________________
46 : हैपीररासो ०.
-
जो हमीर का हुकम, सूर जो. हजरति पावै । तुम्हें परि' जरेंगे लोह, उसै दिली बैगवै ।। हठ छाडि राव रणथंभ का, करो क्च चलिये दिली । रही टेक हमीर की, जो पतिसाही सब मिली ॥२१८।।
(जब) अलादीन हठ छाडि, उलटि दिली दिसि धाये । पिता बैर नहीं सरयो, साहि सुरजन पिछताये ।। रतन पांचले पेसकरा , मिल्यो साहि कौं जाय । 'हजरति साहि हमीर कौं, आणि लगाऊ पाथः ।।२१६।।
जितो राज रणधीर, यतो हजरति हूँ पाऊ । रणतभंवर गढी १ फतै, साहि पलक'२ में कराऊ । हजरति हंसि करि बोलिया, सुरजन प्राधो पाव । तुझे 3 दियो रणधीर को, करौं बड़ो उमराव ।।२२०।।
(तब सुरजन करि सलाम, राव को बीड़ो खायो । जौरा - भौंरा खास, आनि के चांम नवायो ।। फजर आनि हाजरि भयो, सुरजन करी सलाम । मिलौ राव पतिसाहि सौं, गढ बीत्यो सामान ॥२२१।।
बचनिकाः -
बचन तीन'४ सुरजन राव हमीर सौं कह्या । जब राव सुरजन सौं व हते हैं -
१ ख. परि जरि जंजीर. ग. जरि लंगर। २ ग. साहि। : ग. रही राव हमीर की। ४ ख. ज्यादाद । ५ ख. जब सुरजन कहै छ अ..। ६ ख. पीछे । ७ घ. पेस करि । ८ ग. हजरति जोरि राव कौं, तुम को सीस नवाय । ९ ९ इससे मागे (ग) संज्ञक प्रति में छंद सं. २२१ से छंद सं. २३२ तक का पद्य भाग नहीं है । १० ख. २ गधीर को। ११ ख. की। १२ ख. पल माही। १३ ख. तुन । १४ घ. तीन राव सौं सुरजन कहता है ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org