौ । १ ख. दिल्ली की फिरिय, ग. दल फेरि । २ ख. तुम स्वर्ग, ग. घ. प्राप सूर लोक । ३ घ. जब राव हमीर कही- गढ परि साको होयो किसि विध जारिणये । नारद मुनि कह्यो - सुरग सौं पंचरंग चढ़गे । निरख राव [राणी] मुरझाई राव सौं बचन कहै- कलि मैं दल येती मुये। सो गुर पुंजीसी गौर म करी दोऊ सहंस ले संगि । पतिसाह पहेली सुरलोक कौं, तिरिय तर्ज रणथंभ ।। येक वरस द्वादस संवत पहोच्यो प्राय । मीर सोऊ संकर बधन, कहत सूर सुनि राव ।। [शेष पृ. 67 पर For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org

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