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________________ हमीररासो : 11 बचनिका या फुरवांन पातिसाहि पै उलटा भेज्या। फुरवांन बांचि हमीर पे पातिसाहि बहौत इतराज हवा । महरमखां उजीर पातिसाहिसौं अरजकरो दूसरो फुरवान और भेजो। केता गढ रणथंभ राव, जिस परि गरभाये । हम दसू दिस बसि करे, जीत करि पाय लगाये ।। साहि बचन यम ऊचरै, मैं ऊली औलिया पीर । महिमासाहि न रखियो, अजहूं समझि हमीर ।।५।। बचनिका हमीर फुरवांन बांचि११ कहता है१२... छंद बेर बेर फुरवांन कहा, हज रति फुरमावै । याहि पकरि जो देऊ, वहौरि सरने को पावै ।। पछिम सूरजि उगवै. उलटि गंग बहै नीर । कहियो दूत पतिसाहि सौं, हठ छाई न१३ हमीर ॥५१।। दियो पदमरिखि राज करूं, १४ जबलग सोई । जे पायो गढ संवत १५ निमति, मेट नहीं कोई ।। अनहोनी होनी नहीं, होतबि मिटै न कोय । रिजक मौति करता बिनि, साहि न करि है कोय१६ ।।५२।। मिलौं न साहि कौं प्राय, न जोरि कर सीस नवाऊ । जे प्रावै पतिसाहि, सार चौगान संभाऊ ।। अलादीन पतिसाहिकौं, लिखै राव फुरवांन ।। महिमासाहि अमीर को, लिखिन देऊ चितरांम ।।५३।। १ ख. खिदायो, घ. लिख दिया । २ ख. रूसाये । ३ ख. फेर अ.पा. । ४ घ. खिदाओ, ख. फेर भेजो। ५ ख. रूसाये । ६ घ. किये, ख. अर जीति । ७ घ. अलावदी। ८ ग. प्रौजू। ९ घ. राव अ. पा.। १० घ. पतिसाहि को अ. पा.। ११ घ. करि प्र. पा.। १२ ख. राव हमीर पातिसाहि सुबचन कहता है। १३ ख. नहीं । १४ घ नहीं है। १५ ग. समंत । १६ ख. दिन ही दे सके न कोय, ग. नहीं साहि कोई और। . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003833
Book TitleHamir Raso
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1982
Total Pages94
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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