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________________ (vii) प्रस्तुत संस्करण में कहीं-कहीं जो पाठ त्रुटित छपा है । उनकी कई स्थलों की पूर्ति तो डॉ. गुप्त के सम्पादित संस्करण से हो जाती है, पर सर्वत्र नही होती और पाठ में भिन्नता काफी अधिक है । अतः कुछ उदाहरण हो यहां उपस्थित किये जा रहे हैं । प्रस्तुत संस्करण के पद्यांक १७ से १९ वाले पद्य डॉ० गुप्त के सम्पादित संस्करण में इस प्रकार छपे हैं - पहले साहित्र सुमरिये, सवका आदि भवानी अंबिका, गनपति अलादीन हमीर के, कहौं कछू कछू भवानी वर दीयो, कछू अपनी बुधि उनमान ॥ १६ ॥ कछू चंद के वचन सुनि, कछू भारथ के वाक | सिरजनहार । सुरसति सार ||१८|| गुन- गान । छू वीर रस समभिकै, सुनि हमीर की धाक ||२०|| प्रस्तुत संस्करण के २२ वें पद्य की प्रथम पंक्ति त्रुटित बतलायी गयी है । किन्तु गुप्त के संस्करण में इस पद्य का नम्बर २३ वां है और इसकी प्रथम दो पंक्तियां इस प्रकार हैं ताके अंस सू भये, बहुरि रिषि इ उपाय । सब सरीर दीये बाटि, षष्ट पैदासि कराये । प्रस्तुत संस्करण के पद्यांक २६ में जो एक पंक्ति का ही पाठ छपा है वह गुप्त के संस्करण में भी वैसा ही है । प्रस्तुत संस्करण में जो ११३ वां पद्यांक छपा है वह गुप्त के संस्करण में 'बात' के रूप में इस प्रकार छपा है “पातस्याहि कु राव हमीर ई तरह का लिषि उलटा जुवाव भेज्या । तव पातसाहि जंग का तजबीज किया ।" प्रस्तुत संस्करण में जो पद्यांक ११५ वां छपा है वह गुप्त के संस्करण में बात' के रूप में इस प्रकार छपा है "जव राव हमीर संक्र (संकर ) की प्रसतुति करी ।" प्रस्तुत संस्करण में १३२ वां पद्य छपा है वह गुप्त के संस्करण में गद्य रूप इस प्रकार है । " (वात) ईहांतो उजीर पातस्याहि मसलति करता है और गढ परि राव हमीर रणधीर के वात होती है ।" प्रस्तुत संस्करण का १४२ वां पद्य भी गुप्त के संस्करण में "बात" के रूप इस प्रकार छपा है— "ये जुवाव ऊजीर के सुने तव पातसाहि महरम षां सू फुरमाई । छाणि कौ गढ़ चंद रोज मैं पहली फत्ते कीजे । पीछ गढ़ कुरूं लागी जे । जव उजीर अरज करी हजरति का हुकम दरकार ।" इसी प्रकार प्रस्तुत संस्करण का १५४ वां पद्य भी गुप्त के संस्करण में 'बात' के रूप में गद्य में छपा है । बीच के पद्यांक १४३ से १५३ में भी काफी पाठ-भेद हैं । और गुप्त के संस्करण में उन सब का पद्यांक एक ही दिया गया है । इस कारण भी पद्य संख्या में काफी अन्तर पड़ा है । प्रस्तुत संस्करण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003833
Book TitleHamir Raso
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1982
Total Pages94
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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