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38 : हमीर रासो
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यतै मीर रण पड़े, साहि खट मास संभारे । जबै दूत यक आय, साहि सौं बचन उचारे ॥ जित देव हिंदवान के धर' तजी धरी न धीर । अब उनकी जारति करै, निस दिन राव हमीर ॥१८॥ सात बीस लख पड़े, मीर' धर जल न समावै। सलिता नीर निवारण, सूखत कोऊ पंथ न पावै ।। ४सलिता नीर निवारण, चले रकत डाबर भरै । अलादीन पतिसाहि सौं. खागि बांधि चौरै भिरै५ ।।१८३।।
दोहा
तिथि नवमी प्रासोज सुदि, कर गहे तेग रिसाय । खड़िये साहि अलावदी. सूर भवन कौं जाय ॥१८४।।
गौरी - सुत सौं राव, जोरि कर बचन कहावै । यह अलावदी साहि, आज अजमति तुम पावै ॥ जोगनि भैरू वीर सजि, चक्र खपर लिये हाथि। पारै' मीर पतिसाहि के, पाल्हणपुर उभै लाख११ ॥१८५।। संकर विसन गनेस, सकति की कला सवाई । सूरजि तेज प्रताप, किरन करि हसम जराई ॥ कौपै सुर मब साहि पै, डेरौं घंट संख बजाई । मार - मार भैरू करै, साहि खुदाई खुदाई ॥१८७।। १२जब नारद पतिसाहि सौं. कहै बात समझाय । मगरूरी किसहीन की, राखत नाहीं खुदाय ॥१८७।।
१ ग. धरत जुध धरोयन। २ ख.ग.घ. नीर जल धरन समावै । ३ ग घ. सुधि न । ४-५ पद्यांश नहीं है। ६ ख. ग. घ. परि सार । ७ ग. सुनावै । ८ घ पाये। ख.ग.घ. चाहै। १०. पाई। ११ ग• दो लाख । १२ ख. ग. घ. ङ. पद्य के स्थान पर बचनिका है। बचनिका-जब नारद बचन पतिसाहि सौं कहता है (कहै छ.घ.) पातिसाहि खुदाय मगरूरी किसी ही की देख सकता नहीं । अव देवतान की प्रस्तूत बदगी करो।
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