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40. हमीररासो
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दोहा तजत सुबुधि अरु कुबुधि करि. नर पीछे पछताय । उचरत बचन गनेस यम, जाहि जाहि पतिसाहि ॥१६३॥
छंद अजमति चाहो और, साहि मति विलंब करावो । संगि ले मीर अमीर, कोपि बहुरयौं खड़ि आवौ ।। गौरी - सुत पतिसाहि सौं, गही गनेस यम' टेक । हजरति पाल्हरणपुर दिसि, आवै तुरक न येक ।।१६४॥
दोहा साहि निहारत हसम दिसि, अब उर धरत न धीर । चलै राव रणथंभ दिसि, हरखत हंसत हमीर ॥१९॥
दोऊ दल सारन भये ना सूर कोई सनमुख पाये । महमा कौं न वियोग५, उभे लख हसम खिसाये। हिम्मत बहादर अलीखांन, दोऊ धरती पड़े अमीर । करत रकत का प्राचमन, गिरझ' जोगनी बीर ॥१६६।। मिटि गये मीर अमीर, हसम के हरबल खड़ते । हिम्मत बहादरप्रली, सार समसेर न डरते ।। महरमखां मुसकल परी, करिये कौन उपाय ।' ईरानी येक न रहै धुनै सीस पतिसाहि" ॥१६७।।
१. ग. यह । २. ख.ग.प. प्राय न सके मलेछ । ३. घ. अब कोऊ उर। ४. ग. दल एक सारन भये। ५. ग. निजोग। ६.ग खिसाई, ग मागे पाठ-परि परि खेत उमीर, मांस गिर झनी तहां खाई। ७. ग. गिरझनी। ८. घ. मरि । १ घ. संभकरि सार न डारते । १० ख. लड़ते । ११. ख ग.घ. मागे वचनिका है-- महरम खां पतिसाहि कौं सलाम कर कहता है ।
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