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44 : हमीररासो
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सायर सात हमीर, रैनि बिचि रणथंभ लाऊ । पुल बांधी पतिसाहि, याहि हूं फजर बहाऊं ॥ सात समंदर नौ से नदी, इति राव' होहि सीर । पुल पैला पतिसाहि कौ, फिकरि न करो हमीर ।।। १११ ।
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बही तबै पुल पतिसाहि की, अचरिज हुआ हमीर ॥। ११२ ।।
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कहै पतिसाहि उजीर सौं श्रव गढ़ का वया इलाज ? जब महरमखां कहता है - पातिसाहि सलामति, अब गढ़ का इलाज कोई नहीं । गढ़ परि रावहमीर की पातरि चदकला निरति करती है । जब मांन प्रावै तब पातिसाहि कौं ऐड़ी बताती है । रति पातिसाहि का मुलाहिजा नहीं करती है । जब पातिसाहि निजरबाज नै बूझी। तहकीकात करके कह्यौ - जब पातिसाहि इतराज होय करि को इस औौरति के पांव में तीर की देवे जिसकों मैं बड़ा करौं । जब मीर गाबरू पातिसाहि कौं सलाम करि कहता है- श्रौरति के लोहो बहावो मुनासिब नाहीं । जब पातिसाहि कही - उजन सौं लोहा करो। जान वचै तमासा रहै | पातिसाहि का हुकम सौंमीर गाबरू तीर चलायो । जब तीर औरत के लगि, तीर राव हमीर की सभा में परया । जब राव हमीर के सोच हूवा, अब तक गढ़ में तीर कब हू प्राया नहीं, ये औलिया कोई अब आये ।
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छन्द
अचरजि हुवो हमीर, तीर जब गढ़ परि आयौ । राव चहूँ दिसि चाहि, सोच करि सेख बुलायो ॥ मुरझाय त्रिया यह घर पड़ी 3, भयो राव चितभंग । कहै हमीर असै उली, कितै साहि के संग ।।११३ ॥
बचनिका -
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महिमासाहि राव हमीर सौं कहता है- रावजी यस वात का दरेग मत करो। वो पातिसाहि की हसम में येक ही है, हमसों भाई छोटा है ।
१ ख इति रहै मुझि मांहि । २ ख. तोड़ीं । ३ ख. मुरझाय राव धरनी पड़यो । ४ ग. इस । ५ ख. दिलगीर, ग. दरोग ।
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