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चलाये ।
लगाये ॥
असुर मारि अजपाल, चहुँ दिसि चक्र बीसलदे अजमेर पाय, मंडलीक प्रथोराज गौरी गहै छाड़, दियो कर देचुरी । यतो सेख पैं हठ कियो, साहि बुधि कौंनें ही ॥१०६ ॥
हमीर रासो : 23
मिलै सेस जे सूर मिले, उदिया प्रस्तागर । उसहैत प्रकास प्राय जो लगै पुहमि पर 11 हठ हमीर तोऊ ना तजौं, सुनि दिलीसुर साहि । पहले सीस हमीर का, पीछे महिमां साही ॥। ११० ।।
घर अंबर बीचि आय, साहि थिर रह्या न कोई 1 गये जरजो धन दसकंध, करन अरजन ने केई ॥ अमर सहि कलि को नहीं, दल हसम देखि न भूलिये । तुमसे कितै अलावदी भूमि छाड़ि मरि रज भये ॥ १११ ॥
आपन सूर कहाय और नहीं कायर गिनिये । अपनो जस मुख ग्राप, साहि कबहू नहीं भनिये || लिखिये लेख करतार के, मो हजरति मेटै नहीं कोई । को जाने ररपथंभगढ़, हजरित केस होई ।। ११२ ॥
हजरति में फुरवांन बांचि, सब के मत लिना । मसल करि उमराव, जंग का महजम कीना ॥ ११३ ॥
छंद
तीन सहम नीसांन, धुरत अंबर थरराये रतन भंवर चहुं ओर, पुहुमि पर दल न समायै ॥ चहूँ दिसि चाहि प्रलावदी, बचन येक मुख ऊचरै । देखो कुबुधि हमोर की, यक सेख काज मुझि सौ फिरे ।। ११४ ।।
बचन उचारै ।
राव सनमुख कर जोरि, रुद्र सौं गढ पिरजा प्राधीन, सदा सौं सरन तुम्हारे ।। ११५ ।।
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१ ख. प्रड़न पख श्राकास 1 २ इससे आगे, घ. संज्ञक प्रति 'छंद' से प्रारम्भ 1 १३ ख मा धर पर भयेज घूड़ । ४ ख. कीजिये । ५ ख. पद्य के स्थान पर बचनिका है- पातिसाह को राव हमीर फुरवांन लिखाय कर भेज्या । जब पातिसाह ये जंग का तजबीज किया । ६ ख. येक उच्चरे मुख । ७ ख पद्य के स्थान पर चचनिका है- हमीर शंकर की प्रसतुत करता है ।
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