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12 : हमीररासो ०
बचनिका
ये' फुरवांन हमीर के दूत ले दिली चालै५
छंद
दूत दोऊ कर जोड़ि, साहि कौं सीस नवावै । हठ छोड़े न हमीर, साहि क्यौं मुझे पठावै ।। महिमासाहि हमीर वै, तुम सौं कही सलाम । जो कुछ लिखिया साहि कौं, पढ़ि देखो फुरवांन ॥५४॥ बांचि साहि फुरवांन, बहौत यतराज कराई । महरमखां कर जोरि, साहि सौं अरज कराई ।। इत फेरि रणथंभ, साहि किन भेजे काई । दिली सुर पति साहि, बचन तीजे अचराई ॥५५॥
लिखि तीजो फुरवांन, कोपि१० पतिसाहि पठाये । तुमसे' किते हमीर. पकरि करि पाय लगाये ।। करो राज रणथंभ का, बहौरि हमीर हठ मति करौ । मिलौ प्राय गहि सेख कौं, होय नोकर पायन परौ ।।५६।।
अपना भवन हमीर, कौन पावक ले जारै । पतिसाहिन सौं तेग१२, भूलि भनमें मति धारै ॥ ये हमीर हठ मति करौ, गिर परवत वन जुग जरै । प्रलादीन पावक असहै, जो या कन कन परजरै१४ ।।५७।।
१ घ. ख. हमीर के । २ घ. नहीं है। ३ घ. दूत ले करि । ४ घ. प्र. पा. । ५ ख. पाये। ६ ख. मुझि क्यू। ७ घ. हमीर प्र. पा. । ८ ख. लिखी । ६ ख. ग. घ. पूरा पद्य नहीं है । बचनिका-जब पातिसाहि इतराज बहोत करि । तब महरमखां उजीर कह्यो-हिंदू तीसरा फुरवांन लिखि भेजो। ख. ग. दिली का पातिसाहि बचन तीसरा मारता है । घ. जब पातिसाहि बहोत ऐतराज करि तब महरमखां उजीर कही तीसरो फुरवांन हिंदू को भेजी.......। १० घ. करि अ. पा. । ११ ख. तुज । १२ घ. गह अ.पा.। १३ ख.ग. पद्यांश नहीं है। १४ घ. पद्यांश नहीं है।
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