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________________ Jain Educationa International बचनिका महरमखां पतिसाहि सौं, भाख बचन उजीर । छंद ૧ करि कुरान गहि साहि, सीस साहिब कौं नाये । गढ़ दिसि दल चहू और फेरि' धरै अंबर छाये ।। भाख बचन प्रलावदी, चहूँ दिसि हसम निहारि । आई दलि हमीर की, चंद रोज दोय च्यारि ॥१३०॥ ० छंद दिई के हाथ दलि, हजरति क्यौं जाने । होनहार नहीं टरै कोटि स्थानपर उर आने || हजरति अपने इसट पै पावक जरै पतंग | ६ ये हमीर कबहू न तजै, सेख टेक रणथंभ ।। १३१।। यहां मरहम पतिसाहि, बौत मनसूब बनाये | गढ पे राव हमीर रहसि रणधीर कहाये हमीर रासो : 27 For Personal and Private Use Only ।।१३२॥ छंद साहि चहू दिसी जीति अबे, रणथंभ गढ आये । जब हमीर (र) सौं बचन रहसि ररणधीर कहाये || अपना धरम न छांडिये, यम उचरत रनधीर । निसि वासर पतिसाहि सौं, करिये जंग हमीर ।। १३३ ।। १ म फिरि । २. ग. घर | ३ ख. ग. घ. पद्य के स्थान पर बचनिका है । बचनिका - फिरि महरमखां उजीर पलिसाहि सौं कहता है । ४ ख. ग. घ. मिठे | ५ ख. स्थानप विचारो । ६ घ परि । ७ ख ग घ पद्य के स्थान पर बचनिका हैं। बचनिका-यां तो महरमखांनि पतिसाहि ( में ) बातें हुई । गढ परि रणधीर हमीर बातें करते है । ८ख. रणथंभ चलाये । ९ ख. हंसि, घ. पद्यांश नहीं है । www.jainelibrary.org
SR No.003833
Book TitleHamir Raso
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1982
Total Pages94
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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