________________
हमीररासो
०-
-
रनतभंवर रिखि पदम, उगर तप तेज कराई । यंद्रासन डग-मगे, सुरपति' संक्या खाई । यंद्र सहेत सब देवता, दे सराप कहि२ येह । बरस सहसलौं पदम रिखि, रहो श्राप की देह ।। २१ ।।
तास अंस सौं भयै बहोरि, रिखि इते उपाये ।। सीस साहि पाय उखसी, उरथे भये हमीर । भये सूर दोऊ भुजनतें महिमा साहि'रु मीर ।। २२ ।।
दोहा
ग्यारा सै चालीस ११४० मक्र, द्वादसी सनिवार । तजि विसहर की देह, पदम रिखि पहौंचे सुरपुर ॥ २३ ॥
यते भये ता अंस सौं, महीमा साहि'रु मीर । हजरति साहि अलावदी, द्वै उरवसी हमीर ।। २४ ।।
कातिग पिछले पाखि,५ उत्तमि द्वादसि सुकल पखि । दिली जनम भयो साहि, राव गढ रनतभंवर पर ।। २५ ।।
भूय समात न भवन कहू, बंदीजन की भीर । प्रगट भयो चौहान कुल, जनमत राव हमीर ॥२६ ।।
हद
समैं येक पतिसाहि, सिकार खेलन बन जाई । जिती साहि की हसम, सकल बन में भरमाई ।। हुरम साहिके संगि सु, तो वन गई भुलाई । लिखिया लेख नसीबका, मिलेज महिमासाहि ।। २७ ।।
१ ख. सुरनपति । २ ख. कहियो तिसी । ३ ख. नहीं । ४ ख. में : ५ ख. पाखि की। ६ ब. रनथंभौर । ७ स. नहीं। ८ क. लुभाई।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org