________________
42: हमीररासो
सुनै दूत के वचन राव, जब सनमुख चाहै । तोहि दोख को नहीं, साहि को भेज्यौ श्रावै ॥ लख ' बचन साहि मुख ऊचरै, तजि टेक येक न चित धरू ं । रहै सर ररणथंभ के, पसू पंछी नहीं हाजरि करूं ॥ २०२ ॥
Jain Educationa International
बालरगसी रणसी रणधीर खानसी खेत खिपाये । कौन सयानपर साहि मुभैः कहै हमीर सुनि दूत, कहौ अब हम तुम फुरवांन की, कहा
फरवांन पठाये ॥ साहि सौं जाय ।
रही पतिसाहि ॥ २०३ ॥
दूत दरबि ले जाह जो, तेरे जिय भावे । जो भेज़ै पतिसाहि, वहरि कबहू मति प्रयै ।। लिखि हमीर इम भेजियो, समझि साहि चित लीजिये । बहोरि दूत के हथि गहै, फिरि फुरवांन न भेजिये ॥ २०४ ॥
वचनिका --
कुरवांन राव हमीर के वांची, साहि सोच करि ( महरम वां) सौं कह्योबहौत वेर फुरवांन साहि के राव नहीं मानता है
५
१ ख- अलख । २ घ. स्याहापं । ३ ख पतिसाहि । ४ ख घ साहि सों बहोत समझाय । ५ ख ग घ ङ बचनिका- फुरवांन राव के वांचि पतिसाहि महत्मखां सू कही। राव हमीर हरगिज समझता नहीं अब तजबीज राड़ि का कीजै । पातिसाहि रेग की डूंगरी तोप घड़ाई, तोप तैयार हुई । गढ़ कौं दागी । राव हमीर की तोप ऊपरी पातिसाहि की तोप दगी । तत्र पातिसाह महरमखां उजीर सौं कहता है जो राव हमीर की तोप फुटी तो हमारी तोप गढ़ को फर्त करें जदि गोलंदाज पातिसाहि कौं सलाम करि कहीबोलबाला पातिसाहि ना मैं करोंगा । जब पातिसाहि सौं करि सलाम अरु गोळो राव हमीर की तोप पर दाग्यो । तोष फूटी नहीं । नूकसान हुआ यह खबरि रावहमीर कौं हुई । तोप फूटी । जदि राव हमीर चाल, तोप पासी प्रायो । तब राव कही तोप के नुकसान हुआ, काम सौं न गई । जब बहौग्यों राव कही पातिसाहि की तोप कौं जखम करें जिस को मैं बडा करों । जब राव हमीर के गोलंदाज पातिसाहि की तोप फोड़ी, जब पातिसाहि महरमखां सौं कही - अब गढ़ किस हिकमत सौ श्रावे ? जब महरमखां कही - जो गढ़ को पूल बधाय द्वरा भराय गढ़ कौं राह कीजै । तब कितायक दिन पाछे पातिसाहि की पुल रसता हुई तब राव हमोर कौं फिकरि बहोत हुवा । अब गढ़ का मगज कछु रह्या नहीं जब पदमसागर राव कौं वसारति दिन्हीं - राव हमीर फिकरि मति करें ।
For Personal and Private Use Only
1
www.jainelibrary.org