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________________ हमीररासो । 59 दिलो होय पतिसाहि, बहौरि रणथंभ नहीं आवं' । ये बावन परगने, राव गढ़ - बैठे खावै ॥ कहै साहि सत मानिये, हमरे बचन प्रमान । मुसलमान दिली तखत, ज्यौं रनतभंवर चौहान ।।२८२।। बचनिका - जब राव हमीर पातिसाहि सौं कहता है - अदलि किसही को किसहो सौं मिट नहीं । छंद साहि५ किसमति लिख देत, उवरि कौन पे लिखवाऊ । रनतभंवर" को राज, साहि को दियौ न पाऊ ।। हंसि हमीर यम ऊचरै, सून दिलीसुर साहि । हम तुम गढ़ रणथंभ का, संवत पहोता' प्राय ।।२८३।। जब समझ्या किन साहि, अव स्थानप कंह लावो । गढ़ परबत असमान धर, सदा न थिर पतिसाहि । पाख पांच दस धौंस बिचि, अदलि पहौंची बाई ।।२८४।। १ घ. पाऊ। २ ख. घ. पावो। ३ ख.ग. कहै छै । ४ घ. आवृत्ति - काल ऐक बेर खाय, फेर नहीं अंग जलावै । जब राव हमीर पतिसाहि सौं कहता है ॥ प्र.पा. । ५ घ. जब ली न चेत साहि अब क्यों स्यानप लाये । करम रेख नहीं मिटै, अब कर सारि संभाये ॥ हंसी हमीर इम उच्चर, सुन दिली पतसाहि । पांच पाख दस द्योस बिचि, अदली पह्रौंची आई ।। परिवर्तित पाठ । ६ ग. ऊभरि। ७ ग. जो यह लिखिया लेख बहौरि सोइन पाऊ पा.। ८ ग. पहोच्या। ९ ग. अबै स्यानप तुम लाये, गढ परवत असमान साहि सब चलते पाये । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003833
Book TitleHamir Raso
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1982
Total Pages94
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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