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प्रधान-सम्पादकीय
नयचन्द्रसूरि के "हम्मीर महाकाव्य" (प्रस्तुत ग्रन्थमाला ग्रन्थाङ्क ६५) जैसे प्रामाणिक ग्रन्थ के प्रकाशन के बाद इस "हमीर रासो" का सुसम्पादित संस्कर्श निकालने के पीछे हमारा यही उद्देश्य रहा है कि राव हमीर विषयक बाद का साहित्य किस प्रकार पीछे की सामग्री को लेकर नए-नए कवियों द्वारा लिखा जाता रहा । वस्तुतः ऐसी स्फुट रचनाएं स्फूर्तिवर्द्धक आल्हों की भांति लोगों के मनोरंजन के लिए गा-गाकर सुनाई जाती थीं। श्रोता इनके उतारचढ़ाव का मानन्द लेते थे। अनेक कवियों ने इस प्रकार के स्फुट 'रासो' लिखे हैं जिनकी अनेक प्रतियां आज भी अनेक भण्डारों में मिल जाती हैं । साहित्य की एक रोचक विधा के रूप में इन्हें स्वीकारा जाना चाहिए।
विद्वान् सम्पादक श्री अगरचन्दजी नाहटा ने अपनी प्रस्तावना में इस रचना से सम्बन्धित सभी आवश्यक जानकारी दे दी है। प्रस्तुत ग्रन्थ यद्यपि एक लोक साहित्य रचना है, किन्तु ऐतिहासिक पात्रों को लेकर लिखी जाने वाली ऐसी रचनाओं का भी वजन होता है।
आदि से अन्त तक प्रूफ-शोधन करने के लिए विभाग के कनिष्ठ तकनीकी सहायक श्री गिरधरवल्लभ दाधीच ने पूग परिश्रम किया है एतदर्थ वे धन्यवाद के पात्र हैं।
-पद्मधर पाठक
निदेशक राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान
जोधपुर (राज.)
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