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पल' में दूं बकसाहि, बिजे मंदरि गढ़ लिन्हा । क्या रणथंभ हमीर, सेर हजरति तुम किन्हा || यति हसम खंधार की, और सिकंदर 3 मीर । के सदकै पतिसाहि के के गहि लेहु हमोर ॥ २८६॥
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जैन सिकंदरसाहि जुध राव [ सौं] करने कौं प्राया । जब भोज भोल राव हमीर सौं बात करता है । ये राव हमीर जैन- सिकंदर पै। बीड़ा मुझे " दीजै । जब राव हमीर भोज सौं बातें करता है "
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छद
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रनतभ वर गढ़ प्रथम, भील सर राखिय१३ जैत राजि, यहि सी सहंस दल हसम बिचि १४, तुम कहै हमीर संग रतन के, जाहु
हमीर रासो : 61
दोयन सिर दिन्हा 1
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विधि हम किन्हा || सरभरि नहीं और १५ । भोज चितौड़ ||२०||
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भोज भील राव हमीर सौं कहता है ग्रहो १७ राव हमीर ? अंसो कबहू नहीं होई । इस गढ़ में सीर हमारा तुम्हारा दोयन का है ।
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१ ख. पल में पकड़ें सभी, ग. पहले में बूंब साहि बिजै । २ ख लिया । ३ ख संखोधर, ग. स्यकदर । ४ घ. कसी टेक पतिसाहि । ५ ख. सौं । ६ घ. लाऊ । ७ ग.
जब
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११ ख. यह गद्यांश राव सौं बात करि, हुकम
८ख. ग. कहै छै । ६ ख परि । १० ग. मुजि कौं तथा छंद का प्रथम पद नहीं है; घ. भोज भील सलाम करि, करो तो जैन सिकंदर सौं लोहा करों; राव भोज सौं कही । १२ ग. राखि लिये । १३ ग. अँसी । १४ घ. नहीं है । १५ ग. घ. कोय । १६ ख. इसके श्रागे- इस गढ में सीर हमारा तुम्हारा दोयन का है । १७ ग. ये हमीर ।
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