Book Title: Hamir Raso
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 34
________________ हमीररासो : 21 यक लख हाटि बाजार', दुनि' बनिया व्यौपारी । भठियारी लख च्यारि3, नान्ह पकावन४ हारी।। खरं' गोरख खचर (६ लख, है गसतागर लख च्यारि । येती हसम हरोल संग , हरवल हसम अगा (पा)रि ॥१००।। दवागीर लख येक, सहि सौंः दवा सुनावै । लंगरि खैरि निति बंट, रिजक हजरति के पावै ।। प्रवर१० बैल द्वैलख लहै', तोउपनके ताबीन । इती हसम पतिसाहि लै, कोपि१२ पयानो कीन ।।१०११॥ दोहा लख पैंतालीस सहंस दस, येतो दल परवांन । वाट घाट सुधि ना परै, छैत3 गरद असमान ।।१०२।। छंद चढयो दिलीसुर कोपि, राव१४ परि करि रिसाई । दस जोजन परवान पड़त, दल धरन१५ समाई१६ ।। चलत साह जब कुच करि, सूर गरद छिपि जात । धनि धनि कहै हमीर सौं, अलादीन पतिसाहि ।।१०३।। सात वीस लख हसम, तीन लख सुतर चलाये । पांच सहस गज' चलत, येक सौं येक सवाये ।। इती हसम पतिसाहि लै, चढयौ कोपि गढ़ सौ अस्यौ । चौहान रांन हर हर हंस, मनु येक टांडो परचौ ॥१०४।। .१ ग. सबै प्र.पा.। २ ग. दुनियां व्यापारी। ३ ग. येक । ४ ग. पकावत. बाजारिय । ५ ख. पाखर । ६ ख. लख दोई लख । ७ ख. सधी। ८ घ. अगाध । ९ ख. ग. कौं। १० ख. अवर दुनियर आवखा 4 लखदो, ग. नरबी खरब । ११ ख. ग. घ. चलै । १२ घ. कोपि करि कियो पयान । १३ ख. छिपत । १४ ख. .......................... कोपि रोस करि राव ।। ये दस जोजन परमान, पड़त दल धर न समाय । चढ़ि चढ़ि च्यारों दिसा,फौज चहु दिसी ते धाई ।। ग. दस जोजन की संकर सक सकत अरु भान । असी सहस दळ की परै, सहंस येक चहुवांन ॥ पा ॥ १५ घ. उपरि । १६ ग. भयो फजर वा हसम में, मिटि गये मीर अमीर । कर यादि पतिसाहि जब, गजनी गढ़ के पीर ।। इसके आगे 'छंद' से कथा प्रारम्भ है। १७ ख. गजराज, घ. हसत । १८-१६ घ. मड़यो, ख. पड़यो । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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