SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हमीररासो : +3 रण डुगर पतिसाहि, तोप यक नई घड़ाई । भई तोप तैयार, साहि गढ को लगवाई ॥ महरमखां उजीर सौ, पातिसाहि फुरमाई । तोप राव की फोड़ि, तोप गढ़ फतै कराई ।।२०५।। तब गोलंदाज पातिसाहि सौं, करि सलाम विनति करी । हजरति का दरकार साहि............ सांई जो करी ॥२०६॥ करी तोप तयार, गढि को तोप दगाई । राव तोप के लगी, जो डि मुख कौं लगवाई।। जखम तोप तब भई, राव सौं जाय सुनाई । चलि हमीर तब प्राविया, तेखि तोप अचरजि भया । ... ... ... .... .... ॥२०७।। तोप रही साबूत, राव तब तोप दगाई । पूटि साहि की तो, राव सन में हरखाई ।। तब पतिसाहि उजोर सौं, कही बात समझाय । किसि बिधि मिलै हमीर अब, कौन जतन गढ़ आय ॥२०८।। दोहा महरमखां तब यौं कहो, हजरति राह बंधाय । गढ़ दिसि दरा बंधाई के, हाका सौं ल्यौ ल्यौ ताय ।।२०।। केते दिन के बोषि, पातिसाहि "ल करवाई । हुवा हमीर को फिकरि, (बचन) तब पदम कहाई ।। राव फिकरि मति करौ, करि हैं देव सहाय' ॥२१०।। १ ख.ग.घ.ङ. उपर्युक्त पद्य भाग छंद २१० से छंद २१२ तक नहीं है Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003833
Book TitleHamir Raso
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1982
Total Pages94
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy