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18 . हमीररासो
छंद
सुनै दूत के बचन साहि, जिव संक्या प्राई । करि अलावदी रोस, सात कोपी पतिसाही ।। जतन जतन समझाइयो, उलटा मंछी नीर सौ' । कोपि बचन हजरति कहै, जुड़िये जंग हमीर सौ ।।८५।। ग्राम खास उमराव सबै, पतिसाहि' बुलायै । हठ हमोर सौ४ किया, सेख रखि६ संभाये ।। उतर दखिरण पूरब पिछमि, फिरत हमारी प्रान । कहत साहि रणथंभ का, क्या हमीर चौहान ।।८६।। तब खड़े अलावादी मीर सबै, हजरति दिसि चाहै । अपनी अपनी मिसलि, साहि सौ १० सीस नवावै ।। कहत बचन सव साहि सौ, करि करि मीर सलाम । बेर बेर११ हमीर कौ१२, मति भेजो फुरवांन ।।७।।
दोहा महरम खां पतिसाहि सौ, जोड़े हाथि हरि । मुसलमान चहूंवान की, सुनिये साहि गरूरि१३ ।।८।।
छंद पहलै हसन हसीन, सैद चौहांनौं पेलै । सातबेर प्रथीराज साहि, गौरी गहि मेलै १४ ।। वीसलदे अजमेरि गढ़ किते, साहि गहि बसि करै १५ । करि सलाम पतिसाहि सौ, महरमखां यम ऊचर ६ ॥८६॥
१ ख. घ. ज्यौं। २ हजरति । ३ बुलवाये। ४ ग. घ. मुझि। ५ घ. कियो। ६ घ. करि प्र. पा. । ७ ग. दछिन । ८ ग. अदालति, ख. ग. के मीर । ९ घ. कौं। १० ख. ग. घ. कौं। ११ ख. ग. राव हमीर कौं। १२ घ. पै । १३ यह पद्य नहीं है। इसके स्थान पर बचनिका- जब अरज महरम खां पातिसाहि सौं कहता है । ये पातिसाहि (सौं) आगली बातें चौहानों की कहता है । * पिछले
१६वें पृष्ठ की टिप्पणी सं. ८ से यहां तक का पद्य भाग ग. संज्ञक प्रति में नहीं है । १४ ख लाये। १५ घ. किये। १६ ग. वच्चरै।
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