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________________ 26 : हमीररासो - - दोहा भयो' हैफ जिव साहि के, मिटि गये मीर अमीर' । करै यादि पतिसाहि जब, गजनी गढ़ के पीर ।।१२५।। बगतर पाखर टोप, अंग प्रावध सब सज्जै ४ । किया हुकम पतिसाहि, तबल चहु दिसो कौं बज्जै ।। पाये कोप हमीर परि, जब गही तेग रणधीर । सहस बीस पाड़ी हसम, बादधखां के बीर ॥१२६।। दोहा भयो सोच मन साहिके, जीत्यो जंग (अ) हीर' । सातवीस लख हसम बिची, करि गया जुलम हमीर ॥१२७।। छंद कर महरमखां जोडि, साहि सौं१२ अरज कराई। देख्या राव हमीर, सेख गहि कदमौं आई१४ (?) ।। करि सलाम पतिसाहि सौं,१५उच्चरै बचन उजीर। गहि तेग पतिसाहि सौं, बैन' न तजै हमीर ।।१२।। दोहा जब साहि उजीर सौं, भाखै बचन रहेसि । गढ निरगह चहुं दिसी करो, ज्यों जीते जंग सुरेसि'८ ॥१२६ ।। १., ख. उपज्यो, घ. भयो फजर वहसे मन । २ बुलाये प्र. पा । ३. यहां से प्रति सं. (ग) का पाठ प्रारंभ होता है । ४ ख. छाजे । ५. घ. जदि । अ. पा. ६. ग. ते । ७. घ. जदि। ८. ख. हसम पाड़ि गजनीगढ़ के मीर। ६. घ. बादति ही के । १०. ख. ग. हमीर । ११ यह पद्यांश (ख) प्रति में नहीं है । १२ ग. साहि कौं बचन सुनाये। १३ यह पद्यांश (ख) प्रति में नहीं है । १४. ख. ग. लाये । १५. घ. कू। १६. ख घ. बचन । ७१. ख. घ. बच निका-महरम खां उजीर पतिसाई सौं प्ररज करता है (अ.पा.) १८ ग. बचनिका-- जब पतिसाहि महम खां सों बचन कहता है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003833
Book TitleHamir Raso
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1982
Total Pages94
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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