Book Title: Hamir Raso
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 43
________________ 30 · हमीररासो ० सुन बकसी के वचन, मोच हजरति अति लाये । कहता बचन हमीर, सूर सोही निरबा (ह) हे ।। महिमासाही' हमीरगढ़, ये तीनों साबत खड़े । बाजी रही हमीर की, मुझि' कनकर कानै पड़े 3 ।।१४०।। महरमखां यम ऊचरै, साहि हिकमत यक' कीजै। पहिलै छांणि करि फतै, बहौरघौं गढ़ सौ जंग कीजै ।। रनतभंवर हलचल' परै, सुनि साको रणधीर को। मिलै राव गहि सेख कौ, यों सत घट हमीर को ।।१४१।। कहै पतिसाहि उजीर, छांणि गढ़ बेगा लीजै । चंद रोज के बीचि, फतै प्रब बैगी कीजै ।।१४२।। कोपि पतिसाहि रढ छाणि लग्गै । तीन सहस नीसान' ० दल साहि वगं"। दोय सहंस प्रारबो तेजि छुट्ट । गजि गिरिमेर पाखारण फुट्ठ १२ ॥१४३॥ उडि सोर दामू महताप' लग्गै । गये वन छांडि स्यंघ उत्तन तज्जै ।। पच्चीस१४लाख हसम चहूँ ओर फैरै । यहि भाति पतिसाहि गढ़ छांणि धेरै ।।१४४ कहै पतिसाहि बिलंब न कीजै । चंद रोज बिचि गढ़ छांणि लिजै ।। रणधीर कहै साहि मन धीर धरियै । मिलि चौगान सफजंग करियै ।।१४५।। निस्सान सो साजि सुर सबद बज्जै । राव रणधीर प्रावध सज्ज ।। वीरारस राग सिंधूज किन्है१६ सहस। इकतीस दल संगि लिन्है१७ ॥१४६।। १. ख. अरु। २. स. मुझि लड़ी फीट पड़े, घ. मुझि करकरया कान धरी। ३. ग बचनिका- महरमखां उजीर पातिसाहि सौं कहता है। ४. घ. क्यू। ५ घ. फेरि । ६. घ. हलचल पर। ७. ख साहि। ८. पद्य के स्थान पर बचनिका है । वचनिका- जब पातिसाहि महरमखां सू कहता है- अरे महर मखां छांरिणरु गढ़ चंद रोज बिचे फतै कीजै । जब महरमखां पतिमाहि सौं कही- हजरति का हुकम दरकार । ६. ग. ढारण। १०. घ नीसान साजिये । ११ ख ग. बज्ज । १२ घ. यह पद्यांश प्रति, (घ) में नहीं है। १३. यह पद्यांश प्रति (घ) में नहीं है। १४. घ. महताब । १५. ग.घ. बहै पच्चीस । १६. ग.घ. छांणि फत्तै कीजै । १७. म. कीन्हा । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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