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________________ ( ) 'हम्मीर प्रबन्ध' नामक रवना का सम्पादन मेरे विद्वान् मित्र डा. भोगीलालजी सांडेसरा ने करके महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, बड़ौदा संचालित 'प्राचीन गुर्जर ग्रन्थमाला' ग्रन्थांक ११ के रूप में सन् ७३ में प्रकाशित करवा दिया। इस काव्य की प्रथम जानकारी मैंने बड़ौदा के प्राच्य विद्या मन्दिर के हस्तलिखित प्रति की सूची से प्राप्त की थी। 'स्वाध्याय' पत्रिका में सांडेसराजी ने इस सम्न्ध में अपना लेख प्रकाशित करवाया। उसकी चर्चा सप्त सिन्धु' में प्रकाशित कर दी गई थी। अमृतकलश कृत 'हम्मीर प्रबन्ध' ६८१ पद्यों का एक उल्लेखनीय काव्य है, जिसकी रचना संवत् १५७५ के चैत्र बहुल पक्ष की अष्टमी गुरुवार को की गई है । रचयिता ने इसका नाम 'पवाडु' भी दिया है । अमृतकलश अोस (उपकेश) गच्छ के साधु मतिकलश के शिष्य श्री कलश के शिष्य थे। प्रोष गच्छ गिरा वितपन्ना, श्री 'मतिकलस सुसीस' रतन्ना; सिरीकलस गिरुपा गुरुराय, ते सहि गुरुना प्रणमी पाय ; राय हमीर तणु प्रबंध, महिमा साह मीर संबंध । काव्य के १२३ वें पद्य में कवि ने अपना नाम दिया है 'अमृतकलस मुनिवर भरणइं, हिव सुगयो सहु कोइ ; काव्य के अंत में रचनाकाल का उल्लेख करते हुए लिखा हैसंवत पनर-पंचोत्तरइ. चैत्र बहल पाठमि दिनि सरई; रिति वसंत अनइ गुरुवार, रच्यु 'प्रवाडु एह उदार; ' बड़ौदा में तो इसकी प्रतिलिपि है। मूल प्रति संवत् १५६५ की लिखी हई थी, ऐसा इस प्रतिलिपी में स्पष्ट लिखा हुआ है। यद्यपि वह प्राचीन प्रति तथा अन्य कोई प्रति इस काव्य की कहीं नहीं मिली । प्राप्त प्रतिलिपि से ही सम्पादित करना पड़ा है। इस प्रबन्ध से पहले के रचित 'कान्हडदे प्रबन्ध' की शाब्दिक छाया हम्मीर प्रबन्ध' में होने का उल्लेख करते हुए सांडेसराजी ने दोनों काव्यों के कुछ पद्य व पंक्तियां उद्धत की हैं। प्रस्तावना में सम्पादक श्री सांडे सराजी ने हम्मीर सम्बन्धी अन्य रचनाओं की भी जानकारी दे दी है, जिसमें कुछ नयी सचनाएं भी हैं। इसी तरह कवि मूलनदास रचित 'हम्मीर प्रबन्ध' नामक एक रचना की प्रति श्री फार्बस गुजराती सभा, बम्बई के संग्रह में हैं । सन् १९२३ में प्रकाशित उक्त सभा के हस्तलिखित ग्रन्थों की सूची के प्रथम भाग के पृष्ठ १०७ से १०८ में इसका विवरण प्रकाशित हुया है। . इनके अतिरिक्त डा. 'माताप्रसाद गुप्त ने बगाल एशियाटिक सोसायटी, कलकत्ता के संग्रह में कवि मंछकृत 'हम्मीर । कवित्त' नामक एक रचना होने का उल्लेख किया है। यह रचना पुरानी राजस्थानी में २१ छप्पय छंदों में है केवल ३ दोहे इसमें एक स्थान पर और आते हैं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003833
Book TitleHamir Raso
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1982
Total Pages94
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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