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हमीररासो : 17
दोहा
फिर पूछत है दूत सौं, हजरित गीढ़ि बुलाय । रहनी करनी राव की, सो मो देहि बताय १ ॥७६।।
काछ वाछ (च) निकलंक, जति जोगारंभ साधत। इते राव वहै। विड़द सार, गहि खेत न धाड़त ।। राज नीति पिरजा सुखी, अरु मेटत पर पीर । बरस पाठ पर वीस द्वै, येती उभरि हमीर ।।८।। बंद जन दरबारि द्वारि, केऊ विरुद3 वखान (त)। राव दानि निति देत, मंगत जन जो मुख मांगत ।। दाता सूर कलजुग करन, गुनि चहु दिसि जस करै । अति प्रवीन विद्या सबै, असति बचन नहीं ऊचरै ।।८१॥ गढ़ प्रकट रणथंभ साहि, नहीं चहू दिसी सांनौं । विभो यंद्र को राव', कहांलौं ताहि बखानौ ।। भवन भंडार कुमेर सम", जहां रिधि नौ अस्ट सिधि । हजरति राव हमीर के, लोहा कंचन होत निति ।।२।। बीस सहंस घ्रत निमक, सहस दस कैफ तिजारा। • केसरि तैल कपूर भवन, केऊ भरै भंडारा ।। जो प्रवाण रिणथंभ का,सुनि साहि सो' जानि जस । अनि सामंत हमीर के, इकसठि लाख हजार दस ।।३।।
दोहा माल(ती)मरवा' मोगरा१२, कदली१३ कली सुगंध । चहुं दिसि बाग हमीर के, जिन४ वीचि गढ़ रणथंभ ।।८४||
१ ख. घ. यह पद्य नहीं है । इसके स्थान पर बच निका-फिरि पातिसाहि दूत कू पूछता है-राव हमीर, शापरी रहनी करणी में खबरदार ख. घ.। २ घ. को। ३ ख. प. विड़द । ४ घ. करण । ५ घ. राजा । ६ . सा । ७ घ. कहैफ, ख. परि तिजारा। ८ ख.ग.घ. कनक । ९ ग. केई। १० ख.ग. मैं कह्यो सब । ११ घ. चमेली। १२ म. केवरा। १३ ख. प. कजली । १४ घ. जिसि।
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