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16 : हमीररासो
हमीर पातिसाहि का दूत सौं' कहता है
कहै हमीर सुनि दूत बचन, सति ग्रसत न भाखे । मोहि बिन अवर न कोय, सेख को सर राखे || गह तेग पतिसाहि सौं, जुड़ौं जंग छाडौं न र हठ । कहियो निसंकयौं जायके, रह्यौ सेख रिगथंभ गढ ||४५ ||
सुनि हमीर के बचन, दूत दिली दिसी धाया । करि सलाम साहि कौं, जोड़ि कर सीस नवाया || उत्तर दखिन पूरब पछिम, सबै सेख फिरी थाकियौ । कौल बचन हमीर करि वो रणथंभोर गढ़ राखियो || ४६ ||
महरमखां दूत की वातें सुरिण पातिसाहि सौं कहता है
समंद पार गया सेख, वार हजरति वो नाहीं । राव सेख क्यों रखै रहै हजरति की हद मांही ॥ इसे वचन पतिसाहि सौं, दूत न कहियौ बहौरि फिरि । नहीं तु सुधि वा सेख की, तू खबरदार नहीं बे खबरि ||४७||
पातिसाहि महरमखां सौं कहता है - फुरवान येक हमीर के तांई भेजो -
लिखि फुरवान पतिसाहि, उलटि ओलची पठाये ॥ हठ मति करौ हमीर, चोर मति रखो पराये ॥ मुलक माल चाहो जितै, कहत साहि सो लीजिये । फुरवांन वांचि हजरति कहै, वौ चोर हमारा दीजिये ॥ ४८ ॥ |
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हजरत के ( फुरवांन) बांचि करि रात्र रिसाये । महिमासाहि न देऊ, क्यौं न हजरति चढि प्रावै ॥ बांह बचन करि१° राखियो " करि कौल कबहू न फिरू ११ लावदी साहि सौं, सार बांधि सनमुख लरूं ॥४६॥
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१. ख. बबन अ. पा. । २. ख. नहीं । ५. घ. किम । ६ ख. म जाय । ७ ख घ. लिखि हजरात फुरवान । ९ ख कौल बचन करि ना फिरू /
३. ख. दूत कहियो । ४. ख. दिसी। महरमखां ऊजीर सौ, घ. बचन प्र. पा. कहर रुसाये । १० ख. दे । ११-११. घ.
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