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________________ 24 : हमीररासो ० छंद सात वीस लख हसम, संगिलै हजरति प्रायै । तुम्हरे तेज प्रताप सेख ले सरण रहाये ॥ गौरी-पति को ध्यान धरि, ऊचरै बचन हमीर । राखौ अब रणथंभगढ़, बूडत है बिन नीर ॥११६।। रढ४ हमीर रणथंभ, ये संकर सरनाई । अबस हाई' कि न करौ, सात कोपी पतसाई ।। ह्र प्राधीन हमीर कहै, करिय मदति महेस । आयो साहि अलावदी, अरू दसौं देस के मलेछ ।।११७।। दिल दरेग [मति करो] सुरति साहिब परि धरियो । रनत भंवर करि जंग, साहिं सौं सनमुख भिरियो ।। कह संकर कर सीस धरि, हिम्मत न तजो हमीर । द्वादसि ऊपरि हूँ बरसि, निधड़क लड़ि रणधीर ।।११।। बरस च्यारि दस माहि१०, राव तोहि विधन न होई । होतिब मिटैन कोय, अंति किन देखो कोई ।। बारासै परि११ येक में (१२०१)साको गढ को होई । ये कादसी आसाढ सुनि १3 सनिवार पुख जोई ।।११।। दोहा संकर कहै हमीर सौं, गहो साहि सौं सारि राति दिवस लड़िबो करो, पड़े फौज परि भारि १४ ॥१२० - - १ ख गहाये । २ ख. गौरजापति । ३ ख. उचरत बचन । ४ ख. गढ रणथंभ हमीर दोऊ संकर की सरण माय । ५ ख. अब साहिको संकन करौ। ६ ख. दिलगीरी । ७ ख. पद्यांश नहीं है । ८ ख. कही ये संकर सीस धरि । ९-१० ख. पोश नहीं है । ११ स्त्र. बीस यक में । १२ ख. नहीं है । १३ सुदि । १४. ख पद्याश नहीं है । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003833
Book TitleHamir Raso
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1982
Total Pages94
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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