Book Title: Hamir Raso
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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हमीररासो : 31
सूर दस सहंस फूल हथ' खेलै । अप्पर जिय राखि परमार पेले ।। इह भांति रणधीर चौगांन पाये । उडि जमी की गरद असमान छाये ।।१४७।।
प्रबदल करीम पतिसाहि पेलै । मीर रणधीर चौगांन खेले ।। बहै बांरण केवर अरु चक्र चल्लै । कहै ' राव सूर अब होई भल्लै ।।१४८।। जब साहि सौं सुर सनमुख जुरिये। जहां हबस के मीर दस सहंस पड़िये ।। टूटि' सिर मीर धड़ पहोमि लख्खै । अध सहंस पड़ि सूर उड़ि प्रोझ भक्वै ।।१४६ जब राव रणधीर प्रापन सिधारै । अबदल-करीमखां'• पहोमि पारै ।। साहि रणधीर' 'सफ्रजंग जुड़िये । पतिसाहि दल उलटि कै कोसि फिरिये ।।१५० रणधीर क है २साहि बिलंब न किज्ज । चंद रोज गया बीति गढ़ छांणि लिज्ज ।। पढ़ कोट' कबहीन यौं हाथि पावै । ह कोपि पतिसाहि दल क्यों खिसावै।। १५१।।
दोहा बरस - पांच गढ़ छांणि को, नहीं संबत पतिसाहि । है द्वादस ५ रणथंभ गढ़, निधड़क लड़ि पतिसाहि ॥१५२।।
छद
धनि सु राव रणधीर, साहि मुख प्राप सरहै । मुझि दिसि सनमुख प्राय, कोपि करि सारि संभाहै ।। साहि बचन यम ऊचरै, सुनि महरमखां मरि । जंग जोति बहौर यौं गयो, धनि सु राव रणधीर ।।१।३।।
१. ख.घ. पलीता जु हत्थ । २. ख. अापका, ग. पाप जीव र परमार खिल्लै । ३. स्व. परमाल । ४. घ. प्रबदल केरि रैयति पति, अबदल्ल करीम पति हमारी, ग. प्रबै छांडि को जाय खाय कर निमक तुम्हारो । ५. ख. कबाण । ६. रणधीर । ७. घ. पेले । ८. घ. दूटि मीर धड़ पोहमि लग्गै । ९. ख. पाई। १०. घ. अबदल्ल के मीर पतिसाहि पेले । ११. घ रणधीर सौं। १२. ख. कहै पतिसाहि । १३. ख. चंद रोज बिचै गढ़ छांणि फतै किज्जै । १४. ख.ग.कोट ये कब ही नहीं : १५. ख द्वादस परि।
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