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हमीररासो : 65
इत्ते लेख रणथंभ गढ, प्रदलि न मिटै हमीर । कहै साहि जुग जानिया, तू सूरवीर मै पीर ॥२६४।। दे हजरति स्याबासि, दिसटि दिली दिस फेरी। धनि धनि राव हमीर, धन्य - स जननी तेरी ।। गये सेख दोऊ भिसति कौं, महिमासाहि अरु मीर । अब जंग किस खातरि करौ, उलटि फिरि जाव हमीर' ।।२६।।
पहौमि पलटि फिरि होय, सूर जो पिछमि उगावै । कुतब उतर दिसि छंडि, दखिण उदौत करावै ।। अनलपंखि आकास तजि उतरि चुग धरति प्राव । हजरति राव हमीर कहै, तोऊ परै न पीछा पाव ॥३६६।।
दोहा
मीर अमीर हमीर के'', चलै सबै सिर नाय१२ । तो बिन ऐसी को कर, रनतभंवर के राव 3 ॥२६७॥
१ घ. तुम सूर वीर नर । २ ग अंगजी राव दिन दाई तीजो बखानू ।
केते नरपति चल गये, जाति काहू की न जानू ।। बचन तज्या न हठ तज्या, कर गह तजी न सार । हजरति कहे हमीर तुम, रहै अमर संसारि ।। गढ़ चौरासी जीति, दसू देस पाय लगाये । तुम से राव हमीर, और कोऊ मुझे न मिलिये ।। अंसी करि हमीर तुम, यो कोई पै नहीं होय ।
जस कीरति जुग में है, ना थिर रहै न कोय ।। दोहा : प्रेते बचन मुख ऊचरै, सो सब भये पखान ।
___ असत बचन कबहू न कहै धनि हमीर चौहान ॥ (प.व.पा. आगे छद से पुन चालू) ३ घ. साहि । ४ घ. फिरो हमीर । ५ ख. राव कहै छ, घ. जब राव हमीर पातिसाहि सौं बचन उचारे । खेत बिचि दोऊ खड़े (म पा)। ६ घ. जो होय । ७ क ऊगै । ८ घ. करि रहै, ख. यह पद्यांश नहीं है। ६ घ. प्रधणपंख । १० क. प्राव, ग.घ. माये । ११ घ. कहै । १२ ख. निवाय । १३ घ. यह पद्य नहीं है।
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