________________
वीर हम्मीर सम्बन्धी लोक-भाषा राजस्थानी में रचित उल्लेखनीय काव्य व्यांस भाण्डउकृत 'हम्मीरायण' संवत् १५३८ की रचना है। ३२६ पद्यों के इस काव्य को भी सुसम्पादित रूप में हमने 'सादूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट' बीकानेर से सन् १९६० में प्रकाशित करवाया था। उसमें भी डा. दशरथ शर्मा ने १३४ पृष्ठों में ऐतिहासिक व महत्वपूर्ण भूमिका लिख दी थी, जो बहुत ही पठनीय है । मूल 'हम्मीरायण' के परिशिष्ट में हमने उस समय तक प्राप्त हम्मीर सम्बन्धी ४ रचनाएं प्रकाशित करवा दी थी। जैसे–परिशिष्ट १ में 'प्राकृत-पैंगलम् में हम्मीर सम्बन्धी पद्य' परिशिष्ट दो में 'कवित-रिणथंभोर रै रांग हमीर हठालै रा' परिशिष्ट ३ में मैथिल कवि पंडित श्री विद्यापति ठाकुर रचित 'पुरुष परीक्षा' के अन्तर्गत 'श्री दयावीर कथा' परिशिष्ट ४ में भाट खेम रचित 'राजा हम्मीरदे कवित्त।' प्रस्तुत हम्मीरायण के प्रारम्भिक 'दो शब्द' में हम्मीर सम्बन्धी अप्रकाशित रचनाओं का उल्लेख करते हुए महेश के 'हम्मीर रासो' आदि तीन रचनाओं का उल्लेख इस प्रकार किया गया था।
हम्मीर सम्बन्धी अप्रकाशित रचनाओं में कवि महेश के 'हम्मीर रासो' की दो त्रुटित प्रतियां हमारे संग्रह में है। उस ग्रन्थ की कई पूर्ण प्रतियां राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर आदि के संग्रह में है। उनकी प्रतिलिपि प्राप्त करने का भी प्रयत्न किया गया, पर उन प्रतियों में अत्यधिक पाठ-भेद होने से उसका स्वतन्त्र सम्पादन करना ही उचित समझा गया अतः इन प्रतियों को इसमें सम्मिलित नहीं किया गया।
'हम्मीरायरस' नामक एक और काव्य भी प्राप्त है जिसकी एक अशुद्ध-सी प्रति राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान में और उसके वृहद् रूपान्तर की प्रतिलिपि स्वर्गीय पुरोहित हरिनारायणजी के संग्रह में है।
_ 'हम्मीर देव वनिका'' नामक एक और महत्वपूर्ण रचना की प्रति श्री उदयशङ्करजी शास्त्री के संग्रह में है, उसका भी स्वतन्त्र रूप से वे सम्पादन कर रहे हैं इसलिए उसका उपयोग यहां नहीं किया जा सका है।
'हम्मीरायण' की विस्तृत भूमिका में डा. दशरथ शर्मा ने उस समय तक ज्ञात हम्मीर सम्बन्धी सभी रचनामों पर विचार किया था। संस्कृत काव्यों में अकबर के समकालीन कवि चन्द्रशेखर रचित 'सुर्जन चरित' में जो हम्मीर की गाथा आती है, उसका कथासार पृष्ठ ८८ व ८६ में दे दिया था। पृष्ठ ८५ में महेश कवि के 'हम्मीर रासो' के सम्बन्ध में उन्होंने लिखा था कि "महेश कृत 'हम्मीर रासो' की दो प्रतियां श्री अगरचन्दजी नाहटा के संग्रह में है और कुछ
१ इससे सम्बन्धित कुछ जानकारी डा. दशरथ शर्मा की भूमिका में दृष्टव्य है।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org