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हमीररासो : 41
दोहा हठ हमीर छाडै नहीं, हजरति तजै न टेक । सात मीर पतिसाहि के, गये बिसर करि देस ॥१६८।।
वचनिका : महरमखां कहै
बुधि अपनी सौं आय, साहि क्यौं अब पछितावो १ । हम बरजत रणथंभ २, कोपि हजरति चढ़ि प्रावो ।। हजरति हिम्मत न छाडिये, धरो अबै मन धीर । गढ़ चहूदिसि निरगह करो, कब लग लड़े हमीर ।।१६६।। अपना महजम छाडि, देव हिंदू (अन) के ध्यावो । अलादीन प्राधीन होय, करि सीस नवावो । कर जोरि साहि वंदगी करै, सुनो सब हिंदू के पीर । मैं वंदा विनती करू, करिये माफ तकसीर ॥२००।।
बचनिकाबंदगी करि पातिसाहि कूच पाल्हरणपुर करियौ । रण डूगर डेरा करे, गढ़ निरगह करवायो ४ ।।
रनतभंवर गढ़ निरखि, साहि प्रासंग नहीं आये ५। करि मिसलति पतिसाहि, बहौरि येलची पठाये ।। कहै साहि सुनि दूत, राप सौ कहो समझाय । राजि हमीर दे भेजियो, सो ही महिमासाहि ।।२०१।।
१ ग. कही सबै समझाय, बात हजरति के ताई ।
मानी नहीं तब एक हू, कहि सबै समझाई ।।
हठ अलावदी मति करो, तुम देखण का चाव । इसके प्रागे बचनिका है तथा छंद २०० से छंद २०४ तक का पद्य भाग नहीं हैं। २ घ. छै राजि । ३ ख.घ. देव । ४ ख. घ वचनिका- जद पातिसाहि देवतों की बंदगी करी । कूच पाल्हणपुर कियो। डेरा रणतर के डूंगर दिया । जदि पातिसाहि गढ की निगे करि मिसलत करी । रणतमंवर गढ निरख्या । साहि गढ़ प्रासंग प्रायो नहीं। ५ ख.घ. नहीं है। ६ ख. राव ।
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