Book Title: Hamir Raso
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राडास्मान पुरातन गन्तकाला । प्रधान सम्पादक : डॉ० पद्मधर पाठक [ निदेशक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ] ग्रन्थाङ्क १३५ महेश कवि विरचित हमीर रासो : सम्पादक श्री अगरचन्द नाहटा प्रकाशक राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर RAJASTHAN ORIENTAL RESEARCH INSTITUTE, JODHPUR. 1982. प्रथमावृत्ति ५०० मूल्य रु. 8/ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला प्रधान सम्पादक : डॉ० पद्मधर पाठक [ निदेशक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ] ग्रन्थाङ्क १३५ महेश कवि विरचित हमीर रासो : सम्पादक : श्री अगरचन्द नाहटा प्रकाशक राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर १९८२ ई. RAJASTHAN ORIENTAL RESEARCH INSTITUTE, JODHPUR. 1982. प्रथमावृत्ति ५०० मूल्य रु. ६/ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला राजस्थान राज्य द्वारा प्रकाशित सामान्यतः अखिल भारतीय तथा विशेषतः राजस्थान-प्रदेशीय पुरातनकालीन संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी, राजस्थानी आदि भाषा-निबद्ध विविध वाङमय प्रकाशिनी विशिष्ट ग्रन्थावली प्रधान सम्पादक डॉ० पामर पाठक ग्रन्थाङ्क १३५ महेश कवि विरचित हमीर रासो प्रकाशक राजस्थान-राज्य-संस्थापित राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर (राज.) मुद्रक : पंकज प्रिण्टर्स एवं हिमालय प्रिण्टर्स, जोधपुर वि० सं० २०३६ भारत राष्ट्रीय शकान्द १९०४ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रधान-सम्पादकीय नयचन्द्रसूरि के "हम्मीर महाकाव्य" (प्रस्तुत ग्रन्थमाला ग्रन्थाङ्क ६५) जैसे प्रामाणिक ग्रन्थ के प्रकाशन के बाद इस "हमीर रासो" का सुसम्पादित संस्कर्श निकालने के पीछे हमारा यही उद्देश्य रहा है कि राव हमीर विषयक बाद का साहित्य किस प्रकार पीछे की सामग्री को लेकर नए-नए कवियों द्वारा लिखा जाता रहा । वस्तुतः ऐसी स्फुट रचनाएं स्फूर्तिवर्द्धक आल्हों की भांति लोगों के मनोरंजन के लिए गा-गाकर सुनाई जाती थीं। श्रोता इनके उतारचढ़ाव का मानन्द लेते थे। अनेक कवियों ने इस प्रकार के स्फुट 'रासो' लिखे हैं जिनकी अनेक प्रतियां आज भी अनेक भण्डारों में मिल जाती हैं । साहित्य की एक रोचक विधा के रूप में इन्हें स्वीकारा जाना चाहिए। विद्वान् सम्पादक श्री अगरचन्दजी नाहटा ने अपनी प्रस्तावना में इस रचना से सम्बन्धित सभी आवश्यक जानकारी दे दी है। प्रस्तुत ग्रन्थ यद्यपि एक लोक साहित्य रचना है, किन्तु ऐतिहासिक पात्रों को लेकर लिखी जाने वाली ऐसी रचनाओं का भी वजन होता है। आदि से अन्त तक प्रूफ-शोधन करने के लिए विभाग के कनिष्ठ तकनीकी सहायक श्री गिरधरवल्लभ दाधीच ने पूग परिश्रम किया है एतदर्थ वे धन्यवाद के पात्र हैं। -पद्मधर पाठक निदेशक राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर (राज.) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रम क्रम विषय पृष्ठांक on or mx प्रधान-सम्पादकीय प्रस्तावना रासो (ग्रन्थ) सम्पादन में प्रयुक्त प्रतियों का विवरण पद्यानुक्रमणिका वचनिका-गद्यानुक्रमणिका I-VIII '१-७२ ७३-७४ ७५-७६ of w Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना हम्मीरदेव चौहान की कीर्ति शताब्दियों से सर्वत्र गायी जाती है । उनको कीति-गाथा अनेक कवियों ने समय-समय पर रच कर जन-जन में प्रसारित की अतः हम्मीर सम्बन्धी रचनाओं की एक लम्बी परम्परा है । गत कोई ७०० वर्षों में संस्कृत, अपभ्रंश, राजस्थानी एवं हिन्दी में कई कवियों के रचित छोटे-मोटे काव्य प्राप्त होते हैं । अब उनमें से बहुत से प्रकाशित भी हो चुके हैं । कई काव्य पूरे नहीं मिलते, उनके पद्य प्राप्त होते हैं। कई काव्यों में पीछे से काफी परिवर्तन भी हुआ लगता है। उनके पद्यों की संख्या विभिन्न प्रतियों में कम-बेसी पायो जाती है तथा पाठ-भेद भी प्रचुर परिमाण में दिखाई देते हैं। ऐसे काव्यों में महेश कवि का 'हम्मीर रासो' भी एक है। जिसकी अनेकों हस्तलिखित प्रतियां मिलती हैं, यह उसकी लोकप्रियता व प्रचार का सूचक है। राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर से प्रकाशित होकर 'रासो' का यह संस्करणपाठकों के सामने है। वीर हम्मीर सम्बन्धी छोटे-मोटे काव्य तो कई मिलते हैं। किन्तु, सबसे उल्लेखनीय संस्कृत महाकाव्य जैनाचार्य नयचन्द्रसूरि रचित 'हम्मीर महाकाव्य' है जो राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान द्वारा ही सन् १९६८ में सुसंपादित होकर प्रकाशित हो चुका है। इसके सम्पादक पुरातत्वाचार्य मुनि श्री जिनविजयजी हैं। इससे पहले यह ग्रन्थ श्री नीलकण्ठ जनार्दन कीर्तने द्वारा सम्पादित होकर सन् १८७६ में विस्तृत अंग्रेजी प्रस्तावना के साथ प्रकाशित हुआ था। मुनि जिनविजयजी द्वारा सम्पादित नया संस्करण बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस काव्य की प्राचीनतम हस्तलिखित प्रति संवत् १४८६में लिखित कोटा के जैन भण्डार से मैंने उन्हें भिजवायी थी। इस काव्य की दीपिका नामक एक प्राचीन टीका का भी जितना अंश मुनिजी को प्राप्त हुआ, इस संस्करण में प्रकाशित कर दिया गया था। मुनिजी के कथनानुसार प्रस्तुत दोपिका, मूल काच्य के रचयिता नयचन्द्र सूरि के ही किसी विद्वान् शिष्य ने रची है। इस संस्करण में ५० पृष्ठों में लिखित मुनिजी का 'हम्मीर महाकाव्य-एक पर्यालोचन' और डा० दशरथ शर्मा का प्रस्तावित परिचय और 'हम्भीर महाकाव्य में ऐतिह्य सामग्री' विशेष रूप से पठनीय व उल्लेखनीय है। साथ ही प्रथम संस्करण की अंग्रेजी प्रस्तावना भी इस संस्करण में दिए जाने से सभी दृष्टियों से यह नया संस्करण बहुत ही महत्व का बन गया है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीर हम्मीर सम्बन्धी लोक-भाषा राजस्थानी में रचित उल्लेखनीय काव्य व्यांस भाण्डउकृत 'हम्मीरायण' संवत् १५३८ की रचना है। ३२६ पद्यों के इस काव्य को भी सुसम्पादित रूप में हमने 'सादूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट' बीकानेर से सन् १९६० में प्रकाशित करवाया था। उसमें भी डा. दशरथ शर्मा ने १३४ पृष्ठों में ऐतिहासिक व महत्वपूर्ण भूमिका लिख दी थी, जो बहुत ही पठनीय है । मूल 'हम्मीरायण' के परिशिष्ट में हमने उस समय तक प्राप्त हम्मीर सम्बन्धी ४ रचनाएं प्रकाशित करवा दी थी। जैसे–परिशिष्ट १ में 'प्राकृत-पैंगलम् में हम्मीर सम्बन्धी पद्य' परिशिष्ट दो में 'कवित-रिणथंभोर रै रांग हमीर हठालै रा' परिशिष्ट ३ में मैथिल कवि पंडित श्री विद्यापति ठाकुर रचित 'पुरुष परीक्षा' के अन्तर्गत 'श्री दयावीर कथा' परिशिष्ट ४ में भाट खेम रचित 'राजा हम्मीरदे कवित्त।' प्रस्तुत हम्मीरायण के प्रारम्भिक 'दो शब्द' में हम्मीर सम्बन्धी अप्रकाशित रचनाओं का उल्लेख करते हुए महेश के 'हम्मीर रासो' आदि तीन रचनाओं का उल्लेख इस प्रकार किया गया था। हम्मीर सम्बन्धी अप्रकाशित रचनाओं में कवि महेश के 'हम्मीर रासो' की दो त्रुटित प्रतियां हमारे संग्रह में है। उस ग्रन्थ की कई पूर्ण प्रतियां राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर आदि के संग्रह में है। उनकी प्रतिलिपि प्राप्त करने का भी प्रयत्न किया गया, पर उन प्रतियों में अत्यधिक पाठ-भेद होने से उसका स्वतन्त्र सम्पादन करना ही उचित समझा गया अतः इन प्रतियों को इसमें सम्मिलित नहीं किया गया। 'हम्मीरायरस' नामक एक और काव्य भी प्राप्त है जिसकी एक अशुद्ध-सी प्रति राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान में और उसके वृहद् रूपान्तर की प्रतिलिपि स्वर्गीय पुरोहित हरिनारायणजी के संग्रह में है। _ 'हम्मीर देव वनिका'' नामक एक और महत्वपूर्ण रचना की प्रति श्री उदयशङ्करजी शास्त्री के संग्रह में है, उसका भी स्वतन्त्र रूप से वे सम्पादन कर रहे हैं इसलिए उसका उपयोग यहां नहीं किया जा सका है। 'हम्मीरायण' की विस्तृत भूमिका में डा. दशरथ शर्मा ने उस समय तक ज्ञात हम्मीर सम्बन्धी सभी रचनामों पर विचार किया था। संस्कृत काव्यों में अकबर के समकालीन कवि चन्द्रशेखर रचित 'सुर्जन चरित' में जो हम्मीर की गाथा आती है, उसका कथासार पृष्ठ ८८ व ८६ में दे दिया था। पृष्ठ ८५ में महेश कवि के 'हम्मीर रासो' के सम्बन्ध में उन्होंने लिखा था कि "महेश कृत 'हम्मीर रासो' की दो प्रतियां श्री अगरचन्दजी नाहटा के संग्रह में है और कुछ १ इससे सम्बन्धित कुछ जानकारी डा. दशरथ शर्मा की भूमिका में दृष्टव्य है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतियां अन्यत्र भी हैं"। भाषा डिंगल से प्रभावित राजस्थानी है। इस कृति की कुछ उल्लेख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं (१) महिमासाहि को अलाउद्दीन की किसी बेगम से अनुचित सम्बन्ध के कारण निकाला जाता है । गाभरू बादशाह की सेवा में रहता है। (२) छाणगढ़ का रणधीर हम्मीर की सहायता करता है। इसलिए रणथम्भोर को लेने से पहले बादशाह छाणगढ़ लेता है। (३) नर्तकी को गाभरू गिराता है । (४) सुर्जन कोठारी के मिल.जाने से अलाउद्दीन को ज्ञात होता है कि दुर्ग में धान्य नहीं हैं। (५) बादशाह सेतुबन्ध जाकर भगवान शिव का पूजन कर समुद्र में कूद कर अपने प्राणों का त्याग करता है। "इस कथा में कल्पना अधिक और ऐतिहासिक तथ्य कम हैं।" हम्मीर सम्बन्धी प्रकाशित रचनाओं में नागरी प्रचारिणी सभा से कवि जोधराज कृत 'हम्मीर रासो' और चन्द्र शेखर कृत, 'हम्मीर हठ' ये दो काव्य काफी पहले प्रकाशित हुए थे। उनके सम्बन्ध में डा. दशरथ शर्मा ने संक्षेप में किन्तु, तथ्यपूर्ण ज्ञातव्य इस प्रकार दिया है "जोधराज कृत 'हम्मीर रासो' प्रकाशित रचना है। इसके बारे में इतना ही कहना पर्याप्त है कि यह प्रायः महेश के हम्मीर रासो' का रूपान्तर है । इसी प्रकार चन्द्रशेखर वाजपेयी का 'हम्मीर हठ' भी प्रकाशित है । इतिहास की दृष्टि से इसका महत्व भी विशेष नहीं है। ग्वाल कवि का 'हम्मीर हठ' सं. १८८३ की कृति है। यह चन्द्रशेखर के 'हम्मीर हठ' से बहुत कुछ मिलती-जुलती है।" डा. दशरथ शर्मा ने जोधराजकृत 'हम्मीर रासो'को "प्रायः महेश के हम्मीररासो' का रूपान्तर है" लिखा था, इस सम्बन्ध में श्री मूलचन्द्र 'प्राणेश' का एक विस्तृत लेख नागरी प्रचारिणी पत्रिका वर्ष ६६ अंक ३ में प्रकाशित हो चुका है। उस लेख का शीर्षक है "जोधराज हम्मीर रासो के रचयिता या परिष्कारक ?" इस लेख में कवि जोधराज ने 'महेश रासो' के अनेक पद्य ज्यों के त्यों या रूपान्तर के साथ ले लिये हैं । यह बतलाते हुए अन्त में लिखा है कि "इस प्रकार जोधराज ने अन्य भी कई स्थानों में भावों का विशदीकरण किया है। फलस्वरूप महेश कृत ३२४ छन्दों के 'रासो' का कलेवर बढ़ाकर ६६६ छन्दों का कर दिया है । रासो संज्ञक काव्यों के काव्य-विस्तार का सबसे अच्छा नमूना इस रचना में उपलब्ध है । 'हम्मीर रासो' की एक शती की अवधि में यदि इतना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ v ] परिवर्तन-परिवर्धन हो सकता है तो सूक्ष्म काव्य चंदकृत पृथ्वीराज रासो' में चार पांच शताब्दियों में आकाश-पाताल का परिवर्तन हो जाना कोई आश्चर्यजनक घटना नहीं है। ___ 'हम्मीर रासो' के मूल रचयिता महेशदास ने अपनी रचना में पूर्व प्रख्यात कविवर 'चंद' के प्रभाव को स्वीकार किया है यथा कछु भवानी वर दियो, कछु अपनी बुध उनमान । कछु वचन सुनि चंद के, कवि गुन कर्यो वखानि । कवि ने अपना तथा अपने आश्रयदाता का कुछ भी परिचय अपनी कृति में नहीं दिया है। संभव है, कवि ने उक्त रचना स्वांतः सुखाय लिखी हो और वह किसी का आश्रित न रहा हो। कवि महेशदास का उद्देश्य केवल इतिहास विश्रुत वीरवर हम्मीर तथा अलाउद्दीन का यशोगान करना है। जोधराज की तरह अपने प्राश्रयदाता को प्रसन्न करना नहीं है। इसीलिए महेश की रचना अपने आप में उत्कृष्ट रचना बन गई है। इस रचना में कवि ने तत्कालीन समाज में बहु प्रचलित कथा को आधार माना है । यद्यपि इस रचना के सन् संवत् इतिहास से मेल नहीं खाते हैं तो भी इसमें रचयिता का इतना दोष नहीं है, जितना आज समझा जा रहा है। रासो काव्य है, इतिहास नहीं और उन दिनों आज की तरह जन साधारण में ऐतिहासिक अभिरुचि भी नहीं थी। जोधराज ने अपने चातुर्य से महेश कृत 'रासो'का लाभ उठाया । जीवितावस्था में प्रचुर धन एवं यश उपलब्ध किया। मरणोपरांत वर्तमान काल के आलोचकों के मीठे-कडवे निर्णय प्राप्त किये, परन्तु सत्य को छुपाने का लाख प्रयत्न करने पर भी वह छुप नहीं सकता है। आज जोधराज 'हमीर रासो' का रचयिता नहीं रहा। हां, अलबत्ता जोधराज को हम्मीर रासो का 'परिष्कारक' कहा जा सकता है, क्योंकि इन्होंने अपनी कल्पना-शक्ति के योग से महेश कृत रासो को सुन्दर से सुन्दरतम् बनाने का प्रयास किया है। रस, अलंकार, भाव, भाषा, छंद सभी में कुछ न कुछ नवीनता उत्पन्न करने की चेष्टा की है। मौलिक प्रतिभा जोधराज में नहीं थी। श्री तोमर का यह आलोचनात्मक निर्णय आज प्रत्यक्ष रूप से सिद्ध हो गया है । इसी बीच हम्मीर सम्बन्धी दो अन्य उल्लेखनीय रचनाओं की जानकारी मुझे प्राप्त हुई। उनके सम्बन्ध में मैंने एक लेख 'सप्त-सिन्धु' के अगस्त ७२ के अक में “वीर हम्मीर सम्बन्धी कतिपय अन्य रचनाएं" शीर्षक लेख में प्रकाश डाला था। इसके पश्चात् उस लेख में उल्लिखित जैन कवि अमृतकलश कृत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ) 'हम्मीर प्रबन्ध' नामक रवना का सम्पादन मेरे विद्वान् मित्र डा. भोगीलालजी सांडेसरा ने करके महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, बड़ौदा संचालित 'प्राचीन गुर्जर ग्रन्थमाला' ग्रन्थांक ११ के रूप में सन् ७३ में प्रकाशित करवा दिया। इस काव्य की प्रथम जानकारी मैंने बड़ौदा के प्राच्य विद्या मन्दिर के हस्तलिखित प्रति की सूची से प्राप्त की थी। 'स्वाध्याय' पत्रिका में सांडेसराजी ने इस सम्न्ध में अपना लेख प्रकाशित करवाया। उसकी चर्चा सप्त सिन्धु' में प्रकाशित कर दी गई थी। अमृतकलश कृत 'हम्मीर प्रबन्ध' ६८१ पद्यों का एक उल्लेखनीय काव्य है, जिसकी रचना संवत् १५७५ के चैत्र बहुल पक्ष की अष्टमी गुरुवार को की गई है । रचयिता ने इसका नाम 'पवाडु' भी दिया है । अमृतकलश अोस (उपकेश) गच्छ के साधु मतिकलश के शिष्य श्री कलश के शिष्य थे। प्रोष गच्छ गिरा वितपन्ना, श्री 'मतिकलस सुसीस' रतन्ना; सिरीकलस गिरुपा गुरुराय, ते सहि गुरुना प्रणमी पाय ; राय हमीर तणु प्रबंध, महिमा साह मीर संबंध । काव्य के १२३ वें पद्य में कवि ने अपना नाम दिया है 'अमृतकलस मुनिवर भरणइं, हिव सुगयो सहु कोइ ; काव्य के अंत में रचनाकाल का उल्लेख करते हुए लिखा हैसंवत पनर-पंचोत्तरइ. चैत्र बहल पाठमि दिनि सरई; रिति वसंत अनइ गुरुवार, रच्यु 'प्रवाडु एह उदार; ' बड़ौदा में तो इसकी प्रतिलिपि है। मूल प्रति संवत् १५६५ की लिखी हई थी, ऐसा इस प्रतिलिपी में स्पष्ट लिखा हुआ है। यद्यपि वह प्राचीन प्रति तथा अन्य कोई प्रति इस काव्य की कहीं नहीं मिली । प्राप्त प्रतिलिपि से ही सम्पादित करना पड़ा है। इस प्रबन्ध से पहले के रचित 'कान्हडदे प्रबन्ध' की शाब्दिक छाया हम्मीर प्रबन्ध' में होने का उल्लेख करते हुए सांडेसराजी ने दोनों काव्यों के कुछ पद्य व पंक्तियां उद्धत की हैं। प्रस्तावना में सम्पादक श्री सांडे सराजी ने हम्मीर सम्बन्धी अन्य रचनाओं की भी जानकारी दे दी है, जिसमें कुछ नयी सचनाएं भी हैं। इसी तरह कवि मूलनदास रचित 'हम्मीर प्रबन्ध' नामक एक रचना की प्रति श्री फार्बस गुजराती सभा, बम्बई के संग्रह में हैं । सन् १९२३ में प्रकाशित उक्त सभा के हस्तलिखित ग्रन्थों की सूची के प्रथम भाग के पृष्ठ १०७ से १०८ में इसका विवरण प्रकाशित हुया है। . इनके अतिरिक्त डा. 'माताप्रसाद गुप्त ने बगाल एशियाटिक सोसायटी, कलकत्ता के संग्रह में कवि मंछकृत 'हम्मीर । कवित्त' नामक एक रचना होने का उल्लेख किया है। यह रचना पुरानी राजस्थानी में २१ छप्पय छंदों में है केवल ३ दोहे इसमें एक स्थान पर और आते हैं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (vi) महेश कवि के 'हम्मीर रासो' की प्रतियां काफी मिलती हैं, पर अप्रकाशित होने से उसके प्रकाशित करने की बात 'हम्मीरायण' के प्रकाशन के समय (सन् १९६०) से ही चलती रही और ५ प्रतियों के आधार पर श्री मूलचन्द प्राणेश के सहयोग से सम्पादन किया गया। कुछ वर्ष तक वह राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान में योंही पड़ा रहा फिर श्री जितेन्द्रकुमारजी जैन निदेशक राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठानं बीकानेर का ध्यान इस ओर आकर्षित किये जाने पर मुद्रण भी हो गया । इसी बीच मालूम हुआ कि इस 'रासो' का सम्पादन डॉ० माताप्रसाद गुप्त ने भी किया है, जो केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, नई दिल्ली से प्रकाशित भी हो चुका है । उसे प्राप्त करने के लिए केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय को कई पत्र दिये पर वहां से प्रकाशित होने पर भी वह संस्करण वहां से प्राप्त नहीं हो सका । शायद वहां अब प्रतियां भी नहीं है । फिर विदित हुआ कि इसकी एक प्रति पं० श्री काशीरामजी शर्मा के पास है । तो उनसे मंगवाकर उसे देखा गया । डॉo गुप्त ने केवल २ प्रतियों के आधार पर इसका सम्पादन किया था । इनमें से पहली प्रति जयपुर के दि. सिंघीजी के मन्दिर की है जो संवत् १८२३ की लिखी हुई है । दूसरी प्रति एशियाटिक सोसायटी, कलकत्ता के संग्रह की सम्वत् १८६१ की लिखी हुई है। इन दोनों प्रतियों में भी काफी पाठ-भेद है । इनमें से पहली प्रति की संज्ञा 'ज' और दूसरी प्रति की 'ए' है । इन दोनों प्रतियों के पाठान्तर आदि के सम्बन्ध में डॉ० गुप्त ने अच्छा प्रकाश डाला है । पाठ-निर्धारण सम्बन्धी अपने मन्तव्य को व्यक्त करते हुए लिखा है कि "रचना पाठ-निर्धारण में जहां तक दोनों में समान रूप से पाए जाने वाले पद्य और बात के अंश थे, वहां पर 'ए' प्रति के पाठ को साधारणतः अधिक मान्यता दी गई है, जहां पर 'ए' में बात के अंश थे और 'ज' में पद्य के, वहां पर भी 'ए' के पाठ को साधारणतः अधिक मान्यता दी गई है, केवल जहां पर 'ए' में ऐसी बातें थी जिनमें प्रक्षेप-जनित पाठ - वृद्धि स्पष्ट थी, वहां पर 'ज' का पाठ स्वीकार किया गया । यद्यपि वह 'ज' में कहीं-कहीं पर उपर्युक्त प्रकार से पंद्यबद्ध किया हुआ मिला, किन्तु इस प्रकार के स्थल कुल दो-तीन हैं, और सम्पादित पाठ में एक प्रकार से अपवाद स्वरूप आते हैं" । . डॉ० गुप्त द्वारा प्रयुक्त दिगम्बर शास्त्र भण्डार वाली संवत् १८२३ की प्रति का तो हमने भी उपयोग किया है और अन्य ४ प्रतियां डॉ० गुप्त की प्रयुक्त प्रतियों से भिन्न हैं । डॉ० गुप्त ने अपने पाठ - निर्धारण प्रणाली के अनुसार मूल मैं २६७ पद्य रखे हैं । बाको कुछ पद्यों और पंद्यांशों को नीचे टिप्पणी में ले लिया है। मेरे सम्पादित प्रस्तुत संस्करण में पद्यों की संख्या ३२४ है । मिलाने पर मालूम हुआ कि प्रारम्भ के और अन्त के तो बहुत से पद्य समान हैं पर बीच के पाठ में काफी कमी - बेसी है । इसीलिए पद्य संख्या में अन्तर प्रा गया है । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (vii) प्रस्तुत संस्करण में कहीं-कहीं जो पाठ त्रुटित छपा है । उनकी कई स्थलों की पूर्ति तो डॉ. गुप्त के सम्पादित संस्करण से हो जाती है, पर सर्वत्र नही होती और पाठ में भिन्नता काफी अधिक है । अतः कुछ उदाहरण हो यहां उपस्थित किये जा रहे हैं । प्रस्तुत संस्करण के पद्यांक १७ से १९ वाले पद्य डॉ० गुप्त के सम्पादित संस्करण में इस प्रकार छपे हैं - पहले साहित्र सुमरिये, सवका आदि भवानी अंबिका, गनपति अलादीन हमीर के, कहौं कछू कछू भवानी वर दीयो, कछू अपनी बुधि उनमान ॥ १६ ॥ कछू चंद के वचन सुनि, कछू भारथ के वाक | सिरजनहार । सुरसति सार ||१८|| गुन- गान । छू वीर रस समभिकै, सुनि हमीर की धाक ||२०|| प्रस्तुत संस्करण के २२ वें पद्य की प्रथम पंक्ति त्रुटित बतलायी गयी है । किन्तु गुप्त के संस्करण में इस पद्य का नम्बर २३ वां है और इसकी प्रथम दो पंक्तियां इस प्रकार हैं ताके अंस सू भये, बहुरि रिषि इ उपाय । सब सरीर दीये बाटि, षष्ट पैदासि कराये । प्रस्तुत संस्करण के पद्यांक २६ में जो एक पंक्ति का ही पाठ छपा है वह गुप्त के संस्करण में भी वैसा ही है । प्रस्तुत संस्करण में जो ११३ वां पद्यांक छपा है वह गुप्त के संस्करण में 'बात' के रूप में इस प्रकार छपा है “पातस्याहि कु राव हमीर ई तरह का लिषि उलटा जुवाव भेज्या । तव पातसाहि जंग का तजबीज किया ।" प्रस्तुत संस्करण में जो पद्यांक ११५ वां छपा है वह गुप्त के संस्करण में बात' के रूप में इस प्रकार छपा है "जव राव हमीर संक्र (संकर ) की प्रसतुति करी ।" प्रस्तुत संस्करण में १३२ वां पद्य छपा है वह गुप्त के संस्करण में गद्य रूप इस प्रकार है । " (वात) ईहांतो उजीर पातस्याहि मसलति करता है और गढ परि राव हमीर रणधीर के वात होती है ।" प्रस्तुत संस्करण का १४२ वां पद्य भी गुप्त के संस्करण में "बात" के रूप इस प्रकार छपा है— "ये जुवाव ऊजीर के सुने तव पातसाहि महरम षां सू फुरमाई । छाणि कौ गढ़ चंद रोज मैं पहली फत्ते कीजे । पीछ गढ़ कुरूं लागी जे । जव उजीर अरज करी हजरति का हुकम दरकार ।" इसी प्रकार प्रस्तुत संस्करण का १५४ वां पद्य भी गुप्त के संस्करण में 'बात' के रूप में गद्य में छपा है । बीच के पद्यांक १४३ से १५३ में भी काफी पाठ-भेद हैं । और गुप्त के संस्करण में उन सब का पद्यांक एक ही दिया गया है । इस कारण भी पद्य संख्या में काफी अन्तर पड़ा है । प्रस्तुत संस्करण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( viii ) का पद्यांक १७३ भी गुप्त के संस्करण में 'बात' रूप में है। प्रस्तुत संस्करण के पद्यांक २०४ के बाद २१० तक का पाठ गुप्त के संस्करण में 'बात' के रूप में है। वे कुछ पद्य नीचे टिप्पणी में दिये हुए हैं । पद्यांक २१२ वां भी गद्य में ही समाविष्ट है और वात और वनिका के गद्य में भी काफी अन्तर है। प्रस्तुत संस्करण के पद्यांक २२३ में कुछेक पाठ त्रुटित हैं। वह गुप्त के संस्करण में इस प्रकार छपा है-गढ़ कोट राज सव राषिये, साहि सू जंग न कीजिये । इती अरज सुनि प्राप, सीष मुझि दीजिये ।।११।। प्रस्तुत संस्करण के पद्यांक २८३ के बाद जो ६ पंक्तियों में एक पंक्ति त्रुटित छपी है। वे ६ पंक्तियां डॉ० गुप्त के संस्करण के अनुसार इस प्रकार है । जब समझे किन साहि, अवै स्यानप कहा लावै । गिर धरती असमान, सदा कोउ थिर न रहावै । पाष पांच दस द्योस विचि, अदलि पहोंची पाय । वेर वेर पतसाहि तुम, वचन उचारो काहि ।।२३६।। होतिव मिटै न साहि अव, कोटि सियानप होय । अनहोनी होनी नही, होतिव होय सु होय ॥२३७।। उपरोक्त थोड़े से उदाहरणों व उद्धरणों से पाठक यह भली-भांति जान सकेंगे कि प्राप्त प्रतियों में पाठ-भेद कितना अधिक है। डा० गुप्त ने अपने संस्करण में मूल पाठ से पहले भूमिका में "१. हम्मीर विषयक साहित्य २. हम्मीर रासो की कथा ३. हम्मीर रासो का सम्पादन" सम्बन्धी अच्छा प्रकाश डाला है। उनके सम्पादित इस संस्करण की प्रति श्री काशीराम शर्मा ने मुझे भेजकर सुलभ कर दी इसके लिए मैं श्री शर्मा का बहुत आभारी हूं। ___ रासो' के रचयिता कवि महेश ने अपना कुछ भी परिचय व रचनाकाल व स्थान आदि सम्बन्धी जानकारी अपने 'रासो' में नहीं दी। और न कहीं किसी अन्य स्रोत से ही वह जानकारी प्राप्त हो सकी। पर 'रासो' का रचनाकाल तो १८ वीं शताब्दी निश्चित है। "महेश" नाम के कुछ अन्य कवि भी हो गये हैं, पर कवि की अन्य रचना कोई हो तो भी स्पष्ट उल्लेख के बिना निश्चित रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता। प्रस्तुत छोटे से काव्य के प्रकाशन में कई कारणों से कई वर्ष लग गये अब यह राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान से प्रकाशित हो रहा है। इसके लिए संस्था के अन्य अधिकारियों ने जो प्रुफ-संशोधन आदि कार्यों के लिए सहयोग दिया है, उसके लिए मैं अपना आभार प्रदर्शित करता हूं। कुछ मुद्रण की अशुद्धियां रह गई है। प्रस्तावना विस्तृत रूप से लिखने का विचार था, पर कई कारणों से वैसा नहीं हो पाया इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ। -अगरचन्द नाहटा बीकानेर (राज.) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Educationa International हमीररासो For Personal and Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री ।। कवि महेश रचित * हमीररासो - *अमरपुरी ब्रह्मलोक बचन, सत्त कठन कराई । रिखि सौं छत्री भयो, सोम के वंस कहाई ।। जिन जिन औतरां, संकट पड़े न पाय । अनल कुड उतपत भये, च्यार भुज धर च्यार ।।१।। च्यार भुजा आवध सहत, तेज पुज परचंड । सुर हरखे कोपे असुर, येते भये नौ खंड ।। परसराम प्रासापुरी, ये दोऊ वर देय । गुरु चंपा पाग्या दई, हणौ अरि कुळ चाह ।।२।। मार असुर कुळ मेट, सुरन के मान वधाये । राछस कटक दुसट, पोहमी पर रहण न पाये ॥ मंडळीक च्यार येक, चकवै येते भये चौहाण । सूर अस्त उदोत लौं, फिरी चहुं दिसि पारण ॥ ३ ॥ रथ मारुत को. चले, तिहूँ लोक चक्र चलाये । कर राव नेम लियो, जिग नित नेम कराये ।। येते नरपत नौ-खरब, लागै पाय कर जोड़ । राज-जोग दोऊ करे, अजैपाळ अजमेरि ।। ४ ।। वीसळदे वीस कोड़, जोड जळ मांहि धराई । मानै तीस कोडि, विलसी खरची अरु खाई ।। कोको भयो कमड़ लिछ, अपनी अपनी ठौर । पाना वोसळ दो भये, मंडळीक सिर-मौड़ ॥५॥ •- ख. प्रति संख्या सभी प्रतियों में पूर्ण है । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4: हमीररासो दोहा जिती धर सिर सेसके, खग बळ लियै पजाय । तूठी माणक रायन, सकत समधरा मांय ।। ६ ॥ सुर नर मुनि संकर सहत, सभी आसिका देत । करौ राज नहचळ सदा, तुम सांभरी नरेस ।।७।। प्रादू थान अजमेरिगढ़, सांभर नगर निकास । तंवर मेट दिली तखत,' कर्यो राज प्रथीराज ॥८॥ छंद पूरब पछिम दखिन, उत्तर धर केवर पाये । छत्री-वस छत्तीस, आय सब सरन रहाये ।। धन सुवस चहुवांन के, प्रासापुरा सहाय' । छत्रपती पतिसाहि जिन, पकरि* लगाये पाय ।। ६ ।। राव सूर दो वेर साहि, गौरी गहि लाये । ऊदल पाल्ह प्रभाल, महोबै खेत खिसाये ।। राव जैत कर तेग गहि अरि, कोऊ धरत न धीर । प्रलादीन सौं जंग कर, रणथंभ राव हमीर ।। १० ।। करि प्राखेटक राव, सूर संग सूर' लगाये । जिनके चिहनन चले, पदमके आसन पाये ।। येक पाव खट मास ठाढे, तप कीये प्रसन भये जु महेस । जब संकर कर धरै, करो राज यहां अंत ।। ११ ॥ मिले भील सब आय, पाय लगि बचन उचारे । हम सेवग तुम स्याम, रहैं प्राधीन तुम्हारे ।। वनवासी सबही मिलै, नर त्रियन के मुड । वार सनिसर तीज तिथि, रच्यौ जैत रणथंभ ।। १२ ।। १ ग. प्रति यहां से प्रारम्भ होती है। २ ख. यह पद्यांश नहीं है। ३ ख. कसाये • स्वीकृत प्रति, क. यहां से प्रारम्भ होती है। ४ ख. अ. पा. धन सुवंस बहुवारण को, प्रासापुरा सहाय । ५ ख. नहीं। ६ ख. माये । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___हमीररासो : 5 दोहा ग्यारासै दाहोत्तरा १११०, पुखि नखत्रि वैसाख' । दोय पीढी रणथंभ किय, बरस पिच्चासी ८५ राज ॥ १३ ॥ केते महिपत भये, राव राजा अरु रानां । जिन जैसे जो जस करै, जिसे कोऊ जाय वखानां ।। गये अनेक चलि मंडली, गये अनेक पतिसाहि । करै हमीर हठ साहिसौं, कवि कहै सकति बनाय' ।। १४ ।। दोहा चहुं ओर चढुवान तें, अरि कोऊ गहै न किवांन । अब कछु राव हमीर के, बरनौं गुनहिं बखांन ।। १५ ।। ..... . .......... . मंगलाचरण सुमरौं देवी सरस्वती, गौरी' सुत बुधि वीर । प्रलादीन कळिजुग भया, सतजुग राव हमीर ।। १६ ।। पहिलै साहिब सुमरिये, सब का सिरजण-हार । " ।।१७।। आदि भवानी अंबिका, वर दे सुरसति माय । अलादीम हमीर के, कहू कछु गुन गाय" ।।१८।। कछु भवानी वर दियौ, कछु अपनी बुध उनमान । कछु बचन सुनि चंद के, कवि गुन कह्यौ बखानि ।। १६ ।। जुग कीरति जसवार करि, गये सूर अरु मीर । ना थिर रहे अलावदी, ना थिर रहे हमीर ।। २० ॥ १ ख. वैसाक । २ ख. सत जस कियो । ५-६ ख. श्री प्र.पा.। ७. वखान । ३ ख. नहीं । ४ ख. यह नाय। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमीररासो ०- - रनतभंवर रिखि पदम, उगर तप तेज कराई । यंद्रासन डग-मगे, सुरपति' संक्या खाई । यंद्र सहेत सब देवता, दे सराप कहि२ येह । बरस सहसलौं पदम रिखि, रहो श्राप की देह ।। २१ ।। तास अंस सौं भयै बहोरि, रिखि इते उपाये ।। सीस साहि पाय उखसी, उरथे भये हमीर । भये सूर दोऊ भुजनतें महिमा साहि'रु मीर ।। २२ ।। दोहा ग्यारा सै चालीस ११४० मक्र, द्वादसी सनिवार । तजि विसहर की देह, पदम रिखि पहौंचे सुरपुर ॥ २३ ॥ यते भये ता अंस सौं, महीमा साहि'रु मीर । हजरति साहि अलावदी, द्वै उरवसी हमीर ।। २४ ।। कातिग पिछले पाखि,५ उत्तमि द्वादसि सुकल पखि । दिली जनम भयो साहि, राव गढ रनतभंवर पर ।। २५ ।। भूय समात न भवन कहू, बंदीजन की भीर । प्रगट भयो चौहान कुल, जनमत राव हमीर ॥२६ ।। हद समैं येक पतिसाहि, सिकार खेलन बन जाई । जिती साहि की हसम, सकल बन में भरमाई ।। हुरम साहिके संगि सु, तो वन गई भुलाई । लिखिया लेख नसीबका, मिलेज महिमासाहि ।। २७ ।। १ ख. सुरनपति । २ ख. कहियो तिसी । ३ ख. नहीं । ४ ख. में : ५ ख. पाखि की। ६ ब. रनथंभौर । ७ स. नहीं। ८ क. लुभाई। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमीररासो . 7 असो करम' संजोग हुरम, हजरति की विसराई । होतिब मिटत न अमिट, निकट महमा के आई ।। असे २ गंधवसि कूरम भया, भई मीर मतिमंद । सेर मारि करि सेख रह्यो, साहिकी हुरम संग ।। २८ ।। दोहा चलि आया पतिसाहि तहां, देखे महिमा साहि* ॥ २६ ॥ भयौ कोप पतिसाहि, रोस नहीं अंग समानै । खड़ा सेख कर जोड़ि, साहिकौं सीस नबायै ।। साहि बचन यम ऊचरै,५ ६कर तुजे तकबीर । गरदन कुटन कबूल करि, पड़ि तुझे तकसीर ।। ३० ।। सेख दोऊ कर जोड़ि, साहि कौं सीस नवावै । खूनी हाजरि खड़ा करो, हजरति मन भावै ।। हुरम बचन यम ऊचरै, सुनौ बचन पतिसाहि । गरदन प्रथम कबूल मुझि, पीछे महिमासाहि ।। ३१ ।। कहां मैं कहां या सेख, किन्है पंगाम पठाये । जुड़िया जोग संजोग, साहि करतार लिखाये ।। कहां फंद कहां पारधी, रहत मिरग वन खंड । लेख न मिटै ललाट के, परत पाव जहां फंद ।। ३२ ।। सुनि हजरत यह बचन, फिकर करि निजर छिपाई। जाव सेख मति रहो, जितै मेरी पतिसाही ।। साहि बचन यम ऊचरै, सुनि रे महिमां सेख । इसा तुझै को रखवै, च्यारि कूट चहू देस ।। ३३ ।। १ क. असा कारन संग, ख. करम के संग। २ ख. मधकर मैक बस भयो, . ग. मधुकर मसक बस । ३ ख. महमंध । - ख. नहीं । ५ ग. वच्चरे । . ६-६ ग. करहु तुमैं तकबीर। ७ ख. हमारी, ग. जहां लग हमरी। ८ म.. अरा, ९. अंगवै। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 8 : हमीररासो कीनां कुटन खराब' कुबुधि, हजरति कहै तेरी । इती सेस के सीसि आन, हजरति कहै मेरी ।। च्यारि कूट चहू देस में, खूनी कहां समाय । तुझै पासि को रखवै वो, मुझि सौं बली बताय ।। ३४ ।। तुम सौं बली खुदाय, और हजरति नहीं कोई । जो उन लिखिया लेख, साहि सौ मेटे न कोई ।। सरमरि हजरति सौं कर इसा, सूर नहीं कोई [सूर ]वीर । दीखत मुझि' दो दीन बिचि, हजरति येक हमीर ।। ३५ ।। कहै सेख कर जोड़ि रजा, हजरति जो पाऊ । दिली बहौरि न पाय, साहिकौं सीस नवाऊ ।। इति प्रान पतिसाहि की, हजरति रहौं न कोई । जुड़े जंग सफजंग जहां हम तुम मिलना होई ॥ ३६ ।। दिली छाडि करि चलै बहौरि, उलटे नहीं चाहै । मीर गाबरू११ वीर मिलत, धर पर मुरझायै ।। बहौरि बचन यम ऊचरै, हजरति हद तजि जाह । कै रहियौ राव हमीर के, के मके१२ की दरगाह ।। ३७ ।। फिर्यो हूं खान सुलतान, फिर्यो हूं सब हिंदवाने । कासमेरि गुजरात गौड़व देस बंगालै ।। दसौं देस फिरि प्रावियो, अब उपाय कैसौ करौं । कहै सेख हमीर सौं, अब 3 सरणागति ऊबरौं ॥३८ ।। तजै देस गढ़ कोट लोभ, जिवका नहीं कोई । अलादीन सौं तेग बांधि, राखै मोहि१५ कोई ।। नृप१६ देखे दस देस के, काहू मुख नहीं नीर । प्रलादीन सौं अंगवै," ऐसा कोन हमीर ॥ ३९ ॥ १ ख. खुवार । २ म. कहि । ३ ग. इसा सुभट को न सूर । ४ यहाँ के प्रति सं. घ. प्रारम्भ होती है। ५ क. नहीं, ६ नहीं पाऊ। ७ ख. नहीं । ८ ख. में प्र. पा. । ९ ग. तहां । १० ख. पावू । ११ ग. गाभल । १२ ग. मका की। १३ घ. तो अ. पा.। १४ ख. नहीं है । १५ ख. नहीं है। १६ घ. नरपति, ख. नर । १७ घ. तेग गहै । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमीररासो १ अलादीन पतिसाहि सु, तो ऐसैं फुरवावै । इती सेस के सीस इती, धर रहन न पावै ।। जीते नृपति दसू देसके, कोड धरत' न धीर । करि सलाम मोहेरम कहै, मुझि समझि र राखि हमीर ।।४०।। जब हंसिके कहै हमीर, पुरखि जो वचन निभाहै । परै सीस धर पाय जबै, कोऊ ले जाहै ।। पछिम सूरजि ऊगवै* बोल बचन करि ना फिरौं । हमीर राव यम ऊचरै, तो निमत्ति साको करौं ॥४१॥ अब दूत राव सौं कही५-- अलादीन औलिया, चहुं दिसि फिरत दुहाई । राव सेख मति रखो. दूत ये वचन कहाई ।। निबल सबल सौ बाद करि, कहो कौन सुख संचरै । सो हमीर नहीं कीजिये बहौरि जीव मुसकल परैः ॥४२॥ गये देव धर छांडि तेज, कोऊ१० ठहैराये । अलादीन पतिसाहि११ अगनि तै१२ तेज सवाये ।। राव समद१३ पतिसाहि सौं, धीरी१४ धरत न कोय१५ । यह खूनी पतिसाहि का, तुझि राखै अौगन होय ॥४३।। जीते सुर नर असुर सबै, रावन गहि लाया । रामचंद्र सौं छोड़ि१६ कहो, पीछै १७ सुख पाया ।। सागर सरमरि होत नहीं, नदी कूप का नीर । पतिसाहिन सौ जंग करि, को१८ जीत्या न(ही) हमीर ।।४४।। १ ख. धरै न। २ घ. नही है । ३ ग. महिमा । ४ ग. जावै । * ख. 'उलट गंग बहै नीर' अ. पा. । ५ ख. तब दूत बचन राव सो कहै छ, घ. दूत बहौरि राव सौं बचन कहता है, ग. अथ बचनिक प्र. पा.। ६ घ. ऊचरे। ७ घ. हमीर प्र. पा.। ८ घ. हमीर करिये नहीं । ९ ग. हठ छाडे न हमीर, साहि क्यों मुझे पठावो । सेख न द्यौं सो साहि तुम्है जो अब ही प्रावो ॥ महिमा साहि हमीर दोऊ तुम सौं कही सलाम । जो कछु लिख्या हमीर साहि सो पढि देखो फरमान ।। प्र. पा. । १० घ. कहो को ठहराये । ११ घ. की अ. पा.। १२ घ. सौं। १३ ख. समझे । १४ घ. धर। १५ घ. कोई। १६ ख. छोड़ि कर। १७ ख. किसो। १८ ख. कोई । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 16 : हमीररासो हमीर पातिसाहि का दूत सौं' कहता है कहै हमीर सुनि दूत बचन, सति ग्रसत न भाखे । मोहि बिन अवर न कोय, सेख को सर राखे || गह तेग पतिसाहि सौं, जुड़ौं जंग छाडौं न र हठ । कहियो निसंकयौं जायके, रह्यौ सेख रिगथंभ गढ ||४५ || सुनि हमीर के बचन, दूत दिली दिसी धाया । करि सलाम साहि कौं, जोड़ि कर सीस नवाया || उत्तर दखिन पूरब पछिम, सबै सेख फिरी थाकियौ । कौल बचन हमीर करि वो रणथंभोर गढ़ राखियो || ४६ || महरमखां दूत की वातें सुरिण पातिसाहि सौं कहता है समंद पार गया सेख, वार हजरति वो नाहीं । राव सेख क्यों रखै रहै हजरति की हद मांही ॥ इसे वचन पतिसाहि सौं, दूत न कहियौ बहौरि फिरि । नहीं तु सुधि वा सेख की, तू खबरदार नहीं बे खबरि ||४७|| पातिसाहि महरमखां सौं कहता है - फुरवान येक हमीर के तांई भेजो - लिखि फुरवान पतिसाहि, उलटि ओलची पठाये ॥ हठ मति करौ हमीर, चोर मति रखो पराये ॥ मुलक माल चाहो जितै, कहत साहि सो लीजिये । फुरवांन वांचि हजरति कहै, वौ चोर हमारा दीजिये ॥ ४८ ॥ | Jain Educationa International हजरत के ( फुरवांन) बांचि करि रात्र रिसाये । महिमासाहि न देऊ, क्यौं न हजरति चढि प्रावै ॥ बांह बचन करि१° राखियो " करि कौल कबहू न फिरू ११ लावदी साहि सौं, सार बांधि सनमुख लरूं ॥४६॥ ' १. ख. बबन अ. पा. । २. ख. नहीं । ५. घ. किम । ६ ख. म जाय । ७ ख घ. लिखि हजरात फुरवान । ९ ख कौल बचन करि ना फिरू / ३. ख. दूत कहियो । ४. ख. दिसी। महरमखां ऊजीर सौ, घ. बचन प्र. पा. कहर रुसाये । १० ख. दे । ११-११. घ. For Personal and Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमीररासो : 11 बचनिका या फुरवांन पातिसाहि पै उलटा भेज्या। फुरवांन बांचि हमीर पे पातिसाहि बहौत इतराज हवा । महरमखां उजीर पातिसाहिसौं अरजकरो दूसरो फुरवान और भेजो। केता गढ रणथंभ राव, जिस परि गरभाये । हम दसू दिस बसि करे, जीत करि पाय लगाये ।। साहि बचन यम ऊचरै, मैं ऊली औलिया पीर । महिमासाहि न रखियो, अजहूं समझि हमीर ।।५।। बचनिका हमीर फुरवांन बांचि११ कहता है१२... छंद बेर बेर फुरवांन कहा, हज रति फुरमावै । याहि पकरि जो देऊ, वहौरि सरने को पावै ।। पछिम सूरजि उगवै. उलटि गंग बहै नीर । कहियो दूत पतिसाहि सौं, हठ छाई न१३ हमीर ॥५१।। दियो पदमरिखि राज करूं, १४ जबलग सोई । जे पायो गढ संवत १५ निमति, मेट नहीं कोई ।। अनहोनी होनी नहीं, होतबि मिटै न कोय । रिजक मौति करता बिनि, साहि न करि है कोय१६ ।।५२।। मिलौं न साहि कौं प्राय, न जोरि कर सीस नवाऊ । जे प्रावै पतिसाहि, सार चौगान संभाऊ ।। अलादीन पतिसाहिकौं, लिखै राव फुरवांन ।। महिमासाहि अमीर को, लिखिन देऊ चितरांम ।।५३।। १ ख. खिदायो, घ. लिख दिया । २ ख. रूसाये । ३ ख. फेर अ.पा. । ४ घ. खिदाओ, ख. फेर भेजो। ५ ख. रूसाये । ६ घ. किये, ख. अर जीति । ७ घ. अलावदी। ८ ग. प्रौजू। ९ घ. राव अ. पा.। १० घ. पतिसाहि को अ. पा.। ११ घ. करि प्र. पा.। १२ ख. राव हमीर पातिसाहि सुबचन कहता है। १३ ख. नहीं । १४ घ नहीं है। १५ ग. समंत । १६ ख. दिन ही दे सके न कोय, ग. नहीं साहि कोई और। . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 12 : हमीररासो ० बचनिका ये' फुरवांन हमीर के दूत ले दिली चालै५ छंद दूत दोऊ कर जोड़ि, साहि कौं सीस नवावै । हठ छोड़े न हमीर, साहि क्यौं मुझे पठावै ।। महिमासाहि हमीर वै, तुम सौं कही सलाम । जो कुछ लिखिया साहि कौं, पढ़ि देखो फुरवांन ॥५४॥ बांचि साहि फुरवांन, बहौत यतराज कराई । महरमखां कर जोरि, साहि सौं अरज कराई ।। इत फेरि रणथंभ, साहि किन भेजे काई । दिली सुर पति साहि, बचन तीजे अचराई ॥५५॥ लिखि तीजो फुरवांन, कोपि१० पतिसाहि पठाये । तुमसे' किते हमीर. पकरि करि पाय लगाये ।। करो राज रणथंभ का, बहौरि हमीर हठ मति करौ । मिलौ प्राय गहि सेख कौं, होय नोकर पायन परौ ।।५६।। अपना भवन हमीर, कौन पावक ले जारै । पतिसाहिन सौं तेग१२, भूलि भनमें मति धारै ॥ ये हमीर हठ मति करौ, गिर परवत वन जुग जरै । प्रलादीन पावक असहै, जो या कन कन परजरै१४ ।।५७।। १ घ. ख. हमीर के । २ घ. नहीं है। ३ घ. दूत ले करि । ४ घ. प्र. पा. । ५ ख. पाये। ६ ख. मुझि क्यू। ७ घ. हमीर प्र. पा. । ८ ख. लिखी । ६ ख. ग. घ. पूरा पद्य नहीं है । बचनिका-जब पातिसाहि इतराज बहोत करि । तब महरमखां उजीर कह्यो-हिंदू तीसरा फुरवांन लिखि भेजो। ख. ग. दिली का पातिसाहि बचन तीसरा मारता है । घ. जब पातिसाहि बहोत ऐतराज करि तब महरमखां उजीर कही तीसरो फुरवांन हिंदू को भेजी.......। १० घ. करि अ. पा. । ११ ख. तुज । १२ घ. गह अ.पा.। १३ ख.ग. पद्यांश नहीं है। १४ घ. पद्यांश नहीं है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ हमीररासो : 13 दखिन देस अरु उत्तर, पछिम पूरब धर लीनी । कदम लागि कर भरत, कौंन मुझि' सरभर कीनी ।। मोहि अलावदी साहिसौं, कौन सार गहि जंग जुरै । सुनि हमीर दरियाव की, क्या सलिता सरभरि करै ।।५।। जब हमीर फुरवांन, साहिके वांचि सुनाये प्रलादीन कौं ज्वाब, फेरि पीछा भिजवाये ॥५६।। छंद जुग पावक सौं जरै, नीर नहीं पावक जरई' सुनि अलावदी साहि, काल बिनि कोई न मरई ।। सरन राखि जे" सेख छौं, सूर जैत लज्या परै । लिखिये बचन हमीर' जो, साहि° सीस खूनी परै ॥६॥ गंग जमन दोऊनीर,पिछमि दिसि उलटि बहावै । बचन तेज नहीं तजौं, साहि तुमसे१२ सौ पावै ॥ रकत 3 नैन करि दूत दिसि,भाखै बचन रिसाय१४ । कहै राव रणथंभ दिसि, खड़िये बेगि पतिसाहि ।।६।। अब चलै दूत मुरझाय, दिली दिसि करै१५ पयानौं । गढ रणथंभ हमीर, साहि कैसे१६ कमि जानौं ।। भये देस दसि साहि वसि, हरे सकल नर नीर । अबकै पतिसाहि अलावदी, कै१८ पतिसाहि हमीर ॥६२।। १ घ. मोसौं । २ स्व.ग.घ. मुझि । ३ घ. नहीं है । ४ पूरा पद्य नहीं है । इसके स्थान पर निम्न बचनिका है- ग. घ. बचनिका-जब हमीर पातिसाहि को फुरवांन का जवाब लिखता है, ख. ज्वाब करता है। ५. घ. भरै । ६ ख. पावक सौं, प. कराये । ७ घ. रे । ८ ख. सूरज तल लज्या। ९ ख. घ. पतिसाहि सौं । १० घ. डरै। ११ घ. दोऊ उलटि बहावै । १२ ख, घ, नहीं है। १३ घ. राज तजौं नाना करि । १४ घ. नरेस । १५ घ. कियो। १६. ख, घ. साहिकी संक न भाने । १७-१८. घ. कहै । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 14 : हमीररासो ०-- सुनै दूत के बचन साहि', सन मुख चाहै कितोयक राज हमीर, करै हठ मोहि बुलावै ।। जतन जतन समझाविया ६, बचन बचन बहोते बढे । राव हमीर चौहान के, किती हसमदल संगि चढे ।।६३।। हजरति राव हमीर, मैं बहोत बात समझायो । सुनि महिमा कौ बचन १, रोस करि राव रिसायो ।। कितै मारि भड़ मेटियै, जितने ही सौं जंग करै । हमीर राव चौहान जो१२. साहि१३ संक निमक न करै ।।६४।। हजरति ले फुरवांन, दूत सौं बचन कहाई । जो परपन रनथंभ, राव के अबै बताई ।। कर जोड़ि दूत हाजरि हुवा, कहै हजरति सौं बात । जो उनमान चौहान का, कहता ही अब तात१४ ।।६५।। सुतर १५ सहस लख,तुरी उभैलख,दोय १६ पयादल१७ । मद बहतै गजराज, पांच सौ चलत१८ पटाधर ।। रगतभंवर १६ चीतौड़गढ़, नलवरगढ़ ग्वालेर । ह्वां नाहीं हुकम पतिसाहिका, करै सु राज हमीर ।।६६।। तुरी सहस इकतीस, असी गजराज अमानै । सूरवीर२० दस सहस, तेग काहू की ना२१ मानै ।। इती हसम रणथंभ गढ २२, इती राव रणधीर सौं । दूत बचन यम २३ ऊचरै,हजरति हठ न २४ करहु हमीर सौ ।।६७।। १ ख. जब अ. पा. । २ ख. घ साहि सू। ३ ग. चाह्यो । ४ घ. मुझि । ५ ग. बुलायो। ६ घ. चौहान कू अ. पा.। ७ ग. समझाइया । ८ ग. बढयो । ९ ग. सब्ब। १० ग. घ. नहीं है। ११ ख. घ. नांव । १२ ग. को, घ. नहीं है। १३ घ. सोच की संक न करै । १४ ख. ग. घ. पूरा पद्य नहीं है । इसके स्थान पर बचनिका है। बचनिका-पातिसाहि दूत सौं कहता है । जेता हमीर का परपन सो सारा मुझि सौं कहो । १५ ग. सतरि । १६ ग. अर। १७ ख. पैदल । १८ ग चपल । १९ ख. रणथंभोर, ग. रणथंभ केर। २० ख. सूरवीस ! २१ घ. नहीं । २२ घ. गाडी २३ ग. इम वच्चरै। २४ ग. घ. मति करो। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . हमीररासो : 15 दोहा पातिसाहि तब दूत सौं, फिरि पूछी मन लाय ।। राजनीति साबूत के, कहिये बात बनाय ॥६॥ दूत कहै पतिसाहि सौं, चित दे सुनिये साहि । राव नीति अरु रैति (की), कहत जू देखी ताहि ॥६६।। मद मसीति मेटि जे हरखि, हरि मदिर कीजै । बंग निवाज नहीं होय कथा, हरि स्रवन सुनीजै ॥ रोजा बंग निवाज, कुरान कलमा न भनीजै । मुसलमान का नाम, साहि वहां कहूं न सुनीज । नहीं दीन दरगाह साहि, जहांन पैकबर' पीर । कलमा कहुं न कहि सकै, जहां लग राज हमीर ।।७०।। आ तरनि सौं पुरखि साहि, [रहसि] करि सके न कोई। पिता पुत्र इक ठौर बैठि, सरभरि नहीं होई ॥ पुरखि पान की असतरी, तकै मारिये डारि । जहां जहां राज हमीर का, जहां पतिभरता नारि ॥७१।। दोहा फेरि पूछी तब दूतनै, कैसा गढ़ रणथंभ । जाके गरब हमीर अव, फिरिया मुझि अचंभ ॥७२।। १ ख. ग. घ. पूरा पद्य नहीं है। इसके स्थान पर बचनिका है। वचनिका-केर पतिसाहि दूत सौं बचन कहता है। राव हमीर की नीति साबित को समाचार कहो। राज कीसी नीति सौं करता है । ये समाचार हमीर के कहो । २ ख. ग. अस्त सबद सुनि त्यामिये, सति के बचन सधीर । कलिजुगि पाई सके नहीं, जहां लग राज हमीर ।।प्र. पा.।। ३ ख. काहूंन । ४ ख. घ. नहीं अकबर। ५ ख. नहीं है। ६ ग. राव । ७. ख. हांसी। ८ ग. प्रति में [ ]| ९ ख. ग. ध तो डारिय मार । १० ग. घ. पूरा पद्य नहीं है। इसके स्थान पर बचनिका है, बचनिका-रि पातिसाहि कहता है. गढ़ रणथंभ कैसा है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 16 : हमीररासो छंद खट सहस द्वार ररणथंभ, सुखी सब, दुखी' न कोई । राव कर लेत न कोई ॥ बही कर वहां साहिर, ताल पांच रिरणथंभगढ़ में दोय भंडार सूभर भरे i. हीं नीर को छेउ । और गनेसगढ़ देव ||७३ || फिर पूछी पतिसाहि, रात्र के क्या खैरायति । दूत वचन सूनि यौं कह्यौ, सुनु राव की विसारति ६ ।।७४ || । सवा पांच ( मन ) कनक निति, गऊ द्वादस निति दीजै इति राव के खैरि साहि, दिन ऊगत कीजे 11 पारसि की पैदास निति, माल भडारन संचरं हजरति राव हमीर की, और कौन सरभरि करे ॥७५॥ । पंछी सब आवै । मन द्वादस चुग पड़ें १०, जहां " अंध अपंगरू विरध, राव के भोजन पावै ॥ कहां लौं कहौं हमीर गुन, कहत न आवै मोर १२ । दाता सूर हमीर सम3, निजरि न आवै १४ और ||७६ || १५ I दोय लख बरकंदाज रहै, चौकी निति गढ़ की सतरि तोप ररथंमि ६, गरद असमांन दमंकी' 11 सरण सूत सोर दस लाख मरण, दो सम धात वखानियै । करि सलाम कहि दूत" ये, यामै असत न जानिये ॥७७॥ १८ > पतिभरता ते धरम इति श्रासा निति साधत । है नारि कर सारि, पुरखि संग खेत २० न छाडत ॥ श्रासा रांनी येक सुत, देवनि राज कुमारि । जाहि २१ २१ निरखि रवि रथ थकै करत भंवर गुंजार २२ ॥७८॥ १ ग. दुखिया । २ ग. वहां सु साहि, ख. अकर सुसाहि वास है । ३ ग छेव । ४. द्वै । ५ ख श्ररु । ६ ख. म. घ. प्रति में पूरा पद्य नहीं है। इसके स्थान पर बचनिका है । बचनिका - बहोरि पातिसाहि कहता है- राव हमीर के खैर खैरायति क्या होती । ७ ख दीजिये ८ ग. खैराती । ९. ग. दीजै । १० घ. परं । ११ . नहीं है । १२ ग. छोर, ख. घ. छेह । १३ घ. सो । १४ ख. घ. कोई अपा. १५ ख. घ. रहै निति चौकी गढ की । १६ घ. गडि न. पा. । १७ ख ग घ धरती । १८ घ. कहै दूत पतिसाहि सौं, ग. साहि सौं प्र.पा. । १६ म यतै । २० ग जंग | २१. ताहि । २२ श्रागे पृष्ठ १७वें पर * चिह्नित टिप्पणी देखें । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमीररासो : 17 दोहा फिर पूछत है दूत सौं, हजरित गीढ़ि बुलाय । रहनी करनी राव की, सो मो देहि बताय १ ॥७६।। काछ वाछ (च) निकलंक, जति जोगारंभ साधत। इते राव वहै। विड़द सार, गहि खेत न धाड़त ।। राज नीति पिरजा सुखी, अरु मेटत पर पीर । बरस पाठ पर वीस द्वै, येती उभरि हमीर ।।८।। बंद जन दरबारि द्वारि, केऊ विरुद3 वखान (त)। राव दानि निति देत, मंगत जन जो मुख मांगत ।। दाता सूर कलजुग करन, गुनि चहु दिसि जस करै । अति प्रवीन विद्या सबै, असति बचन नहीं ऊचरै ।।८१॥ गढ़ प्रकट रणथंभ साहि, नहीं चहू दिसी सांनौं । विभो यंद्र को राव', कहांलौं ताहि बखानौ ।। भवन भंडार कुमेर सम", जहां रिधि नौ अस्ट सिधि । हजरति राव हमीर के, लोहा कंचन होत निति ।।२।। बीस सहंस घ्रत निमक, सहस दस कैफ तिजारा। • केसरि तैल कपूर भवन, केऊ भरै भंडारा ।। जो प्रवाण रिणथंभ का,सुनि साहि सो' जानि जस । अनि सामंत हमीर के, इकसठि लाख हजार दस ।।३।। दोहा माल(ती)मरवा' मोगरा१२, कदली१३ कली सुगंध । चहुं दिसि बाग हमीर के, जिन४ वीचि गढ़ रणथंभ ।।८४|| १ ख. घ. यह पद्य नहीं है । इसके स्थान पर बच निका-फिरि पातिसाहि दूत कू पूछता है-राव हमीर, शापरी रहनी करणी में खबरदार ख. घ.। २ घ. को। ३ ख. प. विड़द । ४ घ. करण । ५ घ. राजा । ६ . सा । ७ घ. कहैफ, ख. परि तिजारा। ८ ख.ग.घ. कनक । ९ ग. केई। १० ख.ग. मैं कह्यो सब । ११ घ. चमेली। १२ म. केवरा। १३ ख. प. कजली । १४ घ. जिसि। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 18 . हमीररासो छंद सुनै दूत के बचन साहि, जिव संक्या प्राई । करि अलावदी रोस, सात कोपी पतिसाही ।। जतन जतन समझाइयो, उलटा मंछी नीर सौ' । कोपि बचन हजरति कहै, जुड़िये जंग हमीर सौ ।।८५।। ग्राम खास उमराव सबै, पतिसाहि' बुलायै । हठ हमोर सौ४ किया, सेख रखि६ संभाये ।। उतर दखिरण पूरब पिछमि, फिरत हमारी प्रान । कहत साहि रणथंभ का, क्या हमीर चौहान ।।८६।। तब खड़े अलावादी मीर सबै, हजरति दिसि चाहै । अपनी अपनी मिसलि, साहि सौ १० सीस नवावै ।। कहत बचन सव साहि सौ, करि करि मीर सलाम । बेर बेर११ हमीर कौ१२, मति भेजो फुरवांन ।।७।। दोहा महरम खां पतिसाहि सौ, जोड़े हाथि हरि । मुसलमान चहूंवान की, सुनिये साहि गरूरि१३ ।।८।। छंद पहलै हसन हसीन, सैद चौहांनौं पेलै । सातबेर प्रथीराज साहि, गौरी गहि मेलै १४ ।। वीसलदे अजमेरि गढ़ किते, साहि गहि बसि करै १५ । करि सलाम पतिसाहि सौ, महरमखां यम ऊचर ६ ॥८६॥ १ ख. घ. ज्यौं। २ हजरति । ३ बुलवाये। ४ ग. घ. मुझि। ५ घ. कियो। ६ घ. करि प्र. पा. । ७ ग. दछिन । ८ ग. अदालति, ख. ग. के मीर । ९ घ. कौं। १० ख. ग. घ. कौं। ११ ख. ग. राव हमीर कौं। १२ घ. पै । १३ यह पद्य नहीं है। इसके स्थान पर बचनिका- जब अरज महरम खां पातिसाहि सौं कहता है । ये पातिसाहि (सौं) आगली बातें चौहानों की कहता है । * पिछले १६वें पृष्ठ की टिप्पणी सं. ८ से यहां तक का पद्य भाग ग. संज्ञक प्रति में नहीं है । १४ ख लाये। १५ घ. किये। १६ ग. वच्चरै। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमीररासो : 19 गीदड़ स्यंघ सिकार, साहि येको नहीं जानौ । रनत-भंवर दिसि भूलि, साहि मति करो पयानो ।। वह सूरा रणथंभ गढ़, तुम अलावदी पीर । अजमति में सरमरि दोऊ, हजरति राव हमीर' ॥१०॥ कालबूत को सेख येक, हजरति बनबावै । अंबखास करि खड़ा, उसे गरदनि मरवावै ।। खूनी पास' हमीर कै६, जानत दुनो अरु दीन । हजरति रोस विसारिये, करिये मनै मुहीम ।।११।। क्या मगरूरि हमीर', पलक'० में पाय लगाऊ : खूनी महिमासाहि, उसे गहि दिली लाऊ ।। येक राव रणथंभ का, इता१ किया अभिमान । कोपि साहि भेजें जबै१२, दसौं देस फुरवांन ।।१२।। दोहा कौन कौन पतिसाहि के, पाये खड़े उमीर । भेला दल दिली हुआ, जुड़ण जंग हमीर१३ ।।६।। छंद मिसरख देस खंधार खड़े, गजनी दल आये । धुरि काबलि खुरसांन, कोकि१४ पतिसाहि बुलाये ॥ अयुत १५ अयुता अबदाल१७ दल, दिली प्राय येते जुड़े । करि सलाम पतिसाहि सौं, कर जोड़े हाजरि खड़े ।।१४।। १ ग. घ. मति। २ यहां से प्रति ङ. संज्ञक प्रारम्भ होती है। ३ ख. ग. बनवावो। ४ ग• मरवावो । ५ ग. साहि । ६ ग. ताहि अ. पा. । ७ ग. मेने, ख. मन करिये मुहीम । ८ ग. क्या सु मगज। ६ म. पै. अ. पा. । १० रु. एक अ. पा.। ११ ख. किता, घ. इता। १२ ख. अब तुम भेजिये । १३ ख.ग.घ. इस पद्य के स्थान पर बचनिका है। बचनिका-कौन कौन देस पातिसाह के प्रावता है। १४ ग. घ. कोपि। १५ ख. ग. घ. मारब । १६ ग. अरु । १७ ख. प्रारबदल । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 20 : हमीररासो - - - रूम स्याम कसमेरि इरांन', तुरां' दल पाये । हबस' बंग दल खड़े जब,- साहि रणथंभ चलाये ।। गढ़ कोट देस परलै करौं, मुझि अलावदी नाम । हजरति कहै हमीर का', अब देखू पाराम ।।९। सोरठ गढ़ गिरनारि, दखिरण पूरब धर जेती । लगै साहिके पाय, प्राय मिलि हजरति सेती ॥ अलादीन पतिसाहि सौं, को करि सकै गुमांन । हजरति के हाजरि चलै, इतै देस हिंदुवांन १९६॥ साहि सनीचर बार,कोपि रणथंभ दिसि चलिया। दसौ देस पाय लागि, साहिकौ सनमुख१ मिलिया१२ ।। ग्यारा सै अट्यासिया (११८८), चैत मास चंद रोज । चढियो साहि अलावदी करि हमीर पं फोज१3 ।।६७।। खड़िये मीर अमीर सब, रणथंभ१४ दिसि धायै । धर अंबर रज छाय'५, चलन कोऊ पंथ न पावै ।। बांधी तेग हनीर पै, जैत १६ साहि जगदीस । सपत लाख हिंदू हसम, मुसलमान लख वीस }|६८ डाक येक दस सहंस, खबरि चहुं दिसि की लावै । बेलदार लख च्यारि, पुहुमि में १७ नीर पिवावै ।। मीर मीर की मिसल परि, यक लख फिरत जसोल । हीमत बहादर अलीखांन, ये द्वे सूर हरोल ।।६६।। १ ख. कसमेरि तुवर दल । २ ग. इरा तरां। ३ घ. हसि बंग, ग. हबस बगस। ४ वा. ग. नांव। ५ म. घ. की । ६ ख. देखू हूं वाह, ग. घ. मुजि देखरण का चाव। ७ ख.घ. दसू देस । ८ ग. कोपि रणथंभ, ख. साहि बचन इम उचार। ९ घ. चढिये । १० ख. ग. दिसि चलाये। ११ म. प्राय अ. पा.। १२ ग. मिलिये। १३ ख. ग. घ. रोस । १४. ख. प्रति में-~-मीर उमराव साहि अलावदी. सूरज गिरदि छिप जात । थाट वाट सुध ना पडै, छिपै मिरद असमान धरति ।। चढयो दिली-सुर कोपि, रोर करि राव (रिसाय) । ये दस जोजन परमान, पड़त दल धर न समावै ।। अपा.१३ १५ ग. छ,ये। १६ ग जत । १७ ग. में नीर खिवावै । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमीररासो : 21 यक लख हाटि बाजार', दुनि' बनिया व्यौपारी । भठियारी लख च्यारि3, नान्ह पकावन४ हारी।। खरं' गोरख खचर (६ लख, है गसतागर लख च्यारि । येती हसम हरोल संग , हरवल हसम अगा (पा)रि ॥१००।। दवागीर लख येक, सहि सौंः दवा सुनावै । लंगरि खैरि निति बंट, रिजक हजरति के पावै ।। प्रवर१० बैल द्वैलख लहै', तोउपनके ताबीन । इती हसम पतिसाहि लै, कोपि१२ पयानो कीन ।।१०११॥ दोहा लख पैंतालीस सहंस दस, येतो दल परवांन । वाट घाट सुधि ना परै, छैत3 गरद असमान ।।१०२।। छंद चढयो दिलीसुर कोपि, राव१४ परि करि रिसाई । दस जोजन परवान पड़त, दल धरन१५ समाई१६ ।। चलत साह जब कुच करि, सूर गरद छिपि जात । धनि धनि कहै हमीर सौं, अलादीन पतिसाहि ।।१०३।। सात वीस लख हसम, तीन लख सुतर चलाये । पांच सहस गज' चलत, येक सौं येक सवाये ।। इती हसम पतिसाहि लै, चढयौ कोपि गढ़ सौ अस्यौ । चौहान रांन हर हर हंस, मनु येक टांडो परचौ ॥१०४।। .१ ग. सबै प्र.पा.। २ ग. दुनियां व्यापारी। ३ ग. येक । ४ ग. पकावत. बाजारिय । ५ ख. पाखर । ६ ख. लख दोई लख । ७ ख. सधी। ८ घ. अगाध । ९ ख. ग. कौं। १० ख. अवर दुनियर आवखा 4 लखदो, ग. नरबी खरब । ११ ख. ग. घ. चलै । १२ घ. कोपि करि कियो पयान । १३ ख. छिपत । १४ ख. .......................... कोपि रोस करि राव ।। ये दस जोजन परमान, पड़त दल धर न समाय । चढ़ि चढ़ि च्यारों दिसा,फौज चहु दिसी ते धाई ।। ग. दस जोजन की संकर सक सकत अरु भान । असी सहस दळ की परै, सहंस येक चहुवांन ॥ पा ॥ १५ घ. उपरि । १६ ग. भयो फजर वा हसम में, मिटि गये मीर अमीर । कर यादि पतिसाहि जब, गजनी गढ़ के पीर ।। इसके आगे 'छंद' से कथा प्रारम्भ है। १७ ख. गजराज, घ. हसत । १८-१६ घ. मड़यो, ख. पड़यो । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 22 : हमीररासो दसौ देस के मलिछ मिलि', खड़ि पायौ पतिसाहि । कहै हमीर: दीसै मुझे, सौदागर से साहि ।।१०।। वचनिका बहौरयौ पातिसाह हमीर कौं फरमान भेजे । छंद मैं मका का पीर, दिली पतिसाहि कहाये । हिन्दू तुरक दोयराह", सबै इकसार चलाये ॥ च्यारि वीर चौवीस पीर, भतै रहै मझि साथ । महिमांसाहि हमीर रखि१०,क्यों अदलि देत ११ बे हायि ।।१०६।। वचनिका राव फुरवांन लिखाय के । दे भेजे पतिसाहि कै१२ । छंद तुम१३ मके के पीर, मैं सूर सुरलोक१४ कहाऊ । हम तुम सरभरि नांहि१५ साहि१६ तुमको समझाऊ ।। जत छाड़े जोगी नहीं, सत छाई रजपूत । सेख न सौ पौ साहि कौ, तो लग सिर ७ साबूत ।।१०७।। हजरति अब ही न कसै करौं१८, जैसी होई आई । मुसलमान चौहान साहि, औसै चलि१६ आई ।। मीर ख्वाजे पीर से, खिसै खेत अजमेरि । असी सहस इक लख, उलटि मका गये न फेरि ।।१०८।। १ ख. ग. चलै । २ ख. चढ़ि । ३ ख. हमीर मुझि दीसतों। ४ ख. सो साथ । ५ ख भेजता है । ६ ख घ. कहाऊ । ७ ख. दोई इक राह चलाऊ । ८ घ. चलाऊ । ६ ख. घ पासि । १० घ. की। ११ घ. अदली भी आई हाथि । १२ ख. घ. राव हमीर उलटो फुरवांन पातिसाहि के ताई भेजता है। १३ घ. हजरति तुम । १४ ख. का प्रपा । १५ ख साहि: १६ ख. हठ । १७ घ. सीस । १८ ख जो अपा । १६ ख. होई । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ० चलाये । लगाये ॥ असुर मारि अजपाल, चहुँ दिसि चक्र बीसलदे अजमेर पाय, मंडलीक प्रथोराज गौरी गहै छाड़, दियो कर देचुरी । यतो सेख पैं हठ कियो, साहि बुधि कौंनें ही ॥१०६ ॥ हमीर रासो : 23 मिलै सेस जे सूर मिले, उदिया प्रस्तागर । उसहैत प्रकास प्राय जो लगै पुहमि पर 11 हठ हमीर तोऊ ना तजौं, सुनि दिलीसुर साहि । पहले सीस हमीर का, पीछे महिमां साही ॥। ११० ।। घर अंबर बीचि आय, साहि थिर रह्या न कोई 1 गये जरजो धन दसकंध, करन अरजन ने केई ॥ अमर सहि कलि को नहीं, दल हसम देखि न भूलिये । तुमसे कितै अलावदी भूमि छाड़ि मरि रज भये ॥ १११ ॥ आपन सूर कहाय और नहीं कायर गिनिये । अपनो जस मुख ग्राप, साहि कबहू नहीं भनिये || लिखिये लेख करतार के, मो हजरति मेटै नहीं कोई । को जाने ररपथंभगढ़, हजरित केस होई ।। ११२ ॥ हजरति में फुरवांन बांचि, सब के मत लिना । मसल करि उमराव, जंग का महजम कीना ॥ ११३ ॥ छंद तीन सहम नीसांन, धुरत अंबर थरराये रतन भंवर चहुं ओर, पुहुमि पर दल न समायै ॥ चहूँ दिसि चाहि प्रलावदी, बचन येक मुख ऊचरै । देखो कुबुधि हमोर की, यक सेख काज मुझि सौ फिरे ।। ११४ ।। बचन उचारै । राव सनमुख कर जोरि, रुद्र सौं गढ पिरजा प्राधीन, सदा सौं सरन तुम्हारे ।। ११५ ।। Jain Educationa International १ ख. प्रड़न पख श्राकास 1 २ इससे आगे, घ. संज्ञक प्रति 'छंद' से प्रारम्भ 1 १३ ख मा धर पर भयेज घूड़ । ४ ख. कीजिये । ५ ख. पद्य के स्थान पर बचनिका है- पातिसाह को राव हमीर फुरवांन लिखाय कर भेज्या । जब पातिसाह ये जंग का तजबीज किया । ६ ख. येक उच्चरे मुख । ७ ख पद्य के स्थान पर चचनिका है- हमीर शंकर की प्रसतुत करता है । For Personal and Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 24 : हमीररासो ० छंद सात वीस लख हसम, संगिलै हजरति प्रायै । तुम्हरे तेज प्रताप सेख ले सरण रहाये ॥ गौरी-पति को ध्यान धरि, ऊचरै बचन हमीर । राखौ अब रणथंभगढ़, बूडत है बिन नीर ॥११६।। रढ४ हमीर रणथंभ, ये संकर सरनाई । अबस हाई' कि न करौ, सात कोपी पतसाई ।। ह्र प्राधीन हमीर कहै, करिय मदति महेस । आयो साहि अलावदी, अरू दसौं देस के मलेछ ।।११७।। दिल दरेग [मति करो] सुरति साहिब परि धरियो । रनत भंवर करि जंग, साहिं सौं सनमुख भिरियो ।। कह संकर कर सीस धरि, हिम्मत न तजो हमीर । द्वादसि ऊपरि हूँ बरसि, निधड़क लड़ि रणधीर ।।११।। बरस च्यारि दस माहि१०, राव तोहि विधन न होई । होतिब मिटैन कोय, अंति किन देखो कोई ।। बारासै परि११ येक में (१२०१)साको गढ को होई । ये कादसी आसाढ सुनि १3 सनिवार पुख जोई ।।११।। दोहा संकर कहै हमीर सौं, गहो साहि सौं सारि राति दिवस लड़िबो करो, पड़े फौज परि भारि १४ ॥१२० - - १ ख गहाये । २ ख. गौरजापति । ३ ख. उचरत बचन । ४ ख. गढ रणथंभ हमीर दोऊ संकर की सरण माय । ५ ख. अब साहिको संकन करौ। ६ ख. दिलगीरी । ७ ख. पद्यांश नहीं है । ८ ख. कही ये संकर सीस धरि । ९-१० ख. पोश नहीं है । ११ स्त्र. बीस यक में । १२ ख. नहीं है । १३ सुदि । १४. ख पद्याश नहीं है । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमीररासो: 25 सूर सहंस पड़ि भोमि' तब, लख धड़ पड़ि है मीर । सेख न सौंपो साहि कौं, तो लग खड़े हमीर ।।१२१।। छंद सुनि संकर के बचन जबै, कर सार संभाये ४ । जब हमीर सौं बचन रहसि रणधीर कहाये ।। कनवज५ जो काके करी, सो अब जान हमीर । क्या अलावदी पातसा, क्या मके के पीर ।।१२२।। दोहा हमीर कहै रणधीर सौं, करो जंग अब जाय । हम पतिसाहि सौं पाधरै, चौड़े लड़िहौं प्राय ६ ॥१२३।। छद जब हमीर रणधीर साहि, परि सनमुख ध्याये। . अजमति अहमद अली, प्रथम दोई पुहोमी मिलाये ।। रख्या ७ करै हमीर की, संकर सकति अरु भांन । असी सहंस सवालखी, पड़े सहंस एक चौहान ।।१२४।। १. ख. पोहोमि । २. ख. पाड़े हमीर । ३. ख. पद्यांश नहीं है । ४. ख, इसके प्रागे बचनिका है- जब हमीर सौं रणधीर कहै छ। ५. ख. सो काका कनवज करी, सो छांणी रणधीर । जबी राव हमीर रणधीर सौं बचन कहता है। मैं पातसाहि सू बचन करता हूं। ६ इस पद्य के आगे से प्रति सं. (घ) का पाठ प्रारंभ होता है। बचनिका जब हमीर रावण धीर सौं बचन कहता है। मैं पतिसाहि सौं बचन कहता हौं । सफजंग चौ. प्राई करेंगे सो वह वचन हमारे पातिसाहि सौं गसत प्रावता है जब हमीर रणधीर --[ख.घ.] ७. ख. रिछया । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 26 : हमीररासो - - दोहा भयो' हैफ जिव साहि के, मिटि गये मीर अमीर' । करै यादि पतिसाहि जब, गजनी गढ़ के पीर ।।१२५।। बगतर पाखर टोप, अंग प्रावध सब सज्जै ४ । किया हुकम पतिसाहि, तबल चहु दिसो कौं बज्जै ।। पाये कोप हमीर परि, जब गही तेग रणधीर । सहस बीस पाड़ी हसम, बादधखां के बीर ॥१२६।। दोहा भयो सोच मन साहिके, जीत्यो जंग (अ) हीर' । सातवीस लख हसम बिची, करि गया जुलम हमीर ॥१२७।। छंद कर महरमखां जोडि, साहि सौं१२ अरज कराई। देख्या राव हमीर, सेख गहि कदमौं आई१४ (?) ।। करि सलाम पतिसाहि सौं,१५उच्चरै बचन उजीर। गहि तेग पतिसाहि सौं, बैन' न तजै हमीर ।।१२।। दोहा जब साहि उजीर सौं, भाखै बचन रहेसि । गढ निरगह चहुं दिसी करो, ज्यों जीते जंग सुरेसि'८ ॥१२६ ।। १., ख. उपज्यो, घ. भयो फजर वहसे मन । २ बुलाये प्र. पा । ३. यहां से प्रति सं. (ग) का पाठ प्रारंभ होता है । ४ ख. छाजे । ५. घ. जदि । अ. पा. ६. ग. ते । ७. घ. जदि। ८. ख. हसम पाड़ि गजनीगढ़ के मीर। ६. घ. बादति ही के । १०. ख. ग. हमीर । ११ यह पद्यांश (ख) प्रति में नहीं है । १२ ग. साहि कौं बचन सुनाये। १३ यह पद्यांश (ख) प्रति में नहीं है । १४. ख. ग. लाये । १५. घ. कू। १६. ख घ. बचन । ७१. ख. घ. बच निका-महरम खां उजीर पतिसाई सौं प्ररज करता है (अ.पा.) १८ ग. बचनिका-- जब पतिसाहि महम खां सों बचन कहता है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Educationa International बचनिका महरमखां पतिसाहि सौं, भाख बचन उजीर । छंद ૧ करि कुरान गहि साहि, सीस साहिब कौं नाये । गढ़ दिसि दल चहू और फेरि' धरै अंबर छाये ।। भाख बचन प्रलावदी, चहूँ दिसि हसम निहारि । आई दलि हमीर की, चंद रोज दोय च्यारि ॥१३०॥ ० छंद दिई के हाथ दलि, हजरति क्यौं जाने । होनहार नहीं टरै कोटि स्थानपर उर आने || हजरति अपने इसट पै पावक जरै पतंग | ६ ये हमीर कबहू न तजै, सेख टेक रणथंभ ।। १३१।। यहां मरहम पतिसाहि, बौत मनसूब बनाये | गढ पे राव हमीर रहसि रणधीर कहाये हमीर रासो : 27 For Personal and Private Use Only ।।१३२॥ छंद साहि चहू दिसी जीति अबे, रणथंभ गढ आये । जब हमीर (र) सौं बचन रहसि ररणधीर कहाये || अपना धरम न छांडिये, यम उचरत रनधीर । निसि वासर पतिसाहि सौं, करिये जंग हमीर ।। १३३ ।। १ म फिरि । २. ग. घर | ३ ख. ग. घ. पद्य के स्थान पर बचनिका है । बचनिका - फिरि महरमखां उजीर पलिसाहि सौं कहता है । ४ ख. ग. घ. मिठे | ५ ख. स्थानप विचारो । ६ घ परि । ७ ख ग घ पद्य के स्थान पर बचनिका हैं। बचनिका-यां तो महरमखांनि पतिसाहि ( में ) बातें हुई । गढ परि रणधीर हमीर बातें करते है । ८ख. रणथंभ चलाये । ९ ख. हंसि, घ. पद्यांश नहीं है । Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 28 : हमीररासो . बचनिका जब हमीर रनधीर सौं, बातें कही बिचारि' । को कायर को सूर, धौंस बिनि दिसटि न आवै। बिनि सरजि की साखि, सार छत्री न संभावै ।। वीर२ गिरझ अरु जोगनी रैनि चरन पहोमि न वरै । हम अलावदी साहिलौं, रैनि सार कबहूँ न करे५ ।।१३४।। बचनिका तब राव रणधीर हमीर सौं कही - दोय सहस तोप हथनालि, बांन" केबरि भरि ताने । सनमुख लड़े हमीर, साहि की संक न मान ।। घाटी घाटी साहि कै, माटी मिलत अमीर । राव जंग दिन में करै, लड़त रैनि रणधीर' ।।१३५॥ जुमे राति पतिसाहि. पीर प्रोलिया मनावै । रनतभंवर की फत देह,१° तो हम कदमौं प्रावै ।। कर जोरि साहि बंदगी कर, सुनि तारागढ के पीर। ना टूट रनथंभगढ, ना मुझि मिलै १२ हमीर ।।१३६।। १ खा. ग.घ. पद्याश के स्थान पर बचनिका है। बचनिका- राव हमीर रणधीर सौं कही। २ ख. मीर । ३ ख. चरै पहोमि न धरत पग । ४ घ जंग। ५ ख. गहू । ६ ग. नहीं है। ७ घ. बान कंवर भरि तानी । ८. ख. मिलि गये। ९ घ. राति लड़े रणधीर, ख. पागे बचनिका- जब अलावदीन पातसाहि अजमेरि का पीर प्रोलिया मनावता है, म.घ. बनिका-अलादीन पातसाहि अजमेरि के पीर मनावता है । १० ग.घ. तो कदमौं हम पावै । ११ घ. मीर । १२ ग. मिलत। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमीररासो : 29 जब ' मीरा नौ सयद, साहि की मदति पठाये । सिर उतारि २ लिये. राव परि ५ सनमुख ध्याये ।। पाये मदति हमीर को, उतरि अरस सौं च्यारि । पड़े सयद नौ खेत में, सूर ४ ले गये मारि ५ ।।१३७।। बचनिकाः- पोरों के नाम छंद प्रबदल हसन " रहीम, सयद सुलतानी मकी। अदली हकोनी अरु रसूल, मिलि गये जू मटी' ॥ रह्यो साहि मुरझाय जब, (अरु)११ पड़े पहौमि नव पीर । जब१२ इम कहै १३ अलावदी, अजमति अधिक हमीर ।।१३८।। बरस पाठ जिम हठे १४, साहि कहै १५ हाथि न आया । उलटि छांणि परि जाय, मीर उमराव बुलाया१६ । बकसी अमीर महरम खां, करि अरज कहाई१८ ।। लख १६ बलखी उमराव. सोई सदके भये (जु)साहि९• ॥१३६ ।। १ घ. जद। २ ख. अतारि ले हाथ में। ३ घ. पं। ४. घ. गये सूर वह मारि । ५ प्रागे बचनिका है- ख. तबै पातिसाहि पीर प्रोलिया मनावै लजा हमारी पीरां के नांव । ६ घ. नांव। ७ घ. हसन हुसेन सूर सुलतानी, ग. सहै दल सुलतानी । ८ ग. अदलि अलकान रहीमां कानी पर रसूल । ९ घ. सूरेल । १०. ख. जूजमी में। ११. घ नहीं है, ख पड़े पहोमिन परि मीर । १२. घ. जद । १३. ख-ग.. कही । १४ ख. गढ़ सं लई हठि। १५ ग. गाहै । १६. ........ घ. सब ही मिलि आये, साहि कौं सीस नवावै । कहै महरम खां बचन, सुनौं मीर उमराव ।। अलादीन इम ऊचरै, उलटि छांणि तुम जाय ।। १७. ख मीर, ग. अमीर इते सदके भये। १८. ख. प्ररज साहि दिसि इमि, घ बकसी ऊमीर महरम खां करी अरज, साहि दिसि येम कहाया। १९. ग. लिखत । २०. ग. हुतो। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 30 · हमीररासो ० सुन बकसी के वचन, मोच हजरति अति लाये । कहता बचन हमीर, सूर सोही निरबा (ह) हे ।। महिमासाही' हमीरगढ़, ये तीनों साबत खड़े । बाजी रही हमीर की, मुझि' कनकर कानै पड़े 3 ।।१४०।। महरमखां यम ऊचरै, साहि हिकमत यक' कीजै। पहिलै छांणि करि फतै, बहौरघौं गढ़ सौ जंग कीजै ।। रनतभंवर हलचल' परै, सुनि साको रणधीर को। मिलै राव गहि सेख कौ, यों सत घट हमीर को ।।१४१।। कहै पतिसाहि उजीर, छांणि गढ़ बेगा लीजै । चंद रोज के बीचि, फतै प्रब बैगी कीजै ।।१४२।। कोपि पतिसाहि रढ छाणि लग्गै । तीन सहस नीसान' ० दल साहि वगं"। दोय सहंस प्रारबो तेजि छुट्ट । गजि गिरिमेर पाखारण फुट्ठ १२ ॥१४३॥ उडि सोर दामू महताप' लग्गै । गये वन छांडि स्यंघ उत्तन तज्जै ।। पच्चीस१४लाख हसम चहूँ ओर फैरै । यहि भाति पतिसाहि गढ़ छांणि धेरै ।।१४४ कहै पतिसाहि बिलंब न कीजै । चंद रोज बिचि गढ़ छांणि लिजै ।। रणधीर कहै साहि मन धीर धरियै । मिलि चौगान सफजंग करियै ।।१४५।। निस्सान सो साजि सुर सबद बज्जै । राव रणधीर प्रावध सज्ज ।। वीरारस राग सिंधूज किन्है१६ सहस। इकतीस दल संगि लिन्है१७ ॥१४६।। १. ख. अरु। २. स. मुझि लड़ी फीट पड़े, घ. मुझि करकरया कान धरी। ३. ग बचनिका- महरमखां उजीर पातिसाहि सौं कहता है। ४. घ. क्यू। ५ घ. फेरि । ६. घ. हलचल पर। ७. ख साहि। ८. पद्य के स्थान पर बचनिका है । वचनिका- जब पातिसाहि महरमखां सू कहता है- अरे महर मखां छांरिणरु गढ़ चंद रोज बिचे फतै कीजै । जब महरमखां पतिमाहि सौं कही- हजरति का हुकम दरकार । ६. ग. ढारण। १०. घ नीसान साजिये । ११ ख ग. बज्ज । १२ घ. यह पद्यांश प्रति, (घ) में नहीं है। १३. यह पद्यांश प्रति (घ) में नहीं है। १४. घ. महताब । १५. ग.घ. बहै पच्चीस । १६. ग.घ. छांणि फत्तै कीजै । १७. म. कीन्हा । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमीररासो : 31 सूर दस सहंस फूल हथ' खेलै । अप्पर जिय राखि परमार पेले ।। इह भांति रणधीर चौगांन पाये । उडि जमी की गरद असमान छाये ।।१४७।। प्रबदल करीम पतिसाहि पेलै । मीर रणधीर चौगांन खेले ।। बहै बांरण केवर अरु चक्र चल्लै । कहै ' राव सूर अब होई भल्लै ।।१४८।। जब साहि सौं सुर सनमुख जुरिये। जहां हबस के मीर दस सहंस पड़िये ।। टूटि' सिर मीर धड़ पहोमि लख्खै । अध सहंस पड़ि सूर उड़ि प्रोझ भक्वै ।।१४६ जब राव रणधीर प्रापन सिधारै । अबदल-करीमखां'• पहोमि पारै ।। साहि रणधीर' 'सफ्रजंग जुड़िये । पतिसाहि दल उलटि कै कोसि फिरिये ।।१५० रणधीर क है २साहि बिलंब न किज्ज । चंद रोज गया बीति गढ़ छांणि लिज्ज ।। पढ़ कोट' कबहीन यौं हाथि पावै । ह कोपि पतिसाहि दल क्यों खिसावै।। १५१।। दोहा बरस - पांच गढ़ छांणि को, नहीं संबत पतिसाहि । है द्वादस ५ रणथंभ गढ़, निधड़क लड़ि पतिसाहि ॥१५२।। छद धनि सु राव रणधीर, साहि मुख प्राप सरहै । मुझि दिसि सनमुख प्राय, कोपि करि सारि संभाहै ।। साहि बचन यम ऊचरै, सुनि महरमखां मरि । जंग जोति बहौर यौं गयो, धनि सु राव रणधीर ।।१।३।। १. ख.घ. पलीता जु हत्थ । २. ख. अापका, ग. पाप जीव र परमार खिल्लै । ३. स्व. परमाल । ४. घ. प्रबदल केरि रैयति पति, अबदल्ल करीम पति हमारी, ग. प्रबै छांडि को जाय खाय कर निमक तुम्हारो । ५. ख. कबाण । ६. रणधीर । ७. घ. पेले । ८. घ. दूटि मीर धड़ पोहमि लग्गै । ९. ख. पाई। १०. घ. अबदल्ल के मीर पतिसाहि पेले । ११. घ रणधीर सौं। १२. ख. कहै पतिसाहि । १३. ख. चंद रोज बिचै गढ़ छांणि फतै किज्जै । १४. ख.ग.कोट ये कब ही नहीं : १५. ख द्वादस परि। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 32 : हमीररासो' जबै राव रणधीर, राव सौं वचन कहाये । जमियति हिंदूसथान, कोपि के राव बुलाये ।। १५४ ।। छन्द Jain Educationa International जब लिखि परवाने राव, वंस छत्तीस बुलाये । दल चौगान जुड्यौ उमगि दल बादल छाये ॥ कर जोड़ि सबै हारि भये, कहत बचन यम राव । मैं गही तेग पतिसांहि सौं, जीवन चहै सु जाव ।। १५५।। जब कहै काको रणधीर, राव सुनि बचन हमारो | श्रबै छांडि को जाय, खाय करि निमक तुम्हारो ॥ प्रलादीन पतिसाहि सौं, गढ़ छांडि चौरें लरौं । दल येतो पतिसाहि को, मारि खाग कन-कन करों ॥१५६॥ aafter जब राव रणधीर हमीरसौं बचन कहाये । जमीयति गढ चीतोड़ की नहीं जूं आई । सो लिखि फुरवांन सिताब दूत चीतोड़ चलाये । तब सोला सहंस जमीयत ले, कंवर बाल्हासी आये F १ ख. ग. घ. पद्य के स्थान पर बचनिका है । बचfनका - जब पतिसाहि राड़ सफजंग किम न करि । राह मोरछा की करी । जब राव रणधीर राव हमीर सौं जमीयत दूसरा थान [हिंदूस्थान ( ख ) ] की बुलावो । २ घ. फरवांन । ३ घ आये । ४ ख खड़े । ५ ख. अमराव ६. ग. खग्ग । ७ ख ग घ बचनिका- जब राव रणधीर बस्यौं राव हमीर सौं कही । जमीयत गढ चीतोड़ की प्राई नहीं सो लिखी फुरवांन सिताब बुलावो । जब राव हमीर फरवांन गढ चीतोड़ को चलाये । जब सोला हजार जमीयत लेकर कंवर खान वाल्हरणसी राव हमीर को मदति कौं आयौ । तिसको व्योरो । ( किंचित परिवर्तित पाठ ) For Personal and Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमीरासो : 33 छंद तीन सहंस कमघज, प्राठ चौहांन बखानौं । पांच सहंस पंवार, जमीयति येती जानौं ॥ रनतभंवर डेरा करें, मिले राव सौं आनि । करि मनुहार आगे लिये, कंवर फौज सनमानि ॥ १५७ ॥ छंद बिक्री चतरंग के कंवर ररणयंभ प्राये । सनमान करि राव उर कंठ लगाये || मिलत ही कंवर दोऊ ? बचन भाखे । धनि सेख तुम सरणि राखै ॥१५८ ।। 3 ते दिन साहि रनथंभ लरिये । राव तुम यादि हम कौंन करिये ॥ पतिसाहि सौ राव हठ करि न छाडो । वस चौहान के नीर चाढ़ो ।। १५६ ॥ निठे सामान सफजंग कीजै । रतन को राज होतोड़ दीजै ॥ बच सुनि राव मुरझाय रहियो । बिछुरि मति जाव हमीर कहियो ॥ १६० ॥ थिर रहे न कलि कोय गिर मेरु चलिये । बिछुरि हम राव सूर लोक मिलिये ॥ श्रासावती' सौं कंवर भाखै । श्ररज करि राव सौं बात प्राखै ॥ सेहरा बांध सफजंग कीजे । देखि रजपूती अब फते कीजै ।। १६१॥ । १ ख ग घ ङ. पद्य के स्थान पर बचनिका है । हजार तीन कमघज्ज, हजार प्राठ चौहान, हजार पांच पंवार । येति जमीयत लेकरि रगत-भंवर डेरा किया। जब राव सौं मिसलत करि कंवर बचन कहते हैं । छंद कंबर खान बाल्हणसी को । २ ग. दोय । ३ ख. पातिसाहि । ४ घ. निकसी बाहर सफजंग । ५-६ ग घ पद्य के स्थान पर - Jain Educationa International रणवेस मिलि दोऊ न प्रणाम करिये । निरख नर नारि जल नैन भरिये । श्र.पा. ॥ जब राणी श्रासावती सौं को हमारे सिर सेहरा बांधो। जब राणी उछाह करिके कंवरन सिर सेहरा बांधे मोड़ घरि सीस दोऊ कंवर हरखें; 1 ङ. जब राणी प्रासावती उछाह करिके कंवरन के सिर सेहरा बांध्या । For Personal and Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 34: हमीररासो - मौर धरि सीस दोऊ कंवर हरखै । ईस गनेस देव पर से ।। वजत नीसांन असमान गरजै। कोपि' सूर चलै मनो बाघ बिरचै ।।। ६२।। दोहा करि सलाम रणयंभ को, लगि हमीर के पाय । चलै कंवर चतरंग के, जितै अलावदी साहि ॥१६३।। कंवर निकसी तब आय, छांणि दरवाजे डेरा । किय नौबति के नाद, प्राय हसम सौं नेरा ।।१६।। छंद ये सुनि नौबति के नाद, हसम दिसि हजरति चाहै । करि अलावदी यादि, मीर आरबी3 बुलाये ॥ खर दंत सुपर कने, गकस नौकर देह । ये पेले पतिसाहिने, कंवर दोऊ गहि लेहू ॥१६५।। तुम सांवंत प्रथीराज. गह्यो५ गजनी गढ़ लाये। तुम गौरी पतिसाहि, दिली के तखत बैठाये । साहि बचन यम ऊचर, सनि जमीमलखां वीर । गहो कंवर चतरंग के, यो कदमों लगै हमीर ॥१६६।। जब करि सलाम साहि को, मीर प्रारब के खड़िये । गहो गहो गहि लेहू, कोपि करि चहु दिसि फिरिये ।। यते कंवर चतरंग के, उत प्रारब के मीर । उति साहि सराहै १° पाप, मुखि पत दे स्याबासि हमीर ।। १६७।। १ ख. कोपि चल सूर मानो वीर चल, घ. कोपि चल सूर मानो बाध बरले । २ ख.ग.घ.. पद्य के स्थान पर बचनिका है । बचनिका- कवर छांणि के दरवाजे हेरा करै । हेरा करि उच्छाह करि नौबत बजाई। ३ ख. प्रारबके, घ. पारव सू। ४ ख. नौकस सकस देह । ५ ख.ग. गहै। ६ ख. सुनि जमलखां के मीर । ७ म. ज्यौं । ८ ग. लेहू लेहू । ९ ख. वतै । १० ख. सरावै । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - हमीररासो : 35 राव तबै मन सोचि, खबर गढ परि मंगवावै । सूर संखधर जाय, तुम [कंवर संगि] जुध करावो' ।।१६८।। छंद वे दोऊ वीर अजान सार, कबहू न संभाई । राव रही' चित सबी, नीर लोचोन भरि पाये ।। सूर संखधर भेजियो, करि जिय सोच हमीर । अब जुड़ों जंग पतिसाहि सौ, बिलंब न कीजै बीर ॥१६६॥ सत छाडि ग्रह चलै बहौरि, चित उलटि चलावै । उत न मिल सतलोक,५ इत पदवी नहीं पावै ।। बिनसै काया जीव अमर, जग समझत न अजान । ये बचन राव हमीर के. कंवरन सौ किये कान ७ ॥१७०॥ छंद सुनि' कंवरन ये बचन, कोपि गजराज चलाये। सतरि सहंस प्रारबी, पाड़ि पहोमि - ज मिलाये ।। [जब ] करि उछाह आई, अपछरा बरे कंवर दोऊ पाय । सर - लोक कौं ले चली, पुहप · माल पहिरायः ॥१७१।। १ ख ग घ. ऊ. पद्य के स्थान पर बचनिका है। बचनिका-राव हमीर पल-पल, सियाइत-सियाइत की खबरि मंगावता है । तब राव सूर संखधर सू बातें करता है। तुम जाय सिताब जुध करावो। २ ख.ग रहै। ३ ख. चित विसर; ग. चितै सौं सबी। ४ ग घ. करियै । ५ घ• सूर लोक। ६ घ. नहीं गंवार । ७ ख ग.घ. ह. रहै अमर जस पुरखि को, जितै जमी असमान । प्रागे वचनिका है। बचनिकाये बचन राव इमीर के संखधर नै कंवरन सौं कहै। ८ ख. सुनि यह कंवर । :९ घ. जदि, स्व.घ. जब उछाह करि प्राई । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 36 : हमीररासो पाठ सहस चौहान तीन, कमधज कवि गाये । पांच हजार पंवार, राव हमीर सराये' ॥ सोला सहंस भड़ राव के, स्यामि काज जिनि सारिये। सतरि सहंस दल पेलिके, यो सूरलोक सिधारिये ॥१७२॥ बरस पांच पतिसाहि, छांणि हजरति कौं बीते । लिये राव कर तेग, छांणि संवत तब बीते ॥१७३।। खड़ा खेत रणधीर [साहि], दोऊ बनलाये । [तजै न हठ हमीर, क्या तुम से सत पाये] ।। रणधीर राव यम ऊचरत, समझि साहि चित लीजिये । गढ रणथ भ हमीर का, हजरति हठ न कीजिये ॥१७४।। बचनिका - [जब] पातिसाहि कहता है छंद ये बातें रणधीर साहि कौं. किन समझावो । करो राज रनथंभ, सेख गहि कदमों लावो ॥ होनहार कबहू न मिट, अन होतिब नहीं होई । जो हठ रहै हमीर का, तो कहै न साहि मुझि कोई ॥१७५॥ ये च्यारौं गढ़ रणधीर, हुकम किस के तुम पाये । कबहू न फिरै रकेब, सीस कबहू न नवाये ।। गिर सूरजी पलटै पहौमि पै. कोटि बचन कह कोय। सेख छाडि उलटे फिरै, यह कबहू नहीं होय १२ ।।१७६।। १ ख. हमीर के सर पाये । २. ख. सारे, घ. सारया। ३ ग सहि के प्र.पा । ४ ख. पधारे, घ. पधारिया । ५ ख ग घ.ड.. पद्य के स्थान पर वचनिका है। बचनिकाबरस पांच छांणि के पढ़ पातिसाहि के बतीत हुये । प्रब राव रणधीर पातिसाहि सौं तेग पकड़ता है। छांणि को संबत प्राणि पहुँच्यो (प्राणि पूरो हुयो (ख.)। ६ ख. ग. उच्चर। ७ ख.घ. पातसाहि कहै छ। ८ ग. प्रागे बचनिका है। बचनिका- जब पातिसाहि रणधीर सौं कहता है, ख.घ. बहोरि पातिसाहि रणधीर सौं बात कहता है। ९ ख. इससे प्रागे-रणधीर कहै छ अ.पा.। १० ग. कोड़ि। ११ ख. कह वे। १२ ख. होवै । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमीररासो । 37 राव* सार कर गहै, छांरिण, गढ़ कूसिर नाये । छतरी - धरम संभारि', साहि पै सनमुख ध्याये । करि सलाम रणधीर कौं, साजि आवव सब अंग। अलादीन पातिसाहि सौं, जुड़े सूर सफ्रजंग ॥१७७।। भया रोस रणधीर, कोपि कर सार संभाहै। लख रूमी रणधीर, साहि के गरद मिलाये ।। वरस पांच जिमी जुझ' कियो, प्रलादीन हठ करि रह्यो । पिसन पाड़ि चहुवांन तब, अपछर वरि सूरपुर गयो ॥१७८।। लख रूमी रणधीर पाड़, साहि की सुधि विसराई। हरखि अपछरा ऊतरी, सूर • पुर लै लै जाई ।। पाख उजारै चैत सुदि, तिथि नवमी सनिबार । बीस सहंस छत्री पड़े, अबला गरी हजार ॥१७६१ वहौरचौं राव हमोर, जंग हजरति सौं जुरिये। प्रसी सहंस परि बीस, मीर मिसरख के पड़िये । द्वादस सहंस छत्री पड़े, जब ऊचरै बचन हमीर । जो काके कनवज करी, सो करि छांणि रिणधीर ।।१८०॥ दोहा गज इकसठि नो नो लख तुरी, द्वे परि बीस अमीर । जो कहते सोही करी, धनि रणधीर (कहै) हमीर ॥१८१।। * ख. ग घ. सूर । १. ख. संभाया। २. ग. परि । ३. ख. जंग । ४. संभावै । ५. ख. मिलावै । ६. घ. जूझियो। ७ ख.ग.घ. प्ररि मारे चहूंवारण वरी अपछरा यौं सूरलोक सनमुख गयो प्र. पा.। ८. ग. वर । ९. ख. शुक्र । १०. रा.घ. जुड़ियो। ११. ख. पाई। १२. ख, अबला जरी हजार। १३. ख.ग. दो, ग. दो लख इसम । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 38 : हमीर रासो - यतै मीर रण पड़े, साहि खट मास संभारे । जबै दूत यक आय, साहि सौं बचन उचारे ॥ जित देव हिंदवान के धर' तजी धरी न धीर । अब उनकी जारति करै, निस दिन राव हमीर ॥१८॥ सात बीस लख पड़े, मीर' धर जल न समावै। सलिता नीर निवारण, सूखत कोऊ पंथ न पावै ।। ४सलिता नीर निवारण, चले रकत डाबर भरै । अलादीन पतिसाहि सौं. खागि बांधि चौरै भिरै५ ।।१८३।। दोहा तिथि नवमी प्रासोज सुदि, कर गहे तेग रिसाय । खड़िये साहि अलावदी. सूर भवन कौं जाय ॥१८४।। गौरी - सुत सौं राव, जोरि कर बचन कहावै । यह अलावदी साहि, आज अजमति तुम पावै ॥ जोगनि भैरू वीर सजि, चक्र खपर लिये हाथि। पारै' मीर पतिसाहि के, पाल्हणपुर उभै लाख११ ॥१८५।। संकर विसन गनेस, सकति की कला सवाई । सूरजि तेज प्रताप, किरन करि हसम जराई ॥ कौपै सुर मब साहि पै, डेरौं घंट संख बजाई । मार - मार भैरू करै, साहि खुदाई खुदाई ॥१८७।। १२जब नारद पतिसाहि सौं. कहै बात समझाय । मगरूरी किसहीन की, राखत नाहीं खुदाय ॥१८७।। १ ग. धरत जुध धरोयन। २ ख.ग.घ. नीर जल धरन समावै । ३ ग घ. सुधि न । ४-५ पद्यांश नहीं है। ६ ख. ग. घ. परि सार । ७ ग. सुनावै । ८ घ पाये। ख.ग.घ. चाहै। १०. पाई। ११ ग• दो लाख । १२ ख. ग. घ. ङ. पद्य के स्थान पर बचनिका है। बचनिका-जब नारद बचन पतिसाहि सौं कहता है (कहै छ.घ.) पातिसाहि खुदाय मगरूरी किसी ही की देख सकता नहीं । अव देवतान की प्रस्तूत बदगी करो। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमीररासो : 39 जुरा मरन भय काल, साहि संगि चलि' पाये । हठ करि करि नर गये,' कोऊ थिर न रहाये ।। मनि नारद नाचै जहां, गावत बैन बजाय । तजि अभिमान अलावदी, लगौ सुरन के पाय ॥१८८।। नज्यो साहि अभिमान, ग्यान गुन अंतर लाये । सब देबन कौं५ साहि. जोरि कर सीस नवाये ।। अजमति देख प्रलावदी. रहै साहि सिर नाय । अब न तुम्हारै भवन 'दिसि, कबहू न चितवौं प्राय ॥१८६।। देव दोख तजि साहि करो, कोऊ दिन पतिसाही। हिमति बहादर अली उभै, लख हसम खिसाई ॥ सूर तैतीसन साहि कौ, अजमति दई सिखाई। कहै हमीर बहौरयौं अब, हम तुम जंग पतिसाहि ।।१६०॥ व्हे. थोड़ी सौं बहुत, मुलक पावक परजारै । विना दोख पतिसाहि, कौन किस ही कौ मारै ।। तन विनसै कीरत रहै, यह को जानत साहि । आई अदलिअलावदी, सो'क्योंज मिटै पतिसाहि ।।१६१।। करि देवन सौं दोख, साहि कौने सुख पाये । जालंधर दसकंध वैसे, नर गरद ४ मिलाये । कहै हमीर पतिसाहि सौं, सुनि असुरन के ईस । हजरति क्यों१५ विसारिये, (अब)हम उर तुम सीस ।।१६२।। १ ख साहि अस चलि प्राई, ग. संग दोऊ। २. ग. गये किते । ३ ग. वांचं तहां । ४. ग. उर। ५. घ कौं हाथ जोडि, ख. कर जोरि कर, ग. जोरि साहि कर । ६. घ. भौंन । ७. ख. चितऊ । ८. ख. अलीखांन । ९. ग. दिखाय, ख घ. बताई। १०. ख. कह। ११. घ. कोई। १२. ग.घ. अवधि । १३. ख. जो कोई मेटत पतिसाहि, म. न जाहि मेटे, घ. जाकू मेटै कौन पतिसाहि । १४. ख गिरद में । १५. ग. क्यों तुम विसरिये । १६ ख.म.घ. हम रिखि उर तुम । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 40. हमीररासो . दोहा तजत सुबुधि अरु कुबुधि करि. नर पीछे पछताय । उचरत बचन गनेस यम, जाहि जाहि पतिसाहि ॥१६३॥ छंद अजमति चाहो और, साहि मति विलंब करावो । संगि ले मीर अमीर, कोपि बहुरयौं खड़ि आवौ ।। गौरी - सुत पतिसाहि सौं, गही गनेस यम' टेक । हजरति पाल्हरणपुर दिसि, आवै तुरक न येक ।।१६४॥ दोहा साहि निहारत हसम दिसि, अब उर धरत न धीर । चलै राव रणथंभ दिसि, हरखत हंसत हमीर ॥१९॥ दोऊ दल सारन भये ना सूर कोई सनमुख पाये । महमा कौं न वियोग५, उभे लख हसम खिसाये। हिम्मत बहादर अलीखांन, दोऊ धरती पड़े अमीर । करत रकत का प्राचमन, गिरझ' जोगनी बीर ॥१६६।। मिटि गये मीर अमीर, हसम के हरबल खड़ते । हिम्मत बहादरप्रली, सार समसेर न डरते ।। महरमखां मुसकल परी, करिये कौन उपाय ।' ईरानी येक न रहै धुनै सीस पतिसाहि" ॥१६७।। १. ग. यह । २. ख.ग.प. प्राय न सके मलेछ । ३. घ. अब कोऊ उर। ४. ग. दल एक सारन भये। ५. ग. निजोग। ६.ग खिसाई, ग मागे पाठ-परि परि खेत उमीर, मांस गिर झनी तहां खाई। ७. ग. गिरझनी। ८. घ. मरि । १ घ. संभकरि सार न डारते । १० ख. लड़ते । ११. ख ग.घ. मागे वचनिका है-- महरम खां पतिसाहि कौं सलाम कर कहता है । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - . हमीररासो : 41 दोहा हठ हमीर छाडै नहीं, हजरति तजै न टेक । सात मीर पतिसाहि के, गये बिसर करि देस ॥१६८।। वचनिका : महरमखां कहै बुधि अपनी सौं आय, साहि क्यौं अब पछितावो १ । हम बरजत रणथंभ २, कोपि हजरति चढ़ि प्रावो ।। हजरति हिम्मत न छाडिये, धरो अबै मन धीर । गढ़ चहूदिसि निरगह करो, कब लग लड़े हमीर ।।१६६।। अपना महजम छाडि, देव हिंदू (अन) के ध्यावो । अलादीन प्राधीन होय, करि सीस नवावो । कर जोरि साहि वंदगी करै, सुनो सब हिंदू के पीर । मैं वंदा विनती करू, करिये माफ तकसीर ॥२००।। बचनिकाबंदगी करि पातिसाहि कूच पाल्हरणपुर करियौ । रण डूगर डेरा करे, गढ़ निरगह करवायो ४ ।। रनतभंवर गढ़ निरखि, साहि प्रासंग नहीं आये ५। करि मिसलति पतिसाहि, बहौरि येलची पठाये ।। कहै साहि सुनि दूत, राप सौ कहो समझाय । राजि हमीर दे भेजियो, सो ही महिमासाहि ।।२०१।। १ ग. कही सबै समझाय, बात हजरति के ताई । मानी नहीं तब एक हू, कहि सबै समझाई ।। हठ अलावदी मति करो, तुम देखण का चाव । इसके प्रागे बचनिका है तथा छंद २०० से छंद २०४ तक का पद्य भाग नहीं हैं। २ घ. छै राजि । ३ ख.घ. देव । ४ ख. घ वचनिका- जद पातिसाहि देवतों की बंदगी करी । कूच पाल्हणपुर कियो। डेरा रणतर के डूंगर दिया । जदि पातिसाहि गढ की निगे करि मिसलत करी । रणतमंवर गढ निरख्या । साहि गढ़ प्रासंग प्रायो नहीं। ५ ख.घ. नहीं है। ६ ख. राव । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 42: हमीररासो सुनै दूत के वचन राव, जब सनमुख चाहै । तोहि दोख को नहीं, साहि को भेज्यौ श्रावै ॥ लख ' बचन साहि मुख ऊचरै, तजि टेक येक न चित धरू ं । रहै सर ररणथंभ के, पसू पंछी नहीं हाजरि करूं ॥ २०२ ॥ Jain Educationa International बालरगसी रणसी रणधीर खानसी खेत खिपाये । कौन सयानपर साहि मुभैः कहै हमीर सुनि दूत, कहौ अब हम तुम फुरवांन की, कहा फरवांन पठाये ॥ साहि सौं जाय । रही पतिसाहि ॥ २०३ ॥ दूत दरबि ले जाह जो, तेरे जिय भावे । जो भेज़ै पतिसाहि, वहरि कबहू मति प्रयै ।। लिखि हमीर इम भेजियो, समझि साहि चित लीजिये । बहोरि दूत के हथि गहै, फिरि फुरवांन न भेजिये ॥ २०४ ॥ वचनिका -- कुरवांन राव हमीर के वांची, साहि सोच करि ( महरम वां) सौं कह्योबहौत वेर फुरवांन साहि के राव नहीं मानता है ५ १ ख- अलख । २ घ. स्याहापं । ३ ख पतिसाहि । ४ ख घ साहि सों बहोत समझाय । ५ ख ग घ ङ बचनिका- फुरवांन राव के वांचि पतिसाहि महत्मखां सू कही। राव हमीर हरगिज समझता नहीं अब तजबीज राड़ि का कीजै । पातिसाहि रेग की डूंगरी तोप घड़ाई, तोप तैयार हुई । गढ़ कौं दागी । राव हमीर की तोप ऊपरी पातिसाहि की तोप दगी । तत्र पातिसाह महरमखां उजीर सौं कहता है जो राव हमीर की तोप फुटी तो हमारी तोप गढ़ को फर्त करें जदि गोलंदाज पातिसाहि कौं सलाम करि कहीबोलबाला पातिसाहि ना मैं करोंगा । जब पातिसाहि सौं करि सलाम अरु गोळो राव हमीर की तोप पर दाग्यो । तोष फूटी नहीं । नूकसान हुआ यह खबरि रावहमीर कौं हुई । तोप फूटी । जदि राव हमीर चाल, तोप पासी प्रायो । तब राव कही तोप के नुकसान हुआ, काम सौं न गई । जब बहौग्यों राव कही पातिसाहि की तोप कौं जखम करें जिस को मैं बडा करों । जब राव हमीर के गोलंदाज पातिसाहि की तोप फोड़ी, जब पातिसाहि महरमखां सौं कही - अब गढ़ किस हिकमत सौ श्रावे ? जब महरमखां कही - जो गढ़ को पूल बधाय द्वरा भराय गढ़ कौं राह कीजै । तब कितायक दिन पाछे पातिसाहि की पुल रसता हुई तब राव हमोर कौं फिकरि बहोत हुवा । अब गढ़ का मगज कछु रह्या नहीं जब पदमसागर राव कौं वसारति दिन्हीं - राव हमीर फिकरि मति करें । For Personal and Private Use Only 1 Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमीररासो : +3 रण डुगर पतिसाहि, तोप यक नई घड़ाई । भई तोप तैयार, साहि गढ को लगवाई ॥ महरमखां उजीर सौ, पातिसाहि फुरमाई । तोप राव की फोड़ि, तोप गढ़ फतै कराई ।।२०५।। तब गोलंदाज पातिसाहि सौं, करि सलाम विनति करी । हजरति का दरकार साहि............ सांई जो करी ॥२०६॥ करी तोप तयार, गढि को तोप दगाई । राव तोप के लगी, जो डि मुख कौं लगवाई।। जखम तोप तब भई, राव सौं जाय सुनाई । चलि हमीर तब प्राविया, तेखि तोप अचरजि भया । ... ... ... .... .... ॥२०७।। तोप रही साबूत, राव तब तोप दगाई । पूटि साहि की तो, राव सन में हरखाई ।। तब पतिसाहि उजोर सौं, कही बात समझाय । किसि बिधि मिलै हमीर अब, कौन जतन गढ़ आय ॥२०८।। दोहा महरमखां तब यौं कहो, हजरति राह बंधाय । गढ़ दिसि दरा बंधाई के, हाका सौं ल्यौ ल्यौ ताय ।।२०।। केते दिन के बोषि, पातिसाहि "ल करवाई । हुवा हमीर को फिकरि, (बचन) तब पदम कहाई ।। राव फिकरि मति करौ, करि हैं देव सहाय' ॥२१०।। १ ख.ग.घ.ङ. उपर्युक्त पद्य भाग छंद २१० से छंद २१२ तक नहीं है Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 44 : हमीररासो o सायर सात हमीर, रैनि बिचि रणथंभ लाऊ । पुल बांधी पतिसाहि, याहि हूं फजर बहाऊं ॥ सात समंदर नौ से नदी, इति राव' होहि सीर । पुल पैला पतिसाहि कौ, फिकरि न करो हमीर ।।। १११ । 1 बही तबै पुल पतिसाहि की, अचरिज हुआ हमीर ॥। ११२ ।। aafter कहै पतिसाहि उजीर सौं श्रव गढ़ का वया इलाज ? जब महरमखां कहता है - पातिसाहि सलामति, अब गढ़ का इलाज कोई नहीं । गढ़ परि रावहमीर की पातरि चदकला निरति करती है । जब मांन प्रावै तब पातिसाहि कौं ऐड़ी बताती है । रति पातिसाहि का मुलाहिजा नहीं करती है । जब पातिसाहि निजरबाज नै बूझी। तहकीकात करके कह्यौ - जब पातिसाहि इतराज होय करि को इस औौरति के पांव में तीर की देवे जिसकों मैं बड़ा करौं । जब मीर गाबरू पातिसाहि कौं सलाम करि कहता है- श्रौरति के लोहो बहावो मुनासिब नाहीं । जब पातिसाहि कही - उजन सौं लोहा करो। जान वचै तमासा रहै | पातिसाहि का हुकम सौंमीर गाबरू तीर चलायो । जब तीर औरत के लगि, तीर राव हमीर की सभा में परया । जब राव हमीर के सोच हूवा, अब तक गढ़ में तीर कब हू प्राया नहीं, ये औलिया कोई अब आये । Jain Educationa International छन्द अचरजि हुवो हमीर, तीर जब गढ़ परि आयौ । राव चहूँ दिसि चाहि, सोच करि सेख बुलायो ॥ मुरझाय त्रिया यह घर पड़ी 3, भयो राव चितभंग । कहै हमीर असै उली, कितै साहि के संग ।।११३ ॥ बचनिका - ५ महिमासाहि राव हमीर सौं कहता है- रावजी यस वात का दरेग मत करो। वो पातिसाहि की हसम में येक ही है, हमसों भाई छोटा है । १ ख इति रहै मुझि मांहि । २ ख. तोड़ीं । ३ ख. मुरझाय राव धरनी पड़यो । ४ ग. इस । ५ ख. दिलगीर, ग. दरोग । For Personal and Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमीररासो 145 नहीं जती बिनी जोग, सूर बिनि तेग न होई । ते साहि दल संग, मीर सरभरि नहीं कोई ।। करि सलाम महमां कहै, जोड़ि रावतन' हाथ । पाऊ हुकम हमीर का, तो करौं साहि पं घात ।।२१४।। (जब) हंसिके कहै हमीर, इसी कबहू नहीं कीजै । पिरजा पड़े संताप, साहि परि घात न कीजे ।। हजरति साहि अलावदो, ये दूसरी खुदाय । बचे सीस पतिसाहि का, दीजे छत्र उडाय ।।२१५।। (जब) करि साहिब कौं यादि, सीस उत जब ही नवायो । कोना हुकम हमीर, कोपि करि के सर बायो ।। अनलपंख आकास में, भई अवाज वहकानि । मुरझाय साहि' धरनी पड़े, उड्यो छत्र असमानि ॥२१६।। बचनिका जन महरमखां उजीर पातिसाहि सौं कही'- पिछले निमक की दोस्ती, पातिसाहि की ज्यान बकसी है । अबकी तीरौंदाजी में पातिसाहि कौं नहीं छोड़ेगा । जिस गढ़ में महिमासाहि से (वीर) हैं सो यह गढ़ हरगजि हाथि आवेगा नहीं । बहोरचौं महरमखां पातिसाहि सौं अरज करता है । छंद चक चूदरि गित्ली सरप, साहि पीछे पछतावै । उगलै अंधा होय, खाय तो जिव सौं जावै ।। महरमखां यम उच्चरै, बहू औगुन हुये साहि के । छत्र टूटि धरती परै, यह कैंवर महिमां साहि के ।।२१७।। १ ख. राव पै । २ ख. कोपि के तीर चलायो। ३ ख. प्रडलपंख । ४ ख. वहैकानि । ५ ग. साहि जब धर पर। ६ घ. कहता है। ७ यहां तक (ङ.) संज्ञक प्रति का पाठ उपलब्ध है, आगे त्रुटित है । ८ ख. कौं। ९ ख. करम । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 46 : हैपीररासो ०. - जो हमीर का हुकम, सूर जो. हजरति पावै । तुम्हें परि' जरेंगे लोह, उसै दिली बैगवै ।। हठ छाडि राव रणथंभ का, करो क्च चलिये दिली । रही टेक हमीर की, जो पतिसाही सब मिली ॥२१८।। (जब) अलादीन हठ छाडि, उलटि दिली दिसि धाये । पिता बैर नहीं सरयो, साहि सुरजन पिछताये ।। रतन पांचले पेसकरा , मिल्यो साहि कौं जाय । 'हजरति साहि हमीर कौं, आणि लगाऊ पाथः ।।२१६।। जितो राज रणधीर, यतो हजरति हूँ पाऊ । रणतभंवर गढी १ फतै, साहि पलक'२ में कराऊ । हजरति हंसि करि बोलिया, सुरजन प्राधो पाव । तुझे 3 दियो रणधीर को, करौं बड़ो उमराव ।।२२०।। (तब सुरजन करि सलाम, राव को बीड़ो खायो । जौरा - भौंरा खास, आनि के चांम नवायो ।। फजर आनि हाजरि भयो, सुरजन करी सलाम । मिलौ राव पतिसाहि सौं, गढ बीत्यो सामान ॥२२१।। बचनिकाः - बचन तीन'४ सुरजन राव हमीर सौं कह्या । जब राव सुरजन सौं व हते हैं - १ ख. परि जरि जंजीर. ग. जरि लंगर। २ ग. साहि। : ग. रही राव हमीर की। ४ ख. ज्यादाद । ५ ख. जब सुरजन कहै छ अ..। ६ ख. पीछे । ७ घ. पेस करि । ८ ग. हजरति जोरि राव कौं, तुम को सीस नवाय । ९ ९ इससे मागे (ग) संज्ञक प्रति में छंद सं. २२१ से छंद सं. २३२ तक का पद्य भाग नहीं है । १० ख. २ गधीर को। ११ ख. की। १२ ख. पल माही। १३ ख. तुन । १४ घ. तीन राव सौं सुरजन कहता है । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमीररातो : 4 [जब] हंसि कहै हमीर तुझि', समझि मुझि न पावै । असी कबहू नहीं होई, साहि कौं सीस नवावौं । असा बचन न भाखिये, सुनि कापुरसि कपूत । गही टेक २ जो छांडि है, वह कैसो रजबूत ॥२२२।। बचनिका जब राव हमीर [नै]कही-जौंरा-भौंरा खास निठया । जानिये किस तरह । जब करि सलाम सुरजन कही-प्रांख्यां चलि करि देखिये । जब राव जौंरा-भौंरा खास परि आये। राव हमीर कहते हैं- अरे सुरजन, रीते' भरे की गम किस तरह परै । जब सुरजन कहता है-पथर नांखि खासों का पाख लीजै । जिनस होयगी तो खुड़का सुणैगा नहीं । खास खाली होयगा तो खुड़का सुणैगा । जब राव' खासों में पथर नखाये । जिनसि तलै रही ऊपरि चमड़े का खुड़का हुवा । जब राव हमीर की ज्यान मांही सौं'जीव निकसि गया। महिमासाहि राव११ सौं सलाम करि प्ररज करी१२ । (जब) कही महिमासाहि, हुकम राव जो पाऊ। मिलौं साहि कौं जाय. दिली कौं कूच कराऊ ॥ गढ कोट राज यह राखिये. ................... कर जोरि महिमा कहै'३, साहि(सौं)जंग न कीजिये ॥२२३।। (जब) हंसि के कहै हमीर, इसी कबहू नहीं होई । बचन छाडि कापुरसि, सदा न जीवै कोई ।। महिमासाहि निचित रह, अब सोच जिव मति करो१४ । मंडौं जंग पतिसाहि सौं, मारि खाग कन • कन करौं ।।२२४ । १ क. तुम सामज्या जननी मावे लाज, ख. मुझि समझ्यां जननी लाज, घ. तुझि समजावे जननी लाजै । २ ख. तेग। ३ घ. छांडि देय । ४ घ. खास में नाज बीतो। ५ ख. रीते भरे खास की । ६ ख.घ. इतबार । ७ ख. लीजिये । ८ ख. राव हमीर । ९ ख. नखाये खुड़का सुण्या। १० ख. रूम रूम मांहि सौं फिकर उपज्यो, घ. रूस रूम मांहि सौं जीव । ११ घ. राव हमीर। १२ ख करता है। १३ घ. पद्यांश नहीं है । १४ ख.घ. पद्यांश नहीं है । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 48 हमीररासो -- - बचनिका हमीर राव यम ऊचर जीव जाय के जस रहै। दोहा अलान पतिसाहि सौं, गही सार कर टेक' । दुख मैं' बिरले मित्र हैं, सुख में मित्र अनेक ॥२२५।। हठ तो राव हमीर को, अरु रावन की टेक । सत राजा हरिचंद को, अरजन बांन अनेक ॥२२६।। ‘गही टेक छाडै २ नहीं, जीभ चौंच जरि जाय। मीठो कहा अंगार को, ताहि चकोरि चुगि खाय ॥२२७।। बचनिकायेती बात राव हमीर महिमांसाहि सौं कही । महिमांसाहि अापनी हवेली कौं गया । जब रैनि का वखत हुवा बहोरचौं सुरजन पातिसाहि पै गयो। छंद 'जब' सुरजन कर जोरि, साहि कौं सीस नवायो । द्वादस को सामान, राखि करि राव भुलायो ।। चंदकला देवल कुवरि, पारसि महिमा मीर । मांगत साहि अलावदी, ये ले मिलौ हमीर ॥२२॥ सुनि हजरति५ के बचन, राव जिय रिस कराई । कहां अलावदी साहि. कैत सातौं पतिसाहि ॥ चंदकला देवल कुवरि पारसि महिमा मीर । हजरति ये कबहौं न मिल, जे साबूत हमीर ॥२२६।। १ क. तेग । २ घ. छोडौं नहीं। ३ ख जात । ४ ख. पद्यांश नहीं है, घ. खात। ५ घ. दूत। ६ ख राव तब कहर रिसाये । ७ घ. केतीसाहि तेरी । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमीररासो। 49 लिखे राव फुरवांन, साहि नीके फुरमाई । अब दिली के तखत, साहि की फिरत दुहाई ।। चिमना बेगम च्यंतमनि, पायक च्यारौं पीर । दे भेजियो अलावदी, मांगत राव हनीर ।।२३०।। बचनिका ये फरवांन पातिसाहि हमीर के वांचि करि, सुरजन सौं खिजाय कहो-- कंबखत, हरामखोर बड़ा गढ़ फतै करि दिया' । छंद जब करि बदन मलीन, राव रनिवासै पायौ । हंसि राजि करि जौरि, राव कौं सीस नवायो ।। गढ़ बीत्यो सामान सब, अब भंडार कैसे भरौं । बचन छाडि प्रतिसाहि सौं, तुम कहो' सेख हाजरि करौं ।। २३१।। ये सुनि हमीर के बचन, बदन रानी बिलखाया । लड़ उभै जुग एक, अबै कोने भरमाया । करि बचन बहौरि न छांडिये, राजपाट सुख जाव' । प्रासा कहै हमीर सौं, अब साको करिये गढ़ राव ।।२३२॥ बहौरि राव सों बचन, रोस करि रानी भाख । बचन यादि वै करो, सेख सरणे जब राखै ।। कब हठ करै अलावदी, रणतभंवर गढ आय० । कब सेख सरण रहै, बहौरि महिमासाहि ॥२३३।। सूर सोच मन में करै, अमर पदवी नहीं पावै । जो हठ छांडौ राव", उतन अजमेरि लजावै ।। सरन राखि सेख न तजो, तजो सीस गढ़ देस । रानी राव हमोर सौं१२, यह दीन्हौं उपदेस ॥२३४ । १ घ. दीन्हो। २ ख. राव कहै छै प्र.पा.। ३ घ. कहो तो। ४ ख. बिल खानी । ५ ख. तजो। ६ ग.घ. नहीं है । ७ घ. बहौरि रोस करि बचन । ८ घ. राव सौं । ९ घ. यादि करो राव। १० ख. मांय । ११ ख. राज । १२ ख. कौं । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 50 : हमीररासो - कहां जगदेव पंवार, सीस कर' प्राप समप्यौ । कहां भोज बिकरम राव, जिन्ही पर दुख कटयौ ।। करन कनक विप्रन कौं, सवा भार नित प्रति दिये। आसा कहै हमीर सौं, कहो राव वै कित गये ।।२३५॥ थिर कोई न रहै राव, अब थिर रहै न कोई । गये सुर नर मुनि मंडलीक, गये चकवं चलि केई ।। धन जोबन नर की दसा, सदा न येक विहाय । पाख पाख ससि की कला, घटत बढ़त घटि जाय ।।२३६।। दोहा सरन राखि सेख न तजो, तजो सीस गढ़ देश । हठ न तजौ पतिसाहि सौं, कर५ गही तजो मन तेग ।।२३७।। इती प्रासा दई प्रासिका, जेती भई सहाय । करो जग पतिसाहि सौं, सनमुख सार सम्हाय ॥२३८।। जामन - मरण संजोग, कौन" जो इन्है मिटावै । कितै नृपतिः चलि गये, अमर कौऊ कलि' न रहावै ।। थिर रहत न कोऊ सदा, नर तरु१० गिरवर ग्राम । का चौ११राज रिगथभ गढ़, हम अपने तप१२ परवान ।।२३६।। कहां जैत कहां सर, कहां सोमेसुर राना। कहां गये प्रथीराज साहि ३, गहि गहि जिन्ही पाना ।। होतब 'मटत न पलक यक, अन होत बि नहीं होय । प्रासा कहै हमीर सौं, अब हम तुम भयो बिछोह ।।२४०।। १ ख सीस कंकाळी कौं दीयो, घ कर प्राप संभा है । २ क. नहीं है। ३ क. वेऊ, ख. के ऊ, म. केहू घ वही । ४ ग घ. घटत बहौरि बढि जाय । ५-६ का पद्य भाग मूल प्रति (क) में नहीं है । ७ ख. कौन सौं ही नहीं मिटै। ग घ. नर । ६ ख. कलि माहि नर हो । १० घ. तरुवर, ख. गिर अरु। ११ क. करै। १२ क. नहीं है। १३ घ. गहि गजनी पाने, ख. मह गह लायो । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - हमीररासो : 51 धनि पतिबरता नारि, रात्र मृखि अाप सराहै । और कौन तुझि बिनां त्रिया, मुझि बचन सुनावै ।। सरन राखि' सेखन तजौं, तो कुल लाजै चौहान । तुम साको गढ़ कीजियो, निरखि साहि निसांन ॥२४१।। सुनि रानी ये बचन, परी जमीं मुरझाय । निठर बचन कहै राव, तजै रनवास रिसाय ॥ हम पतिबरता पुरख बिनि, अब कौन दिसि चित धरै । प्रासा कहै हमीर सौं, तुम पहलै साको करै ।।२४।। जब करले* नीर हमीर, उदकि' भंडारज कीनै । बंदी जन धन विप्र लेहु, जा पै जाय जो लीन्है ।। छाडि अबै' हमीर सब, भवन त्रिया गढ़ ग्राम । सुख संपति रणथंभ गढ़, नहीं हमीर के काम ॥२४३।। ये सूनि रानि के बचन, राव मत बढत सवाये । बैठे सभा हमीर, सूर सब हाजरि आये ॥ जब हंसि हमीर यप ऊचरै, सुनि राव चतरंग । तुम्है सरम अब रतन की, हम करै साहि सौं जंग ॥२४४।। बचनिका राब हमीर मौं चतरंग कहता है- तुम कौं छांडि चीत्तौड़ न जाऊ । राव हमीर ने कही- रगतभंवर की प्रजा गढ़ चीत्तौड़ में समाहैगी तब राव चतरंग रतनसी कुवर कौं ले चीत्तौड़ कौं चलै । डेरा पाल्हरणपुर जाय किया। १ ख. सराही घ. सिरावै। २ ख. राखि सेख यूं . ग. राखिजे सेख दें, घ. राखि प्रर सेख द्यौं । ३ घ. कौं प्र.पा. । ४ ग सुनै राव के । * घ. जब करनी रहै । ५ ख.ग घ माल, ख. भंडारन दीन्हा । ६ ग. सबै । ७ ग. अब । ८ ख. बौहो । ६ ग.घ. चढत । १० ग. समागी। ११ घ. दीया । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 52 इमीररासो छंद [ब] सुनत बचन ये सेख, भवन ग्रपने कौं धाये । कुटंब सेख सब खेस, करद' ले प्रदलि पठाये ॥ बहोरि बचन कहै रावसों, भरि दोऊ लोचन नीर । सुख-संपति रणथंभगढ, २ तजिये बेगि हमीर || २४५ || मुर-नर कायर-सूर सदा, कौऊ थिर न रहाये । जिती बार लियो जनम, काल जेती बर खाये || बहौ जीवन कौं जुग कहै, मरन कहत नहीं कोय । सती सूर सा पुरखि के, मरतहिं मंगळ होय || २४६ ॥ केसरि सौंध राव, सूर सांवत चरचाये । अलादीन पतिसाहि, बहौरि फिरि फिरि कब श्रावै ॥ सहस उतन दान करि, जब जब सिर बांधै मौर । चतरंग राव अरु रतनसी, ये भेजे चित्तौर ॥२४७॥ प्रथम सूर दस सहंस, खेत ररणथंभ खिसाये । पांच सहस दे सगि, कंवर चतरंग चलाये || पांच सहंस ररणथंभ रखि, असी सहंस लिये संगि४ । चढ़िये राव हमीर अब, जुड़न साहि सौं जंग ॥ २४८ ॥ कमधज कूरम गौड़ तुवर, पड़िहार भील भोज । पौलीच वंस पुंडीर, और चौहान सूर सब || छत्तीस (३६) वंस छत्री चढ़ें, मनु पावस बादल छये । दल देखि राव हमीर कौं, साहि जिय अचरज भये ॥ २४६ ॥ १ म कर वली दिली पठाये। २ घ. की। ४ ख. लार । ५ ख. भोज गये / Jain Educationa International ३ ग.ध. गऊ नर, ख. गऊ करि । For Personal and Private Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ , हमीररासो : 53 जेठ मास बुधबार, सपतमी पाख अंध्यारी । करि सूरजि सौं' नवणि, राव कर तेग संभारी ।। हरखे सूर हमीर के, उत कोपे मीर अमीर । जुड़े जंग पतिसाहि सौं, सनमुख राव हमीर ॥२५०।। बचनिका-- राध का हाथी पांच सै ऊर जोधा चढ्या है । होदै चढ़या हमीर, साहि परि सनमुखि धाया 1 लीजै महिमासाहि, उली हजरति ये अाया५ ।। राव हमीर अलावदी, नर दोऊ सफ्रजंग जुर । येते सूर हमीर के, येक येक सौं प्राहुरै ॥२५१।। छंद वियक्खरीसूर सनमुख तब सीस नावै । हुकम करो राव, गहि साहि लावै ॥ राव हंसि मुख बचन यौं ऊच्चारै' । साहि सौं जंग लीधै हमारा ॥१२॥ पतिसाहि से घात कोऊ मति बिचारौ । मरि उमराव किन पुहमी पारौ॥ ये बचन सुनि सूर अंग न मावै । जब सार समसेर अंग ११जिरह लावै ।।२५३॥ अध सहंस गजराज हरबल हकले । मनु मेर पाखान के पाय चले ।। तेल सिंदूर चरचे संवारे । जिनै कोपि गजदंतग हमोर पारै ॥२५४॥ १ ग. कौं। २. क. संवारी, ख.ग. संबाही. ग. उडि जमीं की गरद असमान छाई अ.पा.। ३ ख ग घ. राव हमीर का हाथी पाच से होदा ऊपर जोधा चढया छ । ४ क. धावै। ५ क. पावै । ६ ख घ. प्रागरै । ७ ख.घ. हमीर मुखी । ८ ९ पद्यभाग मूल प्रति (क) में नहीं है । १० ग. समाव। ११ ख. अमीझर । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 54 : हमीररासो . - बजत नीसांन असमांन गरजै । बहत इम सार जिम' नीर बरखे ॥ जहां गुनी गुन राग छत्तीस गावै । वरमाल ले अपछरा बरन पावै ।।२५५।। सुर अमीर लरि पहमि परिय३ । जहां दंत सौं दंत गजराज जूरिये ।। यौं साहि हमीर सफ्रजंग खेले । पतिसाहि अबदाल' के मीर पेल ॥२५६॥ जब कहत वाहि (द)अलि' हुकम पाऊ। राव गहि साहि के कदमौं लाऊ७ ॥ देस रनथंभगढ़ उतन पाऊँ । गलै डारि कंबान हमीर लाऊ ॥२५७।। साहि स्याबासि दे हुकम करिये । तब कोपि अबदाल के मीर खड़िये ।। पड़त रण' मीर धड़ सीस टूटै । जहां खप्पर भरि जोगनि. रुधिर भखै ॥२५८।। सीस बिन सुर लरै रक्त भीनै । स्याबासि स्याबासि पतिसाहि कीनै ।। जहां बीस दस तीस गजराज खिसिये। खट सहंस सूर सुरलोक बसिये २।२५६।। यौं साहि हमीर सफ्रजंग जुड़िये । सहंस दल दून' अबदाल के मीर पड़ियै ।। जब१४ कोपि हमीर के बर संभारे । अमीर१५ बाहिदअली पुहमि पारे ।।२६०॥ सार हमीर गहि छत्र तोरै १६ । जब नवनि करि सेख कर दोय जोरै ।। हमीर की प्रान दे बचन टेरै । अब देखिये राव सफजंग मेरै ॥२६१ ।। दोहा खड़ा सेख दोऊ दलन, बिचि सिर हमीर कौं नाय । अक किन८ गहो अलावदी मैं खूनी महिमासाहि ।।२६२।। बचनिका जब पातिसाहि जमीयत खुरसांन की महिमासाहि पै पेलता है। [बहौरि. बचन पातिसाहि सदकी सौं कहता है१६] महिमासाहि कुटन कौं जीवता परि लावै२०ताकौं बारा हजारी का मुनसब२१ देता हौं । येक महिनासाहि के वास्ते । १ ख. जाण । २ ख.ग. मोर। ३ ख. पाई। ४ ख. पक्तांश नहीं है। ५ ग. अबदल । ६ ख. कहै चंदअली, घ. अबल्लि । ७ ग लगाऊ। ८ ग. कमांन। ९ ख. कीन्हौं। १० ख. धड़। ११ ख. खिसाये । १२ ख. पधारे। १३ ग. दुनि । १४ ख जब कोपि हमीर भड़ फिर संमार । १५ ख. मीर हमीर महम्मद प्रोलियो। १६ ख. उतारै १७ घ. हमारे । १८ ख. क्यौं न । १९ केवल (ग घ.) में । २० क. लेहू, घ. लावो २१ ग.घ. मुरातन । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • हमीररासो : 55 छंद कोपि सेख पै' साहि, मीर पेलै खुरसानी । गढ रणथंभ हमीर, इसी हजरति नहीं जानी ।। बकसे साहि अलावदी, नौबति तोग निसान । सदकी सौं हजरति कहै. सेख न पावै जान ।।२६३।। तीस सहंस खुरसान मीर, महमा परि३ धाये । जब करि सलाम राव कौं, सेख कर सार संभाये ।। सदकी मीर हमीर परि, कर गही तेग रिसाइ । ठट्ठा भक्खरि सरि करै, कितेयक महिमासाहि ॥२६४।। दोहा उच्चरत सदको बचन यम, सुनो अलावदो साहि। लाऊ पकरि हमीद कौं, अरु संगि' महिमासाहि ।।२६५।। धनि धनि महिमांसाहि, जंग सदकी सौं किन्हा । खुरसानी खट सहंस, पाड़ि केवानां लिन्हा ॥ हाजरि करै हमीर के, दोऊ दल करै सराह । [अब हम तुम मिलना होयगा,[फिरि]साहिब की दरगाह ।।२६६ । बहौरि सेख कहै बचन, राव सौं८ सीस नवाय । सरनि राखि मुझि राव, राज तजि बचन निभाया ।। बहौरि बचन बिछुरत कहै, लोचन भर करि' नीर । अब जननी कब जनमि है", कब किरि मिलै हमीर ।।२६७।। बचनिकाराव हमीर महिमासाहि के तांई समझावता है। १ ख. परि । २ घ. का अ.पा.। ३ ख.ग. पै। ४ ख. किये । ५ ग. पद्यांश नहीं है । ६ ख. गहि। ७ ख.ग.घ. करिवाना । ८ ग. कौं। ९ केवल(ग.घ.) मैं। १० म. भरि भरि। ११ ख. जनमि देहैं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 56 : हमीररासो० सूर न करै सनेह, जबै कर सार संभाहै । बिछुरन मिलन संजोग, आदि जैसै चलि पावै ॥ ज्यौं जामन ज्यौं मरन जुग, ना कीजै चित भंग । रहैं सूर के लोक में, हम तुम हजरति संग ॥२६८।। तजिये स्वारथ लोभ मोह. काह (सौं) नहीं करियै । देह धरै परवान स्वामि, जो कारजि सरियै ।। को उन सौं ले पाइयो को यत सौं ले जाय । रहै सेख कीरति अमर, तन माटी मिलि जाय ॥२६॥ ये सुनि हमीर के बचन, साहि परि सनमुख वाये । जब मीर गाबरू वीर, पानि कर सीस नवांये ।। मो दिसि साहि अलावदी. तुम दिसि राव हनीर । अपने अपने निमक की, ना तजिये तासीर५ ॥२७०।। हंसि अलावदी साहि, सेख सौं बचन वहाये । दिलि छाडि करि बहौरि, सीस मुझि को न क्वाये ।। पतिसाहि बचन यम ऊचर, मिलो भुभैः तजि रोस । हुरम दई हजरति कहै अरु गोरखपुर देस ॥२७१॥ गही' सेख कर सार, साहि सन" हंसि बुसकांनौ । अलादीन तुम यादि, बचन हमरे सुधि प्रानो ॥ जो जननी फिरि जनम दै, बहौरि धरों यह देह । संग न तजौं हमीर को, जो पतिसाही देहि ।।२७२।। १ ग. प्राय । २ ख. कीजिये : ३ ख. पद्यांश नहीं है। ४ ख. सुनत बचन हमीर के । ५ ख. बचनिका-हसि अलावदी साहि सेख कौं बचन कहता है प्र.पा. । ६ क. गहै । ७ क. तन । ८ घ. मेरी। ९ घ. आवे । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - हमीररापो 57 ये सूनि बचन हमीर, मदति महिमा की धाये । अलादीन पतिसाहि, सेख२ वातें विलमाये 3 ॥ कहै हमीर यक वचन परि, मैं ही साहि सौं तेग। लोभ न करिये जीव का तो रहै साहि सौं टेक ॥२७३।। सुर-नर कायर-सूर सदा, कोऊ थिर न रहावै । सूर अपछरा वरै सीस, दै स्याम निभावै५ ।। सार बहत कायर संके, सूरां सार सुहाय । यक है बचन पतिसाहि सौं, सो अब सेख निभाय ।।२७४।। तब मीर गबरू कहै, सार गहो महिमा भाई। हुकम धनी का येहु. अदली पिर ऊपरि पाई ॥ [मो दिसि साहि अलावदी, तुम दिसि राव हमीर । अपने अपने निमक की, ना तजिये तासीर] ॥२७५।। दोऊ वीर सफ्रजंग जुरै, सार मिलि सनमुख बाहै । वनि धनि कहै हमीर, साहि मुख अाप सराहै ।। चलते महिमा बोलिया, सुनौ अलावदी साहि । हम तो पहुचे भिसति में, दिली उलटि तुम जाहि ।२७६।। सुरति रही जिय मांहि, दिसटि रावतन फेरी । धनि धनि राव हमीर, रही कलि कीरत तेरी ।। ज्यौं १ प्राये ज्यौं १ जाहिंगे, कौऊ अमर नहीं कलि मांहि । धनि धनि राव हमीर नर' ३, तुम वोड़ि निभाही बांहि ।।२७७१३ १ घ. माये । २ ख. सेख तुम । ३ ग. बिरमाये । ४ घ. वचन इम फिरि । ५ ग. निबाहै। ६ ख. बाहत । ७ ग. सिहाय । ८ ब. कोष्ठक बंद पद्यांश नहीं है। ६ ग सुनि। १० ग. तो 4 चलि पहुंचे। ११ म. जो। १२ ग. सो । १३ ख. हमीर थां बचन निभाये । For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 58 : हमीररासो - अपना उतन उजालि', दोऊ कूल कलस चढायो । मुख कुरांन पढ़ि दोऊ, सीस साहिब कौं नायो ।। हजरति राव हमीर कौं, सेखन कियो जुहार । अपने अपने इसट पै, गही दोऊन कर सार ॥२७८।। दोहा मुसलमान हिंदवान कौं, चले सेख सिर नाय । चढ़ि विवान दोऊ हुरम भवरि५, भिसति पहौंचे जाय । २५६।। बनिका प्रब अलादीन पतिसाहि राव हमीर सौं कहता है दोहा अब लोहा मति करो, हजरति तुहि हमीर ॥ अब मति सार संभाहियो, तुझे माफ तकसीर ।। २८०॥ कंडलिया तुझे माफ तकसीर, राज रणथंभ करावो । और परगने [पांच लेहु. बहौरि तुम उलटै जावो ।। राम रहीम हमीर यक, ये दो कबहू' न जानिये । बहोरि मुहिम करौं नहीं, मुझि तुझि बीचि कुरान ये ।।२८१।। १ ख.ग.घ. उजारियो। २ ख. करि, घ. नै कहिया । ३ ग. परि । ४ ख नवाय । ५ ख. अपछर वरि, ग. उरवसी वरि। ६ ग. कहै। ७ यह पद्यांश मूल प्रति (क) में नहीं है। ८ ग. कबहू नहीं दो जानि। ९ ग. तुमि बीच कुरान । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमीररासो । 59 दिलो होय पतिसाहि, बहौरि रणथंभ नहीं आवं' । ये बावन परगने, राव गढ़ - बैठे खावै ॥ कहै साहि सत मानिये, हमरे बचन प्रमान । मुसलमान दिली तखत, ज्यौं रनतभंवर चौहान ।।२८२।। बचनिका - जब राव हमीर पातिसाहि सौं कहता है - अदलि किसही को किसहो सौं मिट नहीं । छंद साहि५ किसमति लिख देत, उवरि कौन पे लिखवाऊ । रनतभंवर" को राज, साहि को दियौ न पाऊ ।। हंसि हमीर यम ऊचरै, सून दिलीसुर साहि । हम तुम गढ़ रणथंभ का, संवत पहोता' प्राय ।।२८३।। जब समझ्या किन साहि, अव स्थानप कंह लावो । गढ़ परबत असमान धर, सदा न थिर पतिसाहि । पाख पांच दस धौंस बिचि, अदलि पहौंची बाई ।।२८४।। १ घ. पाऊ। २ ख. घ. पावो। ३ ख.ग. कहै छै । ४ घ. आवृत्ति - काल ऐक बेर खाय, फेर नहीं अंग जलावै । जब राव हमीर पतिसाहि सौं कहता है ॥ प्र.पा. । ५ घ. जब ली न चेत साहि अब क्यों स्यानप लाये । करम रेख नहीं मिटै, अब कर सारि संभाये ॥ हंसी हमीर इम उच्चर, सुन दिली पतसाहि । पांच पाख दस द्योस बिचि, अदली पह्रौंची आई ।। परिवर्तित पाठ । ६ ग. ऊभरि। ७ ग. जो यह लिखिया लेख बहौरि सोइन पाऊ पा.। ८ ग. पहोच्या। ९ ग. अबै स्यानप तुम लाये, गढ परवत असमान साहि सब चलते पाये । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 60: हमीररासो ० बेर बेर पतिसाहि क्यों, मुख बचन उचारो । होत बि मिटै न साहि, कोटि स्यानप उर धारो ।। अमर नहीं कलि कोय, अमर की रति जो करिये । हंसि हंसि कहै हमोर, साहि सनमुख चित धरिये ।। गये दुरजोजन दसकंध से,जुरासंध से अति बली । चलिये साहि सुर-लोक कौं, गढ़ किसका किसकी दिली ।।२८५॥ हजरति हम तुम अंस येक, प्रादि रिखि पदम उपाये। हम हिंदू तुम मुसलमान, होय [करि] साहि' कहाये ।। देव दोख उर धारिके, रिखि सौं भये मलेछ । तजौ दिली होय देवता, चलौ सुरन के लोक ।।२८६।। रगतभवंर गढ़ छाडि , साहि सन मुख हाये । [जो] १० हजरति सौं कही, सोई' हम बचन निभाये ।। संगी१२ हमारे संग कै, सुरपुर पहौंचे १४ जाई । हम तुम रहै अलावदी, सार१५ गहो प्रब१६ साहि१७ ॥२८७।। कह हजरति१८ सौं बचन, राव कर सार संबाहै२० । जितै सूर संग हुतै, साहि दल२१ सनमुख धाये ॥ इत हमीर ऊत साहि के २२, जुड दोऊ दल प्राय । जब करि सलाम साहि कौं२३, जैन २४ सिकंदर साहि ।।२८८।। १ घ. मिटत न पलक इक। २ घ. करि हारो। ३ घ. कहां हमीर रणमंभ का कहां दिली पतिसाहि । ___कहा विसरि करि साह कू. मेरे न सेख रहाय ।। राव हमीर पातिसाहि सौं कहै- साहि किसी न लिख देत, उमर किस पैं लिखवावै । प्रागे छंद का पाठ है। ४ घ. हंसि हमीर इम ऊचरै। ५ घ तुम अक ही । ६ घ. पतिसहि । ७ ग. यह। ८५. छारिण। ९ ग साहि हम, घ. सन मुख हम । १० क. सो। ११ ग. बचन सोई। १२ घ. सूर । १३ ग. सूर । १४ ख. पहौते। १५ ग. साहि। १६ घ. करि । १७ ख.ग. सारि। १८ घ. हमीर यह । १९ घ. जदि । २० ख. समाही । २१ घ. ये। २२ ग. दोऊ कर सार समाहै प.पा.। २३ ग घ. पतिसाहि कौं। २४ ग. जिन स्यकंधर, ख. जैन सखोक्षर, घ. जदि जांणि सिकंदर । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पल' में दूं बकसाहि, बिजे मंदरि गढ़ लिन्हा । क्या रणथंभ हमीर, सेर हजरति तुम किन्हा || यति हसम खंधार की, और सिकंदर 3 मीर । के सदकै पतिसाहि के के गहि लेहु हमोर ॥ २८६॥ ૪ 1 aafter जैन सिकंदरसाहि जुध राव [ सौं] करने कौं प्राया । जब भोज भोल राव हमीर सौं बात करता है । ये राव हमीर जैन- सिकंदर पै। बीड़ा मुझे " दीजै । जब राव हमीर भोज सौं बातें करता है " १० छद Jain Educationa International रनतभ वर गढ़ प्रथम, भील सर राखिय१३ जैत राजि, यहि सी सहंस दल हसम बिचि १४, तुम कहै हमीर संग रतन के, जाहु हमीर रासो : 61 दोयन सिर दिन्हा 1 3 विधि हम किन्हा || सरभरि नहीं और १५ । भोज चितौड़ ||२०|| aafter भोज भील राव हमीर सौं कहता है ग्रहो १७ राव हमीर ? अंसो कबहू नहीं होई । इस गढ़ में सीर हमारा तुम्हारा दोयन का है । - १ ख. पल में पकड़ें सभी, ग. पहले में बूंब साहि बिजै । २ ख लिया । ३ ख संखोधर, ग. स्यकदर । ४ घ. कसी टेक पतिसाहि । ५ ख. सौं । ६ घ. लाऊ । ७ ग. जब । ११ ख. यह गद्यांश राव सौं बात करि, हुकम ८ख. ग. कहै छै । ६ ख परि । १० ग. मुजि कौं तथा छंद का प्रथम पद नहीं है; घ. भोज भील सलाम करि, करो तो जैन सिकंदर सौं लोहा करों; राव भोज सौं कही । १२ ग. राखि लिये । १३ ग. अँसी । १४ घ. नहीं है । १५ ग. घ. कोय । १६ ख. इसके श्रागे- इस गढ में सीर हमारा तुम्हारा दोयन का है । १७ ग. ये हमीर । For Personal and Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 62 : हमीररासो छंद जैत सीस' कर धरै कंवर, कह (ताहि)२ खिलाये। सो' हमीर के काज, भोज कबहू नहीं पाये ? ।। पेलि हसम खंधार की अर गहौं सिकंदर वीर५ । चलो ६ साहि समजंग त जि, अब कौतिग देखि हमीर ।।२६१।। प्रोसर८ इसे हमीर, भोज बहौंरचों कब पावै । जुग में जीवन अलप है, (अर) कोऊ थिर न रहावै ।। प्रचलनाय मोहि वर दियो, सवा पहर पहोमि (न)११ परौं। जंग जुरि १२अलादी साहितौं, बिना सीस सफ्रजंग करौं ।।२६२॥ सुर-नर कायर-सूर सदा, कोऊ थिर न रहाये । कर हमीर दिसि जोड़ि, भोज यह'४ बचन सुनाये ।। हरखै१५ भील१६ हमीर के. मनु सोर पावक जरी । जन सिकंदर को सलाम(जब). अलीसेर अफ्रजंग करी ।।२६३।। करि सलाम राव कौं, भोज कर सार संभाह्यो । (ज) काममेरि के मोर, सिकंदर साहि पठाये ॥ राव हमीर२ • स्याबासि देत, दोऊ२१ लड़त धड़ बिन सीस२२ । भोज बीर२३ कसमेरिके, पाड़े सहंस पचीस ॥२६४।। मिले भिसतनि२४ मीर, सूर सुर-लोक समायै । सजल २५ राव जल भरै, नीर लोचन२६ भरि प्रायै ।। दीन दुनी२७ परदेस में, यौं२८ परिजात अंधेर । कहै हमीर संगी२६ भोज से, नहीं सूर कहूँ' सेर३२ ।।२६५।। १ ग. म्यकंदर घेर। २ ग. ताहि गोद। ३ यह पद्यांश मूल प्रति (क) में नहीं है। ४ ख. संखोधर, ग. स्यकंदर । ५ घ मीर । ६ घ चलत । ७घ. जीति । ८ घ. मोसर । ९ ख. कलि । १० घ पांच । ११ घ. पडू। १२ ग. जुरौं, घ. जुडं । १३ घ. सारि बांधि सन मुख लडूं। १४ ग.घ. इम । १५ घ. कोपे । १६ क.ख. मीर । १७ घ. अली मीर। १८ ख. सफजंग कर, घ. अपूतीनि फिरि । १९ ख संखोघर, ग स्यदर । २० ग सहि। २१ क तोहू । २२ घ. देखि। २३ घ. मीर सिकंदर के । २४ ग मसीतिन । २५ ग. जब राव जल भरे। २६ ग. नमन नि । २७ ख.ग. दीन दुनि परि दसूं देस के, घ. दुनियाई दसू देस में । २८ ख. ये परजा प्राधीन । २९ घ. सुरिण । ३० घ. अपा. अब । ३१ ग. कोऊ । ३२ ख.ग.घ. और । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - हमीररासो : 63 गया सनीपी' भोज, प्रबै कोऊ दिल की जाने । अमर रहै कलि भील, राव मुखि संपति वखाने ॥ ह दिलगीर हमीर कहै', करता कर यो विजोग । अपछरि वरि सुर-पुर वसै, भील सहंस द्वे भोज ।।२६६।। जब जैन सिकंदर साहि, राव परि सनमुख धायै । तजि कबान गहि तेग, सीस सूरजिन' को नायै ।। असे दामनि प्ररस थे, चमकि चहु दिसि जाय । असे तेग हमीर की, सिर बही सिकंदर साहि ॥२६७।। बचनिका पतिसाहि सिकंदरि पासि प्राया। छद धुनि सीस तब साहि. कर गहि मीर१२ उठाये । दई कौन बुद्धि दई, जिस दिन रणथंभ प्रायै ।। पड़े खंधारि सवा लख, गज १७ सतरि सिकंदर वीर । किया न अब १४ कोऊ कर, ये सफजग हमीर १२६८।। गज सतरि सवा लख तुरी, सिकंदर १५ मीर खिसाये। कर हमीर गहि तेग, साहि दल उलटि चलाये ।। सासीम हसन मुरादि महोवति, मदफर मिरजा नर। असकर असी निजामुदीन, ये दस पडं अमीर ।।२६०।। १ क. समोपी। २ ग. को। ३ ग. सिप.ति । ४ ग. हो। ५ घ. प्राधीन । ६ ग. कही। ७ ग घ. द्वै सहंस भील सौं भोज । ८ ख.ग.घ. सूरजि कौं । ९ घ. तै परि । १० ग. स्यकदर साहि खेत पड़या- पूर्व अधिक पाठ। ११ घ. पति . साहि। १२ ग.घ गहि स्यकंदर । १२ ख. और संखोधर मीर। १४ घ. हर । १५ ख. येता मीर खेत खिसाये। १६ ग. सासीब । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 64 : हमीररासो ० पड़े सूर अरु मीर, नीर ज्यौं रकत बहाये । जोगनि भैरौं बीर, गिरझ भख ले ले जाई ।। सवा पहर रथ राखि सुर', भये आपण कौतिक हार । पड़े खंधारि सवालख सूर, अयुत पड़ि च्यारि ॥२६१।। द्वे लख मीर अमीर, प्रथम गढ़ पहौमि मिलाये। लख रूमी रणधीर. छांरिण के खेत खिसाये ।। आरब मीर असी सहम, गये कंवर ले मारि । कहे साहि हमीर तुम, खाली करी बंधारि ॥२६२।। हसम आठ लख सुतर, खेत रणथंभ खिसाये । महरमखां के बचन, यादि हजरति तुम आये ।। सीस टूटि सहस गज, धर पड़ दो से सतरि अमीर । कहै साहि रखि सेख कौं, अचरजि किया हमीर ॥२६३॥ वचनिका जब पातिसाहि राव हमीर सौं कहता है । अब अपना गढ़ कोट कुटंब" जाय संभारो१२ । तब राव हमीर कहता है- गढ़ किसका, किसका कुटंब' । पासमाहि कहै छै१४ । छद जुग येक बरख ? १५, राव मुझि सनमुख तुम लड़िये । मुसलमान लख पाठ, अयुत १६ दस हिंदू पड़िये ।। १ ख. सूरजि को भये कोतगि निहार, ग. सु भई कौतिग रखणहार। २ घ ऊपरि अ.पा. । ३. घ वलख रणथंभ प्रथम । ४ ध. यह पद्य नहीं है। ५ ग घ. कौं । ६ ग घ. सिर । ७घ टूटि साहि संग जोधा पड़े। ८ ग. रिखि । ९ ग. सौं । १० ग. ये राव हमीर अब जग मति कगे प्र.पा.। ११ ग. कुटंब कौं। १२ ग. संम्हालो। १३ ग. किस की ह्या तिरिये अ.पा.। १४. केवल (ख) प्रति में । १५ खे.ग.घ. दोय १६ घे. इति हिंदू दस पड़िये । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमीररासो : 65 इत्ते लेख रणथंभ गढ, प्रदलि न मिटै हमीर । कहै साहि जुग जानिया, तू सूरवीर मै पीर ॥२६४।। दे हजरति स्याबासि, दिसटि दिली दिस फेरी। धनि धनि राव हमीर, धन्य - स जननी तेरी ।। गये सेख दोऊ भिसति कौं, महिमासाहि अरु मीर । अब जंग किस खातरि करौ, उलटि फिरि जाव हमीर' ।।२६।। पहौमि पलटि फिरि होय, सूर जो पिछमि उगावै । कुतब उतर दिसि छंडि, दखिण उदौत करावै ।। अनलपंखि आकास तजि उतरि चुग धरति प्राव । हजरति राव हमीर कहै, तोऊ परै न पीछा पाव ॥३६६।। दोहा मीर अमीर हमीर के'', चलै सबै सिर नाय१२ । तो बिन ऐसी को कर, रनतभंवर के राव 3 ॥२६७॥ १ घ. तुम सूर वीर नर । २ ग अंगजी राव दिन दाई तीजो बखानू । केते नरपति चल गये, जाति काहू की न जानू ।। बचन तज्या न हठ तज्या, कर गह तजी न सार । हजरति कहे हमीर तुम, रहै अमर संसारि ।। गढ़ चौरासी जीति, दसू देस पाय लगाये । तुम से राव हमीर, और कोऊ मुझे न मिलिये ।। अंसी करि हमीर तुम, यो कोई पै नहीं होय । जस कीरति जुग में है, ना थिर रहै न कोय ।। दोहा : प्रेते बचन मुख ऊचरै, सो सब भये पखान । ___ असत बचन कबहू न कहै धनि हमीर चौहान ॥ (प.व.पा. आगे छद से पुन चालू) ३ घ. साहि । ४ घ. फिरो हमीर । ५ ख. राव कहै छ, घ. जब राव हमीर पातिसाहि सौं बचन उचारे । खेत बिचि दोऊ खड़े (म पा)। ६ घ. जो होय । ७ क ऊगै । ८ घ. करि रहै, ख. यह पद्यांश नहीं है। ६ घ. प्रधणपंख । १० क. प्राव, ग.घ. माये । ११ घ. कहै । १२ ख. निवाय । १३ घ. यह पद्य नहीं है। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 66 : हमीर रासो ० (जब) उलटि साहि' दल फिरै, राव जब गढ़ कौं आये। करि करि नारद निरति, राव उपदेस लगाये ।। रनतभंव(र) साको भयो, सोच न करिये राव। सिव कौं सीस चढाय के, स्वर्ग२ लोक कौं जाय 3 ||२६८।। बचनिकाजब सरिवां राव हमोर सौं कहते हैं- बोल बाला सदासिव तुम्हारा २खे । अरु पातिसा हि दिली कौं चले । छंद हसम रतन गढ़ देस. राव किन बहौरि संभारो । कहै सूर' सब बचन, राव मति सीस उतारौ ॥ स्यघ विसन सापुरसि बचन, केळि फळे यक वार । त्रिया • तेल हम्मीर - हठ, चढ़ न दूजी वार* ॥२६६ ।। बचनिका तब राव रिवां ने सीख दीनी । रतन की ड्योढी चीतौड़ जावा । यका येकी राव' ही रह्यौ । गोढि'१ येक खवास रह्यौ । १ ख. दिल्ली की फिरिय, ग. दल फेरि । २ ख. तुम स्वर्ग, ग. घ. प्राप सूर लोक । ३ घ. जब राव हमीर कही- गढ परि साको होयो किसि विध जारिणये । नारद मुनि कह्यो - सुरग सौं पंचरंग चढ़गे । निरख राव [राणी] मुरझाई राव सौं बचन कहै- कलि मैं दल येती मुये। सो गुर पुंजीसी गौर म करी दोऊ सहंस ले संगि । पतिसाह पहेली सुरलोक कौं, तिरिय तर्ज रणथंभ ।। येक वरस द्वादस संवत पहोच्यो प्राय । मीर सोऊ संकर बधन, कहत सूर सुनि राव ।। [शेष पृ. 67 पर For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमीर रासो : 67 छंद सनमुख राव हमीर सदा, मिव (कौं ) सीस चढ़ायो । मिलै पारखत अय, अपछरां मंगळ गायो । पहौप माल ले उरवसी, सो मैल्हत उर प्राय सिव कौं सीस चढाय के, चलै सूर लोक कौं राव ||३०० || 3 बचनिका तब राव, सुरजन सौं कही- पातिसाहि, महरमखां प्रावै तो दोयस्यारि सुखन कहै जाऊ । जब महरमखां अरु पातिसाहि आये । राव क सूरापरण देखि, निमस्कार करिया । जब " पातिसाह बचन कहता है । छंद धनि धनि राव हमीर, धनि-स जननी जिन जाये । जो जो कहते बचन, सूर सोई निरबा है || आप काज सब को मरै, पर कारजि मरत न कोय । तुमसे १० राव हमीर नर हूवा न कोई होय || ३०१ ।। | पिछले पृ. 66 वा श्रवशिष्ट ] बचनिका - सूरियां बहौरी राव हमीर को सला देता है । पातिसाहि दिली कौं चलै । तुम भी गढ की श्रावादनी करौ । घ श्रागे छंद है । ४ ग. रगत ५ ख सूरियां । ६ ध. तब राव कही- प्र. पा. । ७ घ. हठ तो राव हमीर को, श्ररु रावन की टेक । सत राजा हरचंद को अरजन बारण अनेक || बचनिका- ८ घ. सूरियां सौं राव हमीर कहीरतन की कीजो | अब तुम गढ चीत्तौड़ कू रह्यौ । पपा । ९ ग. गोदि । १० ग. श्राप । Jain Educationa International अपा || सा पीछी मेरी करी अँसी पीछी जावो । खवास एक राव पारि ११ ग. संगि । ३ ख मिलि हित कर आय । । १ घ. सदास्यों कू । २ ग. सो मेलत । ४ ग. अब सूर लोक कौं चले राव, श्राप सूर लोक ७ ग. और । ८ ग. तब । ९ ग. कहते हैं, घ. प. पा. 'सुरजन' सौं कही पातिस्याह महरमखांन कौं लावो तो उससे वाति करों । जब पातिसाहि 'महरमखां सुरजन' के संग राव ' हमीर' के पासि प्राय खड़े रहे । स्याबास ५ ग. जब । ६ ख. कौं । जब सीस बचन उचार्यो ! दे करि पातिसाहि कही । १० ग. तुझि सा । For Personal and Private Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 68 : हमीररासो द्वादस वरस हमीर तुझं, हम बहौत सेख न हाजर किये, बचन अपने अमर रहै हजरति कहै, जहां लग ऊगे भांन । देत जिय बचन न तजै 3, धनि हमीर चौहान ॥ ३०२ ॥ साहि बचन यम ऊचरै, साह सुरजन सुनि लीजे । येक राव का रूम प्रानि, हमरे कर दीजै ॥ अबसि बसि सुरजन कही, हुकम किया पतिसाहि । कदम येक सनमुख धरे परचौ सीस धर जाय ||३०३॥ . हंसे अलावदी साहि जब ऐसे निमक हराम बहौरि, समझाये । निरबा है || · सुरजन दिसि " चाह । कोऊ रहन न पावै ॥ कर जोरि साहि बंदगी करें, सुनि देवन सिरि देव । जो कुछि राव हमीर कौं, सोई देहि संग मोहि" ||३०४|| Jain Educationa International या हमीर की राह और हजरति को पाव" । जब जब राज हमीर १२, जब १३ ही सीस चढ़ावे || 3 लोक १४ सौं पाय । करें राज रणथंभ का सूर करि करि जस जुग आपणों, फिरि १५ फिरि सुरपुर जाय १६ ।। ३०५ ।। - १ ग. उगवै । २ ख ग. देह तजी बचन । ३ ग त्यागिये । ४ ख हमारे कौं दीजै । ५ क. अब सब सौं, ५-६ तक का पद्य भाग ( ख ) प्रति में नहीं है । ७ घ तब साहि सुरजन । ८. तन चाहै । ९ ख कोऊ नहीं [आागे पावं ] । १० ख. प्र. पा. सदा स्योजी कहै छै, महमखां सौं पातसाहि कही से हरामखोर को हरामखोरी करी सौ किसी राह चलावो । सूरा पूरा का बाजा रे डाका रे बांधी हाथी के हाथि घींसांवो । लसकर के सिपास फिरावो । ताभरि पाछे ढाढी बरदार कह्यो- आपने खांबद सौं दगो करें सो हरामखोर सुरजन की राह पहोंचेगा सदासिव पातस्याह सौं कही पद्यांश के स्थान पर परिवर्तित पाठ (घ) ११ ग. प्रा । १२ ग. प्र. पा. करं । १३ घ. सदास्यो के सीस । १४ ख. कौं । १५ घ. फिरि अमरापुरि । १६ ख. पद्यांश नहीं है । For Personal and Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करेगा । जब प्रलावदी साहि साहि, गौरी सुधि प्रयं । कहैं हमीर करि रोस, बहौरि मति सार संभावै ॥ काग दिसटि होय पूतरी यक, फिरत दोऊ दिस आय । असे जीव धड़ सीस बिचि, यत प्रावत उत जाय' ।। ३०६॥ बच निका गणेस देवता राव की प्रसतुति करता है। अब राव हमारी रख्या कौंन Jain Educationa International हमीर रासो : 69 * कहै सीस गढ दियो, साहि च्यंता मति लावे 1 श्रबै हमीर चौहान, बहौरि नहीं सार संभाव || द्वै कर जोरि श्रलावदी, रहै साहि सिर नाय | धनि हमीर हठ ना तज्यौ, तज्यौ रणथंभ गढ़ राव ॥ ३०७ ॥ छंद J इस बरस जैत राज ररपथंभ बरस द्वादस द्वै कीना । हमीर, राज परजा सुख दीना ॥ मिटी ग्रान चौहान की. जुरै न कोऊ जंग करि । कहै गनेस होत हुवा अब गढ भयो मलेछ घर ११ ।। ३०८ ।। दोहा मिटं, जैसा जिन का दोख । मेट्या न किसही का हजरति कहै हमीर सौं, तजौ राव उर दोख ||३०६ ।। १ ख प्र.पा. राव को सीस कहै छ । २ ग. फेरि । ३. ग. घ. रणतमंवर तज्यो राज ; घ. दोस्त हो नहीं मिले, अलादीन दुसमन होई आये । तुम हमीर श्रोतार, हम तम अराह नहीं पाये ।। गदगद वानी साह के, उपज्यो अधिक सनेह । हो मुराद सेव करू, संगि हमीर मुझि लेहु ॥ पपा ॥ ; घ. बीच का च भाग नहीं है । ४ ख. करै छ । ५ ग. रछ्या हमारी । ६ ख पिच्यासी । ७ ख. पद्यांश नहीं है । ८ गजुरधा न कोऊ जंगि श्ररि । होतब हमीर का । ११ ग. गणेश तो गयो । जमि मोर । १० ख० ग. For Personal and Private Use Only ९ ख. जुरै न कोऊ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 70 : इमीररासो aafter राव हमीर कहता है', पातिसाहि सेती । छंद दोहा करौ दोख श्री कृष्ण सौं, बक े विष कुचन लगाय । बड़े न गुण चित धरं जननी गति दई ताय ।। ३१० ॥ छंद दोसत होय न मिल्यो, मिल्यो दुसमन होय आयो । तुम हमीर ग्रौलिया, मरम तुम्हारा नहीं पायौ ॥ गद गद वानी साहि के, उपज्यो अधिक सनेह । होय मुरीद सेवा करो, संगि हमीर तुभि लेहु ॥३११|| ये हमीर श्रौतार, याहि सरभरि नहीं कोई । ऊडगन कोरि अनेक, सूर क्यों सरभरि होई || सिव श्रवाज इम उचरें, सुनो अलवादी साहि । जो तुम मिला हमीर सौं, समद भांप ल्यो जाहि ।।३१२।। ॥ सीस वचन यह ऊचरे साहि सनमुखि सुनि लीजै । | सेतबंद सिर नाय, बदगी सिव की कीजं ] उपजं विनसै संग दोऊ, जे समंद भांप ल्यो जाय १० 1 मिल सूर के लोक मैं, हम तुम महिमा - साहि ॥ ३१३॥ ११ भया १३ सीस धड़ येक, सदा सिव- लोक पठाये। सुर तेतीसौं कोड़ि, राव के दरसरण आये ॥ जिसे सुर सुरलोक के, मिले सबै सिर नाय 1 ata fris कीनां हमीर तुम, रनतभंवर गढ़ जाय ।। ३१४ ।। Jain Educationa International १ ख. ग. हमीर कहै पातिसाहि सो । मैं रहूं तुम्हारी पाय, ग. भरम । कहै छँ ग. अ.पा महादेव कहै । राव को सीस कहै छ । ११ . तुम हजरति सगि ९ मूल प्रति ( क ) में नहीं हैं । १० ख. पद्यांश नहीं है । । १२ घ. होय सीस धड़ जुड़ी । २ ख. कुचि ते विषन लगाय | ३ ख. ४ ग. मुझि ले जाहु | ५ ख. प्र. पा. सदास्यो ख. यौं । ७ ग. कौं । ८ ख. श्र.पा. For Personal and Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -- हमीररासो : 71 तब लग्या साहि उपदेस, सुरति साहिब परि लाई । हसम खजाने तजै, तजी दिलो पतिसाही' ।। मिटि कुबुधि तन साहि की, प्रगटि सुबुधि सरीर । हजरति प्राय हसम में, कहत हमीर हमीर' ।।३१५।। साहि हसम मै अाय, खैर खैराति करावै । बंटै खजानै माल, लेहु जेता जो चाहै । महरमखां महेरावखां. हजरति लिये बुलाय । दिली तखत बैठानियो, अलाव(र)दी को जाय ।।३१६।। कर महरमखां जोरि, साहि सौं बचन सुनाये । हठ हमीर का रह्या, खेसी सातों पतिमाहि ॥ हसम आठ लख सुतर, लख पड़ सहस गजराज । खरच खजांनै साहि के, भय छपन कोड़ि दस लाख ।।३१७।। रिति पावस बिन नीर, साहि कोऊ न सुख पावै । ज्यौं औरति बिन पुरखि, साहि को सरण रहावै ।। महरमखां यम ऊचरै, दिखरिण दिसि मति जाव । ज्यौं रनयंभ हमीर बिनि, ज्यौं दिली(बिना )पतिसाहि ।।३१८।। दोहा हीमति गहो हजरति कहै, सब सुनिये मोर अमीर । जात है राव हमीर अब, मुझि नजीक सौं दूरी ।।३१९ ।। जब अपने अपने देस, साहि दल उलटे पाये । दखिन देस पतिसाहि, कुच दर कूच चलाये ।। परसे साहि अलावदी, सेतबंध सिव जाय । समंद झांफ हजरति लई. हुरम सहित पतिसाहि ।।३२०।। १ इसके प्रागे प्रति सं. (ग) का एक पत्र त्रुटित है। २ यहां पर प्रति सं. (घ) का पाठ समाप्त कर दिया गया । ३ ख. पद्यांश नहीं है । ४. केवल (ख) में । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 72 : हमीररासो ० मिल राव रणधीर , खान वाल्हरणसी भाई । महिमासाहि रु मीर, मिले हजरति सिर' नाई ।। पीछै मिलै हमीर कौं, अलादीन पतिसाहि । हजरत राव हमीर के, गहै कदम कर लाय ।।३२१॥ धनि हमीर चौहान, आदि कुल यह चलि आई । यह साहिब की राहि. राव हम तुम सौ पाई ।। भरत खंड चहुवै दिसा, देख्या सब जुग जोय । तुम बिन राव हमीर मुझि, भिसति मिलावै कोय ? ।।३२२ । निद्रा खुध्या काल जुरा. झंपे नहीं कोई । पहुँचे राव हमीर, साहि सूर संग सबैही ।। पासा देवल और सब, महिमासाहि रु मीर । मिलै सबै सुरलोक में, हजरति हरम हनोर ।।३२३॥ मिलै'• राव पतिसाहि, खीर ज्यौं नीर समाई । ज्यौं पारसि को परसि", बजर कंचन होय जाई ।। अलादीन हमीर से १२, हुवा न बहौरयौं होय १७ ॥ कवि महेस यम ऊचरै, वे१४ सभी सहित सुरपुर वसे ।।३२४॥ इति राव हमीर रासो गढ मजकर संपूर्णम् ।। शुभमस्तु ।। मिति : प्रासोज सुदि ३, सं. १८२३ १ ख प्र.पा. सेती २ यहां से प्रति सं. (ग) पुनः प्रारम्भ है। ३ ग. खंड भुव ४ ग. ६झि । ५. ख कण ६ ग. खुध्या न । ७ ख ग. सब कोई ८ ख. कसोर । ९ स्व. अरु. ग. साहि हमीर । १० -११ ख. में पद्य भाग नहीं है । १२ ख. नर । १३ ख. होय । १४ ग. ये। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'हमीर-रासो' के सम्पादन में प्रयुक्त प्रतियों का विवरण १. प्रति संख्या (क) मूल-पाठ यह प्रति सभी उपलब्ध प्रतियों में प्राचीन तथा शुद्ध है। पत्र ४ से प्रारम्भ होकर पत्र ८३ पर 'रासो' सम्पूर्ण होता है । पुष्पिका निम्नलिखित है इति राव हमोर रासो, गढ़ मजकूर सम्पूर्णम् । शुभमस्तु । मिति प्रासोज सुदि ३ सं. १८२३ [वि. शास्त्र भण्डार मन्दिर संधीजी जयपुर; प्रति सं. ४३ । प्राकार ६१४६; प्रति पृष्ठ १३ पंक्तियां, प्रति पंक्ति अक्षर १३ से १५] २. प्रति संख्या (ख) पाठ-भेद यह प्रति सभी उपलब्ध प्रतियों में पूर्ण है। 'रासो' पत्र १ से प्रारम्भ होकर पत्र ६१ में सम्पूर्ण होता है । पुष्पिका निम्नलिखित है यतो हमीर-रासो, सम्पूर्णम् । समाप्तम् । पोथी हरनाथसिंघ की पूरी हुई। राजगढ़ का डेरा (में) सगराम राजाजी का डेरा हुवा छाजिदा संवत् १८३८ मिती दुतीक जेठ वदि पख १८३० दसकत केलणसिंघजी मोतीसिंह का [भरतवाल टोंक का गढ़ पटोड़ा रा हरुप] वांचे जीने राम राम वांचीज्यो [वांच्यो] मोहनै दूषण छै नहीं, पोथी दूसरी की देख्या देखी उतारी छः । [वि. अभय जैन ग्रंथालय, बीकानेर (प्रति) में प्राप्य । इस गुटके में 'रासो' से पूर्व रामच [रि] त्र, दोला लीला ? तथा कुछ भजन लिखे हैं। प्राकार ६४४३ प्रति पृष्ठ में ६ से ८ तक पंक्तियां, प्रति पंक्ति अक्षर १५ से १६] ३. प्रति संख्या (ग) पाठ-भेद यह प्रति पत्रांक ३ क से प्रारम्भ होती है तथा पत्रांक ४६ में 'रासो' सम्पूर्ण होता है । पत्रांक ४६-४७ त्रुटित है एवं पत्रांक ४३ के पश्चात् एक पत्र पर पत्रांक अंकित नहीं है। पुष्पिका निम्नलिखित है इति श्री राव हमीर-रासो, गढ़ मज [कू] र नामा सम्पूर्णम् । शुभमस्तु मिति भादों वदि २ गुरवासरे संवत् १८४० पोथी लिखि मानपुर मध्ये । रासो यह हमीर को, महेस ऋत ततसार । लिख्यो जाट जैक्रस्न नै, चूक्यो लेहु सुधार ॥ श्री । श्री। श्री। [वि. श्री अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर प्रति सं. ६३६; गुटका आकार ६४४१ प्रत्येक पृष्ठ में १० से ११ तक पंक्तियां; प्रत्येक पंक्ति में १८ से २१ तक अक्षर] इस प्रति में छंद संख्या दी गई है । छंद १० से २४३ तक हैं । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७४ ) ४. प्रति संख्या (घ) पाठ-भेद यह प्रति पत्रांक ७ से प्रारम्भ होती है तथा पत्रांक ७० पर 'रासो' सम्पूर्ण होता है । पुष्पिका निम्नलिखित है श्री रामजी रासो-हमीर सम्पूर्ण लिख्यो। लिखावत रुड़मल गीदोड़ी। जांति अग्रवाल, वासी अजैवगढ़ का। वांचे सुणे ती सौं जुहार वांचज्यो। मिती सावण सुदि ६ बुधवार सं. १८२३ का [संवत् को काटकर १८३२ बनाने का प्रयत्न किया गया है।] दस्तकत रूड़ा गांदोड़ी का रूपचन्द का वेध [स] का भंडारे जी मधे लिखी। जाति अग्रवाल गरै गोती जनोबा। देखी तिसी लिखी। लिखवा वाला ने दोस नहीं। जीठा श्री गणेश देव की मूर्ति छ: जी। [वि. श्री अभय जैन ग्रन्थालय बीकानेर प्रति सं. ६३७ गुटका । प्राकार ६४६४ प्रत्येक पृष्ठ में ६ से ११ तक पंक्तियां । प्रत्येक पंक्ति में १४ से २१ तक अक्षर । लिपि अस्पष्ट ।] ५. प्रति संख्या (ङ) पाठ-भेद इस प्रति का पूर्व तथा अंतिम भाग खंडित है। केवल मध्य के कुछ पत्र उपलब्ध हैं। लिपि अस्पष्ट । [वि. श्री आमेर शास्त्र भण्डार, जयपुर क्रमांक १५१६; गुटका सं. ७४] Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पद्यानुक्रमणिका 9 १६४ १६ २४६ १२ ३१७ १२८ १३० प्रचरिज हूवो हमीर अजमति चाहो और प्रदलि दई के हाथि अध सहस गजराज अपना उतन उजालि अपना भवन हमीर अपना महजम छाडि अब चलै दूत मुरझाय अबदल हसन हमीर अबदल करीम पतिसाहि पेले अब लोहा मति करो (अब) सुनत-बचन ये सेख अमरपुरी ब्रह्मलोक वचन अलादीन औलिया अलादीन पतिसाह सु अलादीन पतिसाह सौं असुर मारि अजपाल (प्रा) पाठ सहस चौहान तीन प्रा तरनि सौं पुरखि साहि आदि भवानी अंबिका प्रादू थान अजमेरि गढ़ प्रापन सूर कहाय आम खास उमराव सबै प्रासावती सौं कंवर भाखै २६४ १९२ (ऐ) २१३ ऐसो करम संजोग हुरम १६४ (प्रो) १३१ औसर इसे हमीर २५४ २७८ कंवर निकसी तब प्राय कछु भवानी वर दिय २०० कमधज कूरम गौड़ तुवर क्या मगरूरि हमीर १३८ कर महरम खां जोरि १४८ कर महरम खां जोडि करि कुरान महि साहि करि सलाम रणथंभ को करि सलाम राव कौं. ४२ करि आखेटक राव ४० करि देवन सौं दोख करी तोप तयार १०६ करयो दोख श्री कृष्ण सौं कह हजरति सौं वचन १७२ कहां जैत कहां सूर. कहां जगदेव पंवार __ कहां मैं कहां या सेख ८ कहै सीस गढ़ दियो ११२ कहै पतिसाहि विलंब न कीजे ८६ कहै पतिसाहि उजीर १६१ कहै सेख कर जोड़ि रजा कहै हमीर सुनि दूत वचन कातिग पिछले पाखि २३८ काछ वाच निकलंक कालबूत को सेख यक २६५ कीनां कुटन खराब १४४ केता गढ़ रणथंभ राव २२५ N. o ० ०० r . २३५ ३२ ३०७ १४५ इती आसा दई प्रासिका (उ) उच्चरत सदकी वचन यम उडि सोर दामु महताप लग्गे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के महिपति भए के दिन के बीच केसरि सौंधे राव कोपि सेख पै साहि को सायर को सूर कोपि पतिसाहि रढ छाणि लभ्गे कौन कौन पतिसाहि कै (ख) खट सहस द्वार रणथंभ खड़ा खेत रणधीर खड़ा सेख दोऊं दलन खड़िये मीर अमीर सब (ग) गंग जमन दो नीर गज इकसठ नो नो लख तुरी गज सतरि सवा लख तुरी गढ प्रगट रणथंभ साहि ग्यारा से दाहोतरा म्यारा से चालीस गया सनीपी भोज गये देव घर छांडि गही सेख कर सार गही टेक छाडै नहीं गीदड़ स्यंध सिकार गौरीसुत सौंराव (च) चकचू दरि गिली सरप चढौ दिलीसुर कोपि चतरंग के कंवर रणथंभ आये च्यारभुजा प्रावध सहित चलि आया पतिसाहि चहुं ओर चहुंवांन तें (ज) जब अपने-अपने देस जब अलावदी साहि- साहि ( जब ) अलादीन हठ छाडि ( जब ) उलटि साहि दल फिर Jain Educationa International ( ७६ ) १४ २१० २४७ २६३ १३४ १४३ ६३ ७३ १७४ २६२ £5 ६१ १८१ २६० श्र ८२ १३ २३ २६६ ४३ २७२ २२७ १८५ २१७ १०३ १५८ २ २६ १५ ३२० ३०६ २१६ २६८ अ जब करले नीर हमीर ( जब ) कही महिमासाहि जब करि बदन मलीन २४३ २२३ २३१ जब करि सलाम साहि कौं १६७ जब कहत वाहि (द) अलि हुकम पाऊं २५७ ( जब) करि साहिब कौ यादि २१६ जब कहै काकौ रणधीर जब जैन सिकंदर साहि जब नारद पतिसाह सौं जब मीरां नौ सबद जब राव रणधीर जब राव रणधीर प्रापन सिघार जब लिखि परवाने राव जब साहि सौं सूर सनमुख जुरिये जब साहि उजीर सौं जब समझया किन साहि जब सुरजन कर जोरि ( जब ) हंसि के कहै हमीर ( जब ) हंसि कहै हमीर तुझि ( जब) हंसिके कहै हमीर जब हंसिके कहै हमीर जब हमीर फुरवान जब हमीर रणधीर साहि जामन मरण संजोग जिती घर सिर सेस के जितो राव रणधीर जीते सुरनर असुर सबै जुग कीरति जस वार करि जुग येक बरख जुग पावक सौं जरे जुमे राति पतिसाहि जुरा मरन भय काल जेठ मास बुधवार जैत सीस कर घरै कंवर जैत राज रणथंभ जो हमीर का हुकम (ड) डाक येक दस सहस For Personal and Private Use Only १५६ २६७ १८७ १३७ १५४ १५० १५५ १४६ १२६ २८४ २२८ २२४ २२२ २१५ ४१ ५६ १२४ २३ε ६ २२० ४४ २० २६४ अ ६० १३६ १८८ २५० २६१ ३०८ २१८ && Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७७ ) २६९ २६५ अ २६२ अ १६६ २७६ ३६ १८६ ८७ २०६ २७५ ७७ १३५ ३११ देव दोख तजि साहि करो दे हजरति स्याबासि @ लख मीर दोऊ दल सारन भये दोऊ वीर सफजंग जुरै दोय लख बरकंदांज दोय सहस तोप हयनालि दोसत होय न मिल्यो (घ) धनि धनि महिमासाहि धनि धनि राव हमीर धनि पतिबरता नारि धनि सु राव रणधीर धनि हमीर चौहान धर अंबर बीचि प्राय धुनि सीस तब साहि ३१५ तजत सुबुधि अरु कुबुधि करि तजिये स्वारथ लोभ मोह तजै दस गढ कोट लोभ तज्यो साहि अभिमान तब खड़े अलावदी तब गोलंदाज पातिसाहि सौं तब मीर गबरू कहै तब लग्या साहि उपदेस (तब) सुरजन करि सलाम तास अंस सौं भये बहोरि तिथि नवमी आसोज सुदि तीन सहस कमधज तीस सहस खरसान मीर तीन सहस नीसान तुरी सहस इकतीस तुम मके के पीर तुम सौं बली खुदाय तुम सांवंत प्रथीराज तुझे माफ तकसीर तोप रही साबूत TPO २४१ १८४ १५७ १५३ २६४ ३२२ २६८ ८ १०७ नहीं जती बिनि जोग निठे सामान सफ्रजंग कीज निन्दा खुध्या काल जुरा निस्यान सो साजि सुर सबद बज्जै २१४ १६० ३२३ १४६ २८१ २०८ ८७ थिर कोई न रहै राव २३६ पड़े सूर अरु मीर २९१ अ थिर रहैन कलि कोय गिर मेरु चलिये(पृ.) ३३ पति-भरता जे धरम इति पतिसाहि से घात कोऊ मति विचारौ २५३ दखिन देस अरु उत्तर पल में दू बकसाहि २८६ ५८ पहलै हसन हुसीन दवागीर लख येक १०१ पहिलै साहिब सुमरिय दसौ देस के मलिछ मिलि १७ पहौमि पलटि फिरि होय २९६ अ द्वादस वरस हमीर तुझे पातिसाहि तब दूत सौं दियो पदम रिखि राज करू पूरब पछिम दखिन दिल दरेग (मति करौ) ११८ प्रथम सूर दस सहंस २४८ दिली होय पतिसाहि २८२ दिली छाडि कर चले बहोरि ३७ फिर पूछत है दूत सौं दूत कहै पतिसाह सौं ६६ फिर पूछी पतिसाहि ७४ दूत दोऊ कर जोड़ि ५४ फिरयौ हूं खान सुलतान दूत दरबि ले जाह जो २०४ फेरि पूछी जब दूत ने Mm ०० X MU کر لی با ६८ ७६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७८ ) मिसरख देस कंधार २५५ मीर अमीर हमीर के ८१ मुसलमान हिंदवान कौं १२६ मेटया न किस ही का मिटै १३६ मैं मका का पीर २१२ मोर धरि सीस दोऊ कंवर हरखै २६७ अ २७६ ३०९ १०६ १६२ २३३ (ब) बजत नीसारण असमान गरजै बंद-जन दरबारि द्वारि बगतर पाखर टोप बरस आठ जिम हले बही तबै पुल पतिसाहि की बहौरि राव सौं बचन बहौरयौ राव हमीर बहौरि सेख कहै वचन बालणसी रणसी रणधीर बीस सहस घृत निमक बुधि अपनी सौं आय बेर बेर पतिसाहि क्यों बेर बेर फुरवांन कहा १८० २६७ १५६ २०३ २४ २८५ यक लख हाटि बाजार १०० यते दिन साहि रनथंभ लरिये यते भये ता अंश सौं यते मीर रण पड़े १०२ यहां मरहम पतिसाहि १३२ या हमीर की राह ३०५ ये च्यारों गढ हमीर १०६ ये बातें रणधीर साहिकों ये सुनि नौबति के नाद ये सुनि बचन हमीर २७३ ये सुनि हमीर के बचन २३२, २७० ये सुनि रानि के बचन ये हमीर औतार ३१२ यौ साहि हमीर सफ्रजंग जुड़िय २६० १७८ ३१४ भया रोस रणधीर भया सीस घड़ येक भयौ कोप पातिसाहि भयो सोच मन साहि के भयौ हैफ जिव साहि के भूय समान न भवन कहूं २४४ C २०५ २६. मद मसीति मेटि जे हरखि मन द्वादस चुग पड़े महरमखां पतिसाहि सौं महरमखां यम ऊचरै महरमखां तब यौं कही मालती मरवा मोगरा मार असुर कुल मेट मिटि गये मीर अमीर मिल राव रणधीर मिल राव पतिसाहि मिलौं न साहि कौं प्राय मिले भील सब प्राय मिले भिसतनि मीर मिल सेस जे सुर रढ हमीर रणथंभ ८८ रण डूंगर पतिसाहि १४१ रणधीर कहै साहि विलंब न कीजै २०६ रय मारुत को चल ८४ रनत भंवर गढ प्रथम ३ रणत भंवर गढ छाडि १९७ रनत भंवर गढ निरखि ३२१ रनत भंवर रिखि पदम ३२४ राव तबै मन सोचि ५३ राव सनमुख कर जोरि १२ राव सार कर गहै २६५ राव सूर दो वेर सहि ११० रिति पावस बिन नीर २८७ २०१ २१ १६८ ११५ 9109 १० ३१८ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रूम स्याम कसमेरि (ल) लख पैंतालीस सहस दस लख रूमो रणधीर लिखि फुरवान पतिसाहि लिखे राव फुरवांन (व) वरस च्यारि दस माहि वरस पांच गढ छारिण को वरस पांच पतिसाहि वांचि साहि फुरवांन बीसलदे वीस कोड़ वे दोऊं वीर अजानसार (स) सत छाडि ग्रह चले बहौरि संकर कहै हमीर सौं संकर विसन गनेस सनमुख राव हमीर सदा समंद पार गया सेख समयेक पतिसाहि सरन राखि सेख न तजों सवा पांच ( मन ) कनक निति हि स्याबास हुकम करिये सार हमीर गहि छत्र तोरै साहि चहूं दिसी जीति अब साहि निहारत हसम दिसि सात वीस लख पड़े सात वीस लख हसम सायर सात हमीर साहि किसमति लिख देत साहि सम मैं आय साहि वचन यम ऊचरै सीस बिन सूर लरै रक्त भीनै सीस वचन यह ऊचरै सुतर सहस लख सुन बकसी के वचन सुनि कंवरन ये वचन Jain Educationa International ( ७६ ) सुनि रानी ये वचन सुनि हमीर के वचन १०२ सुनि हजरत यह वचन १७६ सुनि हजरति के वचन ४८ सुनि संकर के वचन जब २३० सुन दूत के वचन साहि सुदू के बचन के वचन राव ६५ ११ १५२ १७३ ५६ ५ १६६ १७० १२० १८६ ३०० ४० २७ २३७ ७५ २५८ २६१ १३३ १६५ १८३ १०४, ११६ २११ २८३ २१६ ३०३ २५६ ३१३ ६६ १४० १७१ सुदू सुमरौं देवी सरसती सुरति रही जिय मांहि सूर सनमुख तब सीस नावे सूरन करै सनेह सूर सोच मन में करे सूर दस सहस फूल हथ खेल सेख दोऊं कर जोड़ि सोरठ गढ गिरनारि २७७ सुर नर कायर सूर सदा २४६, २७४, २६३ सुर नर मुनि संकर सहत ७ सूर सहस पड़ि भोमि सूर अमीर लरिपुहमि परियै (ह) हजरत अबै न कसे करौं हजरत के ( फुरवांन) वांचि हजरति ये फुरवान हजरति राव हमीर हजरति ले फुरवांन हजरति हम तुम अंस येक हठ तो राव हमीर को हठ हमीर छाडै नहीं हसम प्राठ लख सुतर हसम रतन गढ देस हसि अलावदी माहि हंसे अलावदी साहि जब हमीर कहै रणधीर सौं हीमति गहो हजरति कहै थोड़ी सौं बहुत हौदे चढ़या हमीर २४३ ४६ ३३ २२६ १२२ ८५ ६३ For Personal and Private Use Only २०२ १६ १२१ २५६ २५२ २६८ २३४ १४७ ३१ m १०० ૪૨ ११३ ६४ ६५ २८६ २२६ १६८ २६३ श्र २६६ २७१ ३०४ १२३ ३१६ १९१ २५१ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वचनिका गद्यानुक्रमणिका दूत राव सौं कही हमीर पातिसाह का दूत सौं कहता है महरमखां दूत की बातें सुणि० पातिसाह महरमखां सौं कहता है। या फुरवांन पातिसाहि पै उलटा हमीर फुरवान वांचि कहता है जब राव रणधीर हमीर सौं ( जब) पातिसाह कहता है महरम खां क बंदगी करि पातिसाहि कुच० फुरवांन राव हमीर के वांची कहै पातिसाहि उजीर सौं ११ ११ रवांन हमीर के दूत ले दिली चालै ५ महरम खां पतिसाह सौं २७ जब हमीर रनधीर सौं २५ २८ तब राव रणधीर हमीर सों कही पीरों के नाम २६ ३२ ३६ ४१ ४१ महिमासाहि राव हमीर सौं कहता है जब महरम खां उजीर० वचन तीन सुरजन राव Jain Educationa International ५ १० १० १० ४२ ४४ ४४ ४५ ४६ जब राव हमीर (नै) कही हमीर राव यम ऊचरै येती बात राव हमीर महिमा साहि ये फुरवांन पातिसाहि० राव हमीर सौं चतरंग कहता हैराव का हाथी पांच से ऊर जोधा जब पातिसाहि जमीवत खुरसान राव हमीर महिमासाहि के तांई समभावता है। अब अलादीन पतिसाहि राव हमीर जब राव हमीर पातिसाहि सौं जैन सिकंदर साहि जुध भोज भील राव हमीर सौं पातिसाहि सिकंदरि पासि श्राया जब पातिसाहि राव हमीर सौं जब सूरिवां राव हमीर सौं तब राव सूरिवां नै सीख दीनी तब राव सुरजन सौं गणेस देवता राव की प्रस्तुति करता राव हमीर कहता है पातिसाहि सेती For Personal and Private Use Only ४७ ४५ ४८ ૪૨ ५१ ५३ ५४ ५५ ५८ ५६ ६१ ६१ ६३ ६४ ६६ ६६ ६७ ६६ ७० Page #94 -------------------------------------------------------------------------- _