Book Title: Hamir Raso
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 48
________________ - - हमीररासो : 35 राव तबै मन सोचि, खबर गढ परि मंगवावै । सूर संखधर जाय, तुम [कंवर संगि] जुध करावो' ।।१६८।। छंद वे दोऊ वीर अजान सार, कबहू न संभाई । राव रही' चित सबी, नीर लोचोन भरि पाये ।। सूर संखधर भेजियो, करि जिय सोच हमीर । अब जुड़ों जंग पतिसाहि सौ, बिलंब न कीजै बीर ॥१६६॥ सत छाडि ग्रह चलै बहौरि, चित उलटि चलावै । उत न मिल सतलोक,५ इत पदवी नहीं पावै ।। बिनसै काया जीव अमर, जग समझत न अजान । ये बचन राव हमीर के. कंवरन सौ किये कान ७ ॥१७०॥ छंद सुनि' कंवरन ये बचन, कोपि गजराज चलाये। सतरि सहंस प्रारबी, पाड़ि पहोमि - ज मिलाये ।। [जब ] करि उछाह आई, अपछरा बरे कंवर दोऊ पाय । सर - लोक कौं ले चली, पुहप · माल पहिरायः ॥१७१।। १ ख ग घ. ऊ. पद्य के स्थान पर बचनिका है। बचनिका-राव हमीर पल-पल, सियाइत-सियाइत की खबरि मंगावता है । तब राव सूर संखधर सू बातें करता है। तुम जाय सिताब जुध करावो। २ ख.ग रहै। ३ ख. चित विसर; ग. चितै सौं सबी। ४ ग घ. करियै । ५ घ• सूर लोक। ६ घ. नहीं गंवार । ७ ख ग.घ. ह. रहै अमर जस पुरखि को, जितै जमी असमान । प्रागे वचनिका है। बचनिकाये बचन राव इमीर के संखधर नै कंवरन सौं कहै। ८ ख. सुनि यह कंवर । :९ घ. जदि, स्व.घ. जब उछाह करि प्राई । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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