Book Title: Hamir Raso
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 73
________________ 60: हमीररासो ० बेर बेर पतिसाहि क्यों, मुख बचन उचारो । होत बि मिटै न साहि, कोटि स्यानप उर धारो ।। अमर नहीं कलि कोय, अमर की रति जो करिये । हंसि हंसि कहै हमोर, साहि सनमुख चित धरिये ।। गये दुरजोजन दसकंध से,जुरासंध से अति बली । चलिये साहि सुर-लोक कौं, गढ़ किसका किसकी दिली ।।२८५॥ हजरति हम तुम अंस येक, प्रादि रिखि पदम उपाये। हम हिंदू तुम मुसलमान, होय [करि] साहि' कहाये ।। देव दोख उर धारिके, रिखि सौं भये मलेछ । तजौ दिली होय देवता, चलौ सुरन के लोक ।।२८६।। रगतभवंर गढ़ छाडि , साहि सन मुख हाये । [जो] १० हजरति सौं कही, सोई' हम बचन निभाये ।। संगी१२ हमारे संग कै, सुरपुर पहौंचे १४ जाई । हम तुम रहै अलावदी, सार१५ गहो प्रब१६ साहि१७ ॥२८७।। कह हजरति१८ सौं बचन, राव कर सार संबाहै२० । जितै सूर संग हुतै, साहि दल२१ सनमुख धाये ॥ इत हमीर ऊत साहि के २२, जुड दोऊ दल प्राय । जब करि सलाम साहि कौं२३, जैन २४ सिकंदर साहि ।।२८८।। १ घ. मिटत न पलक इक। २ घ. करि हारो। ३ घ. कहां हमीर रणमंभ का कहां दिली पतिसाहि । ___कहा विसरि करि साह कू. मेरे न सेख रहाय ।। राव हमीर पातिसाहि सौं कहै- साहि किसी न लिख देत, उमर किस पैं लिखवावै । प्रागे छंद का पाठ है। ४ घ. हंसि हमीर इम ऊचरै। ५ घ तुम अक ही । ६ घ. पतिसहि । ७ ग. यह। ८५. छारिण। ९ ग साहि हम, घ. सन मुख हम । १० क. सो। ११ ग. बचन सोई। १२ घ. सूर । १३ ग. सूर । १४ ख. पहौते। १५ ग. साहि। १६ घ. करि । १७ ख.ग. सारि। १८ घ. हमीर यह । १९ घ. जदि । २० ख. समाही । २१ घ. ये। २२ ग. दोऊ कर सार समाहै प.पा.। २३ ग घ. पतिसाहि कौं। २४ ग. जिन स्यकंधर, ख. जैन सखोक्षर, घ. जदि जांणि सिकंदर । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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