Book Title: Hamir Raso
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 38
________________ हमीररासो: 25 सूर सहंस पड़ि भोमि' तब, लख धड़ पड़ि है मीर । सेख न सौंपो साहि कौं, तो लग खड़े हमीर ।।१२१।। छंद सुनि संकर के बचन जबै, कर सार संभाये ४ । जब हमीर सौं बचन रहसि रणधीर कहाये ।। कनवज५ जो काके करी, सो अब जान हमीर । क्या अलावदी पातसा, क्या मके के पीर ।।१२२।। दोहा हमीर कहै रणधीर सौं, करो जंग अब जाय । हम पतिसाहि सौं पाधरै, चौड़े लड़िहौं प्राय ६ ॥१२३।। छद जब हमीर रणधीर साहि, परि सनमुख ध्याये। . अजमति अहमद अली, प्रथम दोई पुहोमी मिलाये ।। रख्या ७ करै हमीर की, संकर सकति अरु भांन । असी सहंस सवालखी, पड़े सहंस एक चौहान ।।१२४।। १. ख. पोहोमि । २. ख. पाड़े हमीर । ३. ख. पद्यांश नहीं है । ४. ख, इसके प्रागे बचनिका है- जब हमीर सौं रणधीर कहै छ। ५. ख. सो काका कनवज करी, सो छांणी रणधीर । जबी राव हमीर रणधीर सौं बचन कहता है। मैं पातसाहि सू बचन करता हूं। ६ इस पद्य के आगे से प्रति सं. (घ) का पाठ प्रारंभ होता है। बचनिका जब हमीर रावण धीर सौं बचन कहता है। मैं पतिसाहि सौं बचन कहता हौं । सफजंग चौ. प्राई करेंगे सो वह वचन हमारे पातिसाहि सौं गसत प्रावता है जब हमीर रणधीर --[ख.घ.] ७. ख. रिछया । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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