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56 : हमीररासो०
सूर न करै सनेह, जबै कर सार संभाहै । बिछुरन मिलन संजोग, आदि जैसै चलि पावै ॥ ज्यौं जामन ज्यौं मरन जुग, ना कीजै चित भंग । रहैं सूर के लोक में, हम तुम हजरति संग ॥२६८।।
तजिये स्वारथ लोभ मोह. काह (सौं) नहीं करियै । देह धरै परवान स्वामि, जो कारजि सरियै ।। को उन सौं ले पाइयो को यत सौं ले जाय । रहै सेख कीरति अमर, तन माटी मिलि जाय ॥२६॥
ये सुनि हमीर के बचन, साहि परि सनमुख वाये । जब मीर गाबरू वीर, पानि कर सीस नवांये ।। मो दिसि साहि अलावदी. तुम दिसि राव हनीर । अपने अपने निमक की, ना तजिये तासीर५ ॥२७०।।
हंसि अलावदी साहि, सेख सौं बचन वहाये । दिलि छाडि करि बहौरि, सीस मुझि को न क्वाये ।। पतिसाहि बचन यम ऊचर, मिलो भुभैः तजि रोस । हुरम दई हजरति कहै अरु गोरखपुर देस ॥२७१॥
गही' सेख कर सार, साहि सन" हंसि बुसकांनौ । अलादीन तुम यादि, बचन हमरे सुधि प्रानो ॥ जो जननी फिरि जनम दै, बहौरि धरों यह देह । संग न तजौं हमीर को, जो पतिसाही देहि ।।२७२।।
१ ग. प्राय । २ ख. कीजिये : ३ ख. पद्यांश नहीं है। ४ ख. सुनत बचन हमीर के । ५ ख. बचनिका-हसि अलावदी साहि सेख कौं बचन कहता है प्र.पा. । ६ क. गहै । ७ क. तन । ८ घ. मेरी। ९ घ. आवे ।
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