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________________ 16 : हमीररासो छंद खट सहस द्वार ररणथंभ, सुखी सब, दुखी' न कोई । राव कर लेत न कोई ॥ बही कर वहां साहिर, ताल पांच रिरणथंभगढ़ में दोय भंडार सूभर भरे i. हीं नीर को छेउ । और गनेसगढ़ देव ||७३ || फिर पूछी पतिसाहि, रात्र के क्या खैरायति । दूत वचन सूनि यौं कह्यौ, सुनु राव की विसारति ६ ।।७४ || । सवा पांच ( मन ) कनक निति, गऊ द्वादस निति दीजै इति राव के खैरि साहि, दिन ऊगत कीजे 11 पारसि की पैदास निति, माल भडारन संचरं हजरति राव हमीर की, और कौन सरभरि करे ॥७५॥ । पंछी सब आवै । मन द्वादस चुग पड़ें १०, जहां " अंध अपंगरू विरध, राव के भोजन पावै ॥ कहां लौं कहौं हमीर गुन, कहत न आवै मोर १२ । दाता सूर हमीर सम3, निजरि न आवै १४ और ||७६ || १५ I दोय लख बरकंदाज रहै, चौकी निति गढ़ की सतरि तोप ररथंमि ६, गरद असमांन दमंकी' 11 सरण सूत सोर दस लाख मरण, दो सम धात वखानियै । करि सलाम कहि दूत" ये, यामै असत न जानिये ॥७७॥ १८ > पतिभरता ते धरम इति श्रासा निति साधत । है नारि कर सारि, पुरखि संग खेत २० न छाडत ॥ श्रासा रांनी येक सुत, देवनि राज कुमारि । जाहि २१ २१ निरखि रवि रथ थकै करत भंवर गुंजार २२ ॥७८॥ १ ग. दुखिया । २ ग. वहां सु साहि, ख. अकर सुसाहि वास है । ३ ग छेव । ४. द्वै । ५ ख श्ररु । ६ ख. म. घ. प्रति में पूरा पद्य नहीं है। इसके स्थान पर बचनिका है । बचनिका - बहोरि पातिसाहि कहता है- राव हमीर के खैर खैरायति क्या होती । ७ ख दीजिये ८ ग. खैराती । ९. ग. दीजै । १० घ. परं । ११ . नहीं है । १२ ग. छोर, ख. घ. छेह । १३ घ. सो । १४ ख. घ. कोई अपा. १५ ख. घ. रहै निति चौकी गढ की । १६ घ. गडि न. पा. । १७ ख ग घ धरती । १८ घ. कहै दूत पतिसाहि सौं, ग. साहि सौं प्र.पा. । १६ म यतै । २० ग जंग | २१. ताहि । २२ श्रागे पृष्ठ १७वें पर * चिह्नित टिप्पणी देखें । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003833
Book TitleHamir Raso
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1982
Total Pages94
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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