Book Title: Hamir Raso
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 50
________________ हमीररासो । 37 राव* सार कर गहै, छांरिण, गढ़ कूसिर नाये । छतरी - धरम संभारि', साहि पै सनमुख ध्याये । करि सलाम रणधीर कौं, साजि आवव सब अंग। अलादीन पातिसाहि सौं, जुड़े सूर सफ्रजंग ॥१७७।। भया रोस रणधीर, कोपि कर सार संभाहै। लख रूमी रणधीर, साहि के गरद मिलाये ।। वरस पांच जिमी जुझ' कियो, प्रलादीन हठ करि रह्यो । पिसन पाड़ि चहुवांन तब, अपछर वरि सूरपुर गयो ॥१७८।। लख रूमी रणधीर पाड़, साहि की सुधि विसराई। हरखि अपछरा ऊतरी, सूर • पुर लै लै जाई ।। पाख उजारै चैत सुदि, तिथि नवमी सनिबार । बीस सहंस छत्री पड़े, अबला गरी हजार ॥१७६१ वहौरचौं राव हमोर, जंग हजरति सौं जुरिये। प्रसी सहंस परि बीस, मीर मिसरख के पड़िये । द्वादस सहंस छत्री पड़े, जब ऊचरै बचन हमीर । जो काके कनवज करी, सो करि छांणि रिणधीर ।।१८०॥ दोहा गज इकसठि नो नो लख तुरी, द्वे परि बीस अमीर । जो कहते सोही करी, धनि रणधीर (कहै) हमीर ॥१८१।। * ख. ग घ. सूर । १. ख. संभाया। २. ग. परि । ३. ख. जंग । ४. संभावै । ५. ख. मिलावै । ६. घ. जूझियो। ७ ख.ग.घ. प्ररि मारे चहूंवारण वरी अपछरा यौं सूरलोक सनमुख गयो प्र. पा.। ८. ग. वर । ९. ख. शुक्र । १०. रा.घ. जुड़ियो। ११. ख. पाई। १२. ख, अबला जरी हजार। १३. ख.ग. दो, ग. दो लख इसम । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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