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________________ 64 : हमीररासो ० पड़े सूर अरु मीर, नीर ज्यौं रकत बहाये । जोगनि भैरौं बीर, गिरझ भख ले ले जाई ।। सवा पहर रथ राखि सुर', भये आपण कौतिक हार । पड़े खंधारि सवालख सूर, अयुत पड़ि च्यारि ॥२६१।। द्वे लख मीर अमीर, प्रथम गढ़ पहौमि मिलाये। लख रूमी रणधीर. छांरिण के खेत खिसाये ।। आरब मीर असी सहम, गये कंवर ले मारि । कहे साहि हमीर तुम, खाली करी बंधारि ॥२६२।। हसम आठ लख सुतर, खेत रणथंभ खिसाये । महरमखां के बचन, यादि हजरति तुम आये ।। सीस टूटि सहस गज, धर पड़ दो से सतरि अमीर । कहै साहि रखि सेख कौं, अचरजि किया हमीर ॥२६३॥ वचनिका जब पातिसाहि राव हमीर सौं कहता है । अब अपना गढ़ कोट कुटंब" जाय संभारो१२ । तब राव हमीर कहता है- गढ़ किसका, किसका कुटंब' । पासमाहि कहै छै१४ । छद जुग येक बरख ? १५, राव मुझि सनमुख तुम लड़िये । मुसलमान लख पाठ, अयुत १६ दस हिंदू पड़िये ।। १ ख. सूरजि को भये कोतगि निहार, ग. सु भई कौतिग रखणहार। २ घ ऊपरि अ.पा. । ३. घ वलख रणथंभ प्रथम । ४ ध. यह पद्य नहीं है। ५ ग घ. कौं । ६ ग घ. सिर । ७घ टूटि साहि संग जोधा पड़े। ८ ग. रिखि । ९ ग. सौं । १० ग. ये राव हमीर अब जग मति कगे प्र.पा.। ११ ग. कुटंब कौं। १२ ग. संम्हालो। १३ ग. किस की ह्या तिरिये अ.पा.। १४. केवल (ख) प्रति में । १५ खे.ग.घ. दोय १६ घे. इति हिंदू दस पड़िये । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003833
Book TitleHamir Raso
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1982
Total Pages94
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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