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हमीररापो 57
ये सूनि बचन हमीर, मदति महिमा की धाये । अलादीन पतिसाहि, सेख२ वातें विलमाये 3 ॥ कहै हमीर यक वचन परि, मैं ही साहि सौं तेग। लोभ न करिये जीव का तो रहै साहि सौं टेक ॥२७३।।
सुर-नर कायर-सूर सदा, कोऊ थिर न रहावै । सूर अपछरा वरै सीस, दै स्याम निभावै५ ।। सार बहत कायर संके, सूरां सार सुहाय । यक है बचन पतिसाहि सौं, सो अब सेख निभाय ।।२७४।।
तब मीर गबरू कहै, सार गहो महिमा भाई। हुकम धनी का येहु. अदली पिर ऊपरि पाई ॥ [मो दिसि साहि अलावदी, तुम दिसि राव हमीर । अपने अपने निमक की, ना तजिये तासीर] ॥२७५।।
दोऊ वीर सफ्रजंग जुरै, सार मिलि सनमुख बाहै । वनि धनि कहै हमीर, साहि मुख अाप सराहै ।। चलते महिमा बोलिया, सुनौ अलावदी साहि । हम तो पहुचे भिसति में, दिली उलटि तुम जाहि ।२७६।।
सुरति रही जिय मांहि, दिसटि रावतन फेरी । धनि धनि राव हमीर, रही कलि कीरत तेरी ।। ज्यौं १ प्राये ज्यौं १ जाहिंगे, कौऊ अमर नहीं कलि मांहि । धनि धनि राव हमीर नर' ३, तुम वोड़ि निभाही बांहि ।।२७७१३
१ घ. माये । २ ख. सेख तुम । ३ ग. बिरमाये । ४ घ. वचन इम फिरि । ५ ग. निबाहै। ६ ख. बाहत । ७ ग. सिहाय । ८ ब. कोष्ठक बंद पद्यांश नहीं है। ६ ग सुनि। १० ग. तो 4 चलि पहुंचे। ११ म. जो। १२ ग. सो । १३ ख. हमीर थां बचन निभाये ।
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