Book Title: Hamir Raso
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 76
________________ - हमीररासो : 63 गया सनीपी' भोज, प्रबै कोऊ दिल की जाने । अमर रहै कलि भील, राव मुखि संपति वखाने ॥ ह दिलगीर हमीर कहै', करता कर यो विजोग । अपछरि वरि सुर-पुर वसै, भील सहंस द्वे भोज ।।२६६।। जब जैन सिकंदर साहि, राव परि सनमुख धायै । तजि कबान गहि तेग, सीस सूरजिन' को नायै ।। असे दामनि प्ररस थे, चमकि चहु दिसि जाय । असे तेग हमीर की, सिर बही सिकंदर साहि ॥२६७।। बचनिका पतिसाहि सिकंदरि पासि प्राया। छद धुनि सीस तब साहि. कर गहि मीर१२ उठाये । दई कौन बुद्धि दई, जिस दिन रणथंभ प्रायै ।। पड़े खंधारि सवा लख, गज १७ सतरि सिकंदर वीर । किया न अब १४ कोऊ कर, ये सफजग हमीर १२६८।। गज सतरि सवा लख तुरी, सिकंदर १५ मीर खिसाये। कर हमीर गहि तेग, साहि दल उलटि चलाये ।। सासीम हसन मुरादि महोवति, मदफर मिरजा नर। असकर असी निजामुदीन, ये दस पडं अमीर ।।२६०।। १ क. समोपी। २ ग. को। ३ ग. सिप.ति । ४ ग. हो। ५ घ. प्राधीन । ६ ग. कही। ७ ग घ. द्वै सहंस भील सौं भोज । ८ ख.ग.घ. सूरजि कौं । ९ घ. तै परि । १० ग. स्यकदर साहि खेत पड़या- पूर्व अधिक पाठ। ११ घ. पति . साहि। १२ ग.घ गहि स्यकंदर । १२ ख. और संखोधर मीर। १४ घ. हर । १५ ख. येता मीर खेत खिसाये। १६ ग. सासीब । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org


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