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हमीररासो : 39
जुरा मरन भय काल, साहि संगि चलि' पाये । हठ करि करि नर गये,' कोऊ थिर न रहाये ।। मनि नारद नाचै जहां, गावत बैन बजाय । तजि अभिमान अलावदी, लगौ सुरन के पाय ॥१८८।। नज्यो साहि अभिमान, ग्यान गुन अंतर लाये । सब देबन कौं५ साहि. जोरि कर सीस नवाये ।। अजमति देख प्रलावदी. रहै साहि सिर नाय । अब न तुम्हारै भवन 'दिसि, कबहू न चितवौं प्राय ॥१८६।। देव दोख तजि साहि करो, कोऊ दिन पतिसाही। हिमति बहादर अली उभै, लख हसम खिसाई ॥ सूर तैतीसन साहि कौ, अजमति दई सिखाई। कहै हमीर बहौरयौं अब, हम तुम जंग पतिसाहि ।।१६०॥
व्हे. थोड़ी सौं बहुत, मुलक पावक परजारै । विना दोख पतिसाहि, कौन किस ही कौ मारै ।। तन विनसै कीरत रहै, यह को जानत साहि । आई अदलिअलावदी, सो'क्योंज मिटै पतिसाहि ।।१६१।। करि देवन सौं दोख, साहि कौने सुख पाये । जालंधर दसकंध वैसे, नर गरद ४ मिलाये । कहै हमीर पतिसाहि सौं, सुनि असुरन के ईस । हजरति क्यों१५ विसारिये, (अब)हम उर तुम सीस ।।१६२।।
१ ख साहि अस चलि प्राई, ग. संग दोऊ। २. ग. गये किते । ३ ग. वांचं तहां । ४. ग. उर। ५. घ कौं हाथ जोडि, ख. कर जोरि कर, ग. जोरि साहि कर । ६. घ. भौंन । ७. ख. चितऊ । ८. ख. अलीखांन । ९. ग. दिखाय, ख घ. बताई। १०. ख. कह। ११. घ. कोई। १२. ग.घ. अवधि । १३. ख. जो कोई मेटत पतिसाहि, म. न जाहि मेटे, घ. जाकू मेटै कौन पतिसाहि । १४. ख गिरद में । १५. ग. क्यों तुम विसरिये । १६ ख.म.घ. हम रिखि उर तुम ।
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