________________
48
हमीररासो
--
-
बचनिका
हमीर राव यम ऊचर जीव जाय के जस रहै।
दोहा
अलान पतिसाहि सौं, गही सार कर टेक' । दुख मैं' बिरले मित्र हैं, सुख में मित्र अनेक ॥२२५।। हठ तो राव हमीर को, अरु रावन की टेक । सत राजा हरिचंद को, अरजन बांन अनेक ॥२२६।। ‘गही टेक छाडै २ नहीं, जीभ चौंच जरि जाय। मीठो कहा अंगार को, ताहि चकोरि चुगि खाय ॥२२७।।
बचनिकायेती बात राव हमीर महिमांसाहि सौं कही । महिमांसाहि अापनी हवेली कौं गया । जब रैनि का वखत हुवा बहोरचौं सुरजन पातिसाहि पै गयो।
छंद
'जब' सुरजन कर जोरि, साहि कौं सीस नवायो । द्वादस को सामान, राखि करि राव भुलायो ।। चंदकला देवल कुवरि, पारसि महिमा मीर । मांगत साहि अलावदी, ये ले मिलौ हमीर ॥२२॥ सुनि हजरति५ के बचन, राव जिय रिस कराई । कहां अलावदी साहि. कैत सातौं पतिसाहि ॥ चंदकला देवल कुवरि पारसि महिमा मीर । हजरति ये कबहौं न मिल, जे साबूत हमीर ॥२२६।।
१ क. तेग । २ घ. छोडौं नहीं। ३ ख जात । ४ ख. पद्यांश नहीं है, घ. खात। ५ घ. दूत। ६ ख राव तब कहर रिसाये । ७ घ. केतीसाहि तेरी ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org