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हमीररासो : 19
गीदड़ स्यंघ सिकार, साहि येको नहीं जानौ । रनत-भंवर दिसि भूलि, साहि मति करो पयानो ।। वह सूरा रणथंभ गढ़, तुम अलावदी पीर । अजमति में सरमरि दोऊ, हजरति राव हमीर' ॥१०॥ कालबूत को सेख येक, हजरति बनबावै । अंबखास करि खड़ा, उसे गरदनि मरवावै ।। खूनी पास' हमीर कै६, जानत दुनो अरु दीन । हजरति रोस विसारिये, करिये मनै मुहीम ।।११।। क्या मगरूरि हमीर', पलक'० में पाय लगाऊ : खूनी महिमासाहि, उसे गहि दिली लाऊ ।। येक राव रणथंभ का, इता१ किया अभिमान । कोपि साहि भेजें जबै१२, दसौं देस फुरवांन ।।१२।।
दोहा कौन कौन पतिसाहि के, पाये खड़े उमीर । भेला दल दिली हुआ, जुड़ण जंग हमीर१३ ।।६।।
छंद मिसरख देस खंधार खड़े, गजनी दल आये । धुरि काबलि खुरसांन, कोकि१४ पतिसाहि बुलाये ॥ अयुत १५ अयुता अबदाल१७ दल, दिली प्राय येते जुड़े । करि सलाम पतिसाहि सौं, कर जोड़े हाजरि खड़े ।।१४।।
१ ग. घ. मति। २ यहां से प्रति ङ. संज्ञक प्रारम्भ होती है। ३ ख. ग. बनवावो। ४ ग• मरवावो । ५ ग. साहि । ६ ग. ताहि अ. पा. । ७ ग. मेने, ख. मन करिये मुहीम । ८ ग. क्या सु मगज। ६ म. पै. अ. पा. । १० रु. एक अ. पा.। ११ ख. किता, घ. इता। १२ ख. अब तुम भेजिये । १३ ख.ग.घ. इस पद्य के स्थान पर बचनिका है। बचनिका-कौन कौन देस पातिसाह के प्रावता है। १४ ग. घ. कोपि। १५ ख. ग. घ. मारब । १६ ग. अरु । १७ ख. प्रारबदल ।
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