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36 : हमीररासो
पाठ सहस चौहान तीन, कमधज कवि गाये । पांच हजार पंवार, राव हमीर सराये' ॥ सोला सहंस भड़ राव के, स्यामि काज जिनि सारिये। सतरि सहंस दल पेलिके, यो सूरलोक सिधारिये ॥१७२॥ बरस पांच पतिसाहि, छांणि हजरति कौं बीते । लिये राव कर तेग, छांणि संवत तब बीते ॥१७३।। खड़ा खेत रणधीर [साहि], दोऊ बनलाये । [तजै न हठ हमीर, क्या तुम से सत पाये] ।। रणधीर राव यम ऊचरत, समझि साहि चित लीजिये । गढ रणथ भ हमीर का, हजरति हठ न कीजिये ॥१७४।।
बचनिका - [जब] पातिसाहि कहता है
छंद
ये बातें रणधीर साहि कौं. किन समझावो । करो राज रनथंभ, सेख गहि कदमों लावो ॥ होनहार कबहू न मिट, अन होतिब नहीं होई । जो हठ रहै हमीर का, तो कहै न साहि मुझि कोई ॥१७५॥ ये च्यारौं गढ़ रणधीर, हुकम किस के तुम पाये । कबहू न फिरै रकेब, सीस कबहू न नवाये ।। गिर सूरजी पलटै पहौमि पै. कोटि बचन कह कोय। सेख छाडि उलटे फिरै, यह कबहू नहीं होय १२ ।।१७६।।
१ ख. हमीर के सर पाये । २. ख. सारे, घ. सारया। ३ ग सहि के प्र.पा । ४ ख. पधारे, घ. पधारिया । ५ ख ग घ.ड.. पद्य के स्थान पर वचनिका है। बचनिकाबरस पांच छांणि के पढ़ पातिसाहि के बतीत हुये । प्रब राव रणधीर पातिसाहि सौं तेग पकड़ता है। छांणि को संबत प्राणि पहुँच्यो (प्राणि पूरो हुयो (ख.)। ६ ख. ग. उच्चर। ७ ख.घ. पातसाहि कहै छ। ८ ग. प्रागे बचनिका है। बचनिका- जब पातिसाहि रणधीर सौं कहता है, ख.घ. बहोरि पातिसाहि रणधीर सौं बात कहता है। ९ ख. इससे प्रागे-रणधीर कहै छ अ.पा.। १० ग. कोड़ि। ११ ख. कह वे। १२ ख. होवै ।
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