Book Title: Hamir Raso
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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34: हमीररासो
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मौर धरि सीस दोऊ कंवर हरखै । ईस गनेस देव पर से ।। वजत नीसांन असमान गरजै। कोपि' सूर चलै मनो बाघ बिरचै ।।। ६२।।
दोहा करि सलाम रणयंभ को, लगि हमीर के पाय । चलै कंवर चतरंग के, जितै अलावदी साहि ॥१६३।। कंवर निकसी तब आय, छांणि दरवाजे डेरा । किय नौबति के नाद, प्राय हसम सौं नेरा ।।१६।।
छंद ये सुनि नौबति के नाद, हसम दिसि हजरति चाहै । करि अलावदी यादि, मीर आरबी3 बुलाये ॥ खर दंत सुपर कने, गकस नौकर देह । ये पेले पतिसाहिने, कंवर दोऊ गहि लेहू ॥१६५।। तुम सांवंत प्रथीराज. गह्यो५ गजनी गढ़ लाये। तुम गौरी पतिसाहि, दिली के तखत बैठाये । साहि बचन यम ऊचर, सनि जमीमलखां वीर । गहो कंवर चतरंग के, यो कदमों लगै हमीर ॥१६६।। जब करि सलाम साहि को, मीर प्रारब के खड़िये । गहो गहो गहि लेहू, कोपि करि चहु दिसि फिरिये ।। यते कंवर चतरंग के, उत प्रारब के मीर । उति साहि सराहै १° पाप, मुखि पत दे स्याबासि हमीर ।। १६७।।
१ ख. कोपि चल सूर मानो वीर चल, घ. कोपि चल सूर मानो बाध बरले । २ ख.ग.घ.. पद्य के स्थान पर बचनिका है । बचनिका- कवर छांणि के दरवाजे हेरा करै । हेरा करि उच्छाह करि नौबत बजाई। ३ ख. प्रारबके, घ. पारव सू। ४ ख. नौकस सकस देह । ५ ख.ग. गहै। ६ ख. सुनि जमलखां के मीर । ७ म. ज्यौं । ८ ग. लेहू लेहू । ९ ख. वतै । १० ख. सरावै ।
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