Book Title: Hamir Raso
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 63
________________ 50 : हमीररासो - कहां जगदेव पंवार, सीस कर' प्राप समप्यौ । कहां भोज बिकरम राव, जिन्ही पर दुख कटयौ ।। करन कनक विप्रन कौं, सवा भार नित प्रति दिये। आसा कहै हमीर सौं, कहो राव वै कित गये ।।२३५॥ थिर कोई न रहै राव, अब थिर रहै न कोई । गये सुर नर मुनि मंडलीक, गये चकवं चलि केई ।। धन जोबन नर की दसा, सदा न येक विहाय । पाख पाख ससि की कला, घटत बढ़त घटि जाय ।।२३६।। दोहा सरन राखि सेख न तजो, तजो सीस गढ़ देश । हठ न तजौ पतिसाहि सौं, कर५ गही तजो मन तेग ।।२३७।। इती प्रासा दई प्रासिका, जेती भई सहाय । करो जग पतिसाहि सौं, सनमुख सार सम्हाय ॥२३८।। जामन - मरण संजोग, कौन" जो इन्है मिटावै । कितै नृपतिः चलि गये, अमर कौऊ कलि' न रहावै ।। थिर रहत न कोऊ सदा, नर तरु१० गिरवर ग्राम । का चौ११राज रिगथभ गढ़, हम अपने तप१२ परवान ।।२३६।। कहां जैत कहां सर, कहां सोमेसुर राना। कहां गये प्रथीराज साहि ३, गहि गहि जिन्ही पाना ।। होतब 'मटत न पलक यक, अन होत बि नहीं होय । प्रासा कहै हमीर सौं, अब हम तुम भयो बिछोह ।।२४०।। १ ख सीस कंकाळी कौं दीयो, घ कर प्राप संभा है । २ क. नहीं है। ३ क. वेऊ, ख. के ऊ, म. केहू घ वही । ४ ग घ. घटत बहौरि बढि जाय । ५-६ का पद्य भाग मूल प्रति (क) में नहीं है । ७ ख. कौन सौं ही नहीं मिटै। ग घ. नर । ६ ख. कलि माहि नर हो । १० घ. तरुवर, ख. गिर अरु। ११ क. करै। १२ क. नहीं है। १३ घ. गहि गजनी पाने, ख. मह गह लायो । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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